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दाल पख्तूनी
कल इसे अपनी भतीजी को बनाना सिखाया जो अमेरिका में बायो स्टैटिसटिक्स में डाक्टरेट कर रही है .वह अमेरिका में ही अपने घर से दूर एपार्टमेंट में रहती है और कई बार खुद खाना बनाना पड़ता है .पर उधर मिर्च मसलों का प्रयोग कम होता है .साथ ही खड़ा मसाला का चिकन दो प्याजा भी बनाना सिखाया बिना पानी डाले . दाल बनी तो छोटे भाई अपूर्व ने कहा इसे अपनी सीडीआरआई कालोनी में कामिनी आंटी बनाती थी .आंटी पुरानी दिल्ली की थी और खानपान पर असर भी था .दिल्ली खासकर चावड़ी बाजार के कायस्थ परिवारों में खाने पीने का शौक पुराना है .अवध में भी वे तरह तरह की मुगलई डिश बनाती थी .दाल भी कई तरह की .यह उड़द की दाल सूखी होती है पर लाल मिर्च के तड़के के साथ .देसी घी में डूबी हुई और बारीक अदरक के लच्छे ऊपर से जो इसका बादीपन खत्म कर देते हैं ,इसे रोटी और पराठे के साथ खाइए .पर इस दाल का आकार नहीं बिगड़ना चाहिए यह ध्यान रखे ज्यादा गलाए नहीं .इसे दाल पख्तूनी भी कहते हैं .

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यह जमुना है
यह यमुना है . कहने को तो इसे जमुना जी भी कहते हैं .पहाड़ की परिक्रमा कर वे आगे बढती हैं .दिल्ली भी जाती हैं .दिल्ली आजकल इससे परेशान है.
पर कुछ समय पहले जब यमुना के किनारे जब गए तो बिसलरी की खाली हो रही बोतल निकाली और उसे भर लिया .फिर खुद पिया और अरविंद को भी पिलाया .हम सोच रहे थे कि यही यमुना जब दिल्ली पहुंचती है तो कोई इसका पानी पी सकता है क्या? कांदिखाल से करीब चालीस मिनट में हम यमुना पुल तक पहुंच गये .आगे चकराता के रास्ते पर जाना था .कुछ दूरी के बाद ही हिमाचल की सीमा आ जाती है .यमुना पुल से पहले यमुना का विहंगम दृश्य देखने वाला था .यहां यमुना एक नदी सी लगती है .पहाड़ों को लांघती हुई ,घेरती हुई आती है और उसका प्रवाह देखने वाला होता है .जाते समय पुल के पहले बंगाली रेस्तरां वाले को बता दिया था कि करीब बारह लोग लौट कर खाना यही खायेंगे .वह मछली रोटी और चावल की थाली सत्तर रूपये में देता है .शाकाहारी लोगों के लिए सब्जी दही भी रखता है .यह बंगाली परिवार कई साल पहले चौबीस परगना से आया था और अब यमुना के पानी से गुजारा कर रहा है .सुबह यमुना से जो मछली पकड़ी जाती है वह खरीद लेता है और दिन रात ट्रक वालों के साथ कुछ सैलानियों को मछली भात परोसता है .साथ में जो पानी होता है वह भी यमुना का .हम लोग यमुना नदी के तट तक गये पर उसका प्रवाह देख कर आगे नहीं बढे .फिर जौनसार बाबर मंदिर की तरफ जाना था इसलिए आगे बढ़ गये .यमुना साथ साथ थी और एक बड़े पहाड़ की परिक्रमा करती नजर आ रही थी .यह बहुत ही हरा भरा इलाका है .एक तरफ खेत तो दूसरी तरफ पहाड़ .खेतों की तरफ ही कुछ हजार फुट नीचे यमुना .पर फल के पेड़ बहुत कम दिखे .हां एक ट्रक दिखा तो जबर सिंह ने बताया कि ये हिमाचल का सेब लेकर नीचे जा रहा है .आगे

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अच्छा यही रीज़न था पिछले 3 दिन लाइट का नही होना 😁😁😁😁😁😁

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