2 anni - Tradurre

आदमी ग़लतफ़हमियों का शिकार,हो जाता है कभी कभी।
बढ़ाकर दूरियाँ दरकती हुई दरार हो जाता है कभी-कभी।।
कोशिशें करने नही देता,उसके भीतर के वहम का पहरेदार-
सब कुछ हाथ में होते हुए भी लाचार हो जाता है कभी-कभी।
पढ़ कर के पूराने ख़त पिघल जाती है रिश्तों पर जमीं बर्फ़-
सुलह करने में काग़ज़ भी किरदार हो जाता है कभी-कभी।
बदल देता है वक़्त ज़िंदगी के अर्थ जज़्बातों की किताब में-
बेइंतहा नफ़रतों के बाद भी तो प्यार हो जाता है कभी कभी।
नज़रअन्दाज़ कर देते हैं जिसे सफ़र में,उसी से ठोकर खाते हैं-
हमारी राह का वो पत्थर भी खुद्दार हो जाता है कभी-कभी।
छूट जाती हैं पतवारें जब भी कभी ज़िंदगी में आई सुनामी से-
माँ का कहा कोई क़िस्सा भी पतवार हो जाता है कभी-कभी।
शाम को लौटते हैं पिता, दोनो हाथों में भरकर के ख़ुशियां-
तब घर का आंगन भी भरा बाज़ार हो जाता है कभी-कभी।
थमाने की बात आती है चंद सिक्के अपने माँ बाप के हाथ में-
आदमी नौकरी करके भी बेरोज़गार हो जाता है कभी-कभी।
कर्म ही बनाते हैं इंसान को,ये कर्म ही बिगाड़ देते हैं कहानी-
आदमी कर्मों से भी मंदिर और मज़ार हो जाता है कभी-कभी।

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2 anni - Tradurre

आज भी हमारे साथ है,
मेरी दादी का संदूक।
बहुत सादा है मगर,
यादों के क़ीमती मोती जड़े है इसमें।
ख़ाली है और पेंदे में छेद हैं,
फिर भी जाने क्यूँ लगता है,
दादी के छुपाए बतासे पड़े है इसमें।
कितनी ज़िद के बाद,
चार बतासे देती थी।
वो जाने अनजाने में,
हमारे धैर्य की परीक्षा लेती थी।
कोई ताला नही है इस पर,
कुछ हिस्सा उखड़ चुका है।
इसने देखा है समृद्धि को,
बुरे वक़्त से भी लड़ चुका है।
एक यादों का समंदर है इसमें,
सुख दुःख वाली मौजें हैं।
आजकल की अलमारियों की तरह,
इसके भीतर भी एक कपाट है,
वो जिसमें बुरे दौर से बचाने वाली,
पूँजी रखी जाती थी।
मगर इसमें से कुछ सिक्के,
मेले,होली,दिवाली पर,
हमारी जेब में आ खनकते थे।
पापा के दिये जेब ख़र्चे को,
हम इसी कपाट में जो रखते थे।
गोंद के लड्डूओं की बरनी,
बड़ी इतराती थी इसमें।
कोने में टँगी सूखे मेवे की एक थेली,
खीर,हलवे वाले दिन दिखाई देती थी।
हमारी शैतानियों के चलते,
कभी कभी वो क्रिकेट का बल्ला,
इसमें जमा कर दिया जाता था,
कितनी शर्तों के साथ मिलता था।
शैतानियाँ,थेलियाँ,बरनी,बल्ला,सिक्के,
कुछ भी नही अब इसमें।
और इसके ताले कूँची रखें हैं,
दादी की तस्वीर के अहाते में।
यादों की यही वसियत,
विरासत का सुनहरा स्वरूप।
आज भी हमारे साथ है,
मेरी दादी का संदूक.....😍😍😘😘

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