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पहले सड़कों के किनारे फलदार पेड़ लगे होते थे। गर्मियों की छुट्टियों में अक्सर बच्चे जामुन, आम आदि फल तोड़कर खाया करते थे। फिर सरकार को ख्याल आया कि हमें तो विकसित होना है, फ्रूटी ,real , tropicana आदि को लाभ पहुँचना है , पश्चिम की भांति सजावटी दिखावटी बनना है। बस फिर क्या था फलदार पेड़ों को जगह ले ली सजावटी पेड़ पौधों ने और डंडे, पत्थर से फल तोड़ने और पेड़ पर मित्र की मदद से चढ़ने की कला का स्थान ले लिया, मोबाइल ने। बचपन जिसको मिट्टी में रुलना था, वो रील, टिकटोक, फेसबुक, इंस्टाग्राम, पब जी, 4 जी में घुस गया।
बस होना क्या था..सब खत्म, गया, टाटा, बाय बाय।।
साभार

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Orthodontist near New Braunfels

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Finding the right orthodontist can seem intimidating Fortunately, the experts at New Braunfels Braces make the process easy and stress free!

James Vandeberg Onun profil resimlerini değiştirdi
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इस प्रतिमा के मुख में एक पत्थर की गेंद है जिसे आप छू सकते हैं, हिला सकते हैं, लेकिन किसी भी तरह से मुख से बाहर नहीं निकाल सकते।
मूर्ति एक ही पत्थर से बनी है, जरा सोचिए गेंद मुख में कैसे स्थापित की गई होगी ?
और ये जंजीर जो मूर्ति के मुँह के सामने है ये भी पत्थर से बनी है ज़रा सोचिए पत्थर से जंजीर कैसे बनाई जा सकती है?
है ना अचंभित करने वाली बात ?
(कैलाशनाथ मंदिर ) तमिलनाडु 🙏

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ज़ूम इन करें और स्तर को देखें
हमारे पूर्वजों की शिल्प का आश्चर्य....
एक योद्धा का भाला शिकारी जानवर के मुख से निकाल रहा है और दूसरे सैनिक की तलवार त्वचा से निकल रही है। यह आश्चर्यजनक है कि हमारे पूर्वजों ने हजारों साल पहले ऐसी चीजें कैसे बनाईं।
मोढ़ेरा का सूर्य मंदिर गुजरात के भरत जिले के मेहसाणा जिले के मोढेरा गांव में स्थित सौर देवता सूर्य को समर्पित एक मंदिर है।
यह पुष्पावती नदी के तट पर स्थित है। यह चालुक्य वंश के भीम प्रथम के शासनकाल के दौरान 1026-27 सीई के बाद बनाया गया था।

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इंसानियत
बहुत ही सुंदर कहानी है
बहुत दिनो से स्कूटी का उपयोग नही होने से, विचार आया #olx पे बेच दे..
कीमत Rs 30000/- डाल दी
बहुत आफर आये 15 से 28 हजार तक।
एक का 29 का प्रस्ताव आया।
उसे भी waiting में रखा।
कल सुबह काल आया, उसने कहा-
"साहब नमस्कार 🙏 ,
आपकी गाडी का add देखा। पसंद भी आयी है। परंतु 30 जमाने का बहुत प्रयत्न किया, 24 ही इकठ्ठा कर पाया हूँ। बेटा #इंजिनियरिंग के अंतिम वर्ष में है। बहुत मेहनत किया है उसने। कभी पैदल, कभी सायकल, कभी बस, कभी किसी के साथ। सोचा अंतिम वर्ष तो वह अपनी गाडी से ही जाये। आप कृपया स्कूटी मुझे ही दिजीएगा। नयी गाडी मेरी हैसियत से बहुत ज्यादा है। थोडा समय दिजीए। मै पैसो का इंतजाम करता हूँ। मोबाइल बेच कर कुछ रुपये मिलेंगें। परंतु हाथ जोड़कर कर निवेदन है साहब,मुझे ही दिजीएगा।"
मैने औपचारिकता में मात्र #ok बोलकर फोन रख दिया।
कुछ विचार मन में आये।
वापस काल बैक किया और कहा
"आप अपना #मोबाइल मत बेचिए, कल सुबह केवल 24 हजार लेकर आईए, गाडी आप ही ले जाईए वह भी मात्र 24 में ही"
मेरे पास 29 हजार का प्रस्ताव होने पर भी 24 में किसी अपरिचित व्यक्ति को मै स्कूटी देने जा रहा था।
सोचा उस परिवार में आज कितने आनंद का निर्माण हुआ होगा।
कल उनके घर स्कूटीआएगी।
और मुझे ज्यादा नुकसान भी नहीं हो रहा था।
ईश्वर ने बहुत दिया है और सबसे बडा धन #समाधान है जो कूट-कूटकर दिया है।
अगली सुबह उसने कम से कम 6-7 बार फोन किया
"#साहब कितने बजे आऊ, आपका समय तो नही खराब होगा। पक्का लेने आऊं, बेटे को लेकर या अकेले आऊ। पर साहब गाडी किसी को और नही दिजीएगा।"
वह 2000, 500, 200, 100, 50 के #नोटों का संग्रह लेकर आया, साथ में बेटा भी था। ऐसा लगा, पता नही कहा कहा से निकाल कर या मांग कर या इकठ्ठा कर यह पैसे लाया है।
बेटा एकदम आतुरता और कृतज्ञता से 🛵 को देख रहा था। मैने उसे दोनो चाबियां दी, कागज दिये। बेटा गाडी पर विनम्रतापूर्वक हाथ फेर रहा था। रुमाल निकाल कर पोछ रहा था।
उसनें पैसे गिनने कहा, मैने कहा आप गिनकर ही लाये है, कोई दिक्कत नहीं।
जब जाने लगे, तो मैने उन्हे 500 का एक नोट वापस करते कहाँ, घर जाते #मिठाई लेते जाएगा। सोच यह थी कि कही तेल के पैसे है या नही। और यदि है तो मिठाई और तेल दोनो इसमें आ जायेंगे।
आँखों में कृतज्ञता के आंसु लिये उसने हमसे विदा ली और अपनी 🛵 ले गया। जाते समय बहुत ही आतुरता और विनम्रता से झुककर अभिवादन किया। बार बार आभार व्यक्त किया।
दोस्तो जीवन में कुछ व्यवहार करते समय #नफा नुकसान नहीं देखना चाहिए।
अपने माध्यम से किसी को क्या सच में कुछ आनंद प्राप्त हुआ यह देखना भी होता है।

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*"सबसे बड़ा धनी"*🙏
जब केवट प्रभु के चरण धो चुका तो भगवान कहते हैं- "भाई ! अब तो गंगा पार करा दे। इस पर केवट कहता है- "प्रभु ! नियम तो आपको पता ही है कि जो पहले आता है उसे पहले पार उतारा जाता है। इसलिए प्रभु अभी थोड़ा और रुकिये।" भगवान् कहते हैं- "भाई ! यहाँ तो मेरे सिवा और कोई दिखायी नहीं देता। इस घाट पर तो केवल मैं ही हूँ। फिर पहले किसे पार लगाना है ?" केवट बोला- "प्रभु ! अभी मेरे पूर्वज बैठे हुए हैं, जिनको पार लगाना है।"
केवट झट गंगा जी में उतरकर प्रभु के चरणामृत से अपने पूर्वजों का तर्पण करता है। धन्य है केवट जिसने अपना, अपने परिवार और सारे कुल का उद्धार करवाया। फिर भगवान् को नाव में बैठाता है, दूसरे किनारे तक ले जाने से पहले फिर घुमाकर वापस ले आता है।
जब बार-बार केवट ऐसा करता है तो प्रभु पूछते हैं- "भाई ! बार-बार चक्कर क्यों लगवा रहे हो ? मुझे चक्कर आने लगे हैं।" केवट कहता है- "प्रभु ! यही तो मैं भी कह रहा हूँ। ८४ लाख योनियों के चक्कर लगाते-लगाते मेरी बुद्धि भी चक्कर खाने लगी है, अब और चक्कर मत लगवाईये।" गंगा पार पहुँचकर केवट प्रभु को दंडवत प्रणाम करता है। उसे दंडवत करते देख भगवान् को संकोच हुआ कि मैंने इसे कुछ दिया नहीं।
केवट उतरि दंडवत कीन्हा,
प्रभुहि सकुच एहि नहि कछु दीन्हा।
कितना विचित्र दृश्य है, जहाँ देने वाले को संकोच हो रहा है और लेने वाला केवट उसकी भी विचित्र दशा है कहता है -
नाथ आजु मैं काह न पावा,
मिटे दोष दुःख दारिद्र दावा।
बहुत। काल मैं कीन्ही मजूरी,
आजु दीन्ह बिधि बनि भलि भूरी।।
लेने वाला कहे बिना लिए ही कह रहा है कि "हे नाथ ! आज मैंने क्या नहीं पाया मेरे दोष दुःख और दरिद्रता सब मिट गये। आज विधाता ने बहुत अच्छी मजदूरी दे दी। आपकी कृपा से अब मुझे कुछ नहीं चाहिये।" भगवान् उसको सोने की अंगूठी देने लगते हैं तो केवट कहता है प्रभु उतराई कैसे ले सकता हूँ। हम दोनों एक ही बिरादरी के हैं और बिरादरी वाले से मजदूरी नहीं लिया करते।
दरजी, दरजी सेे न ले सिलाई,
धोबी, धोबी से न ले धुलाई।
नाई, नाई से न ले बाल कटाई,
फिर केवट, केवट से कैसे ले उतराई।।
आप भी केवट, मैं भी केवट, अंतर इतना है कि हम नदी में इस पार से उस पार लगाते हैं, आप संसार सागर से पार लगाते हैं, हमने आपको पार लगा दिया, अब जब मेरी बारी आये तो आप मुझे पार लगा देना। प्रभु आज तो सबसे बड़ा धनी मैं ही हूँ। क्योंकि वास्तव में धनी वो होता है, जिसके पास आपका नाम है, आपकी कृपा है। आज मेरे पास दोनों ही हैं। मैं ही सबसे बड़ा धनी हूँ।
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"जय श्री राम"
🙏🙏

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