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W Y Yeni makale yazdı
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Hemmapaketet 2023-24 kommer att släppas i mitten av maj 2023 | #any

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अंत तक पढ़ें 🙏🏻🙏🏻
आसमां में बादल घनघना रहे थे,
और कुर्ते की जेब में फ़ोन।
उत्सुकता से ऊपर देखती नज़रों ने,
यकायक नीचे देखा।
बड़े शहर से बेटा बोल रहा था,
अपने पिता को नाप तोल रहा था।
पिताजी तराज़ू के एक पल्लड़ में
नई भर्तियों का भार बढ़ गया है,
तैयारी की राशि वाला पल्लड़
हल्का होकर ऊपर चढ़ गया है।
पिता ने कहा तुम्हारा काम पढ़ाई है,
तुम्हारे ही लिये मेरी कमाई एक एक पाई है।
बेटे इस बार फिर खेतों में जाऊँगा,
जमकर के पसीना बहाऊँगा,
तुम्हें क़ाबिल बनाने के लिये,
तुम कहोगे वहीं तुम्हें पढ़ाऊँगा।
बस इसीलिए मैंने ट्रेक्टर नही ख़रीदा,
बेलगाड़ी से काम चला रहा हूँ,
तुम्हारे आड़े नही आये ग़रीबी,
हड्डियाँ अपनी गला रहा हूँ।
तुम जी भर के पढ़ना,
पर्चा आजकल थोड़ा सख़्त लगता है,
मुझे मालूम है,मैं जानता हूँ,
सफल होने में वक़्त लगता है।
वो गाँव की चौपाल पर,
चार आदमी कह रहे थे,
बेटे को कितने बरस हो गये,
अब भी कहीं लगा नहीं है।
मैंने उनको समझा दिया,
नौकरियों का काल है,
बहुत मेहनत करता है,
मगर अभी भाग जगा नही है।
उनकी बातों की फ़िक्र न करना,
बस अपना ध्यान रखना,
तुम्हारी माँ बीमार है,
कल ही दिखा कर लाया हूँ।
खेत में पानी अब नही रहा,
मानसून कमज़ोर है,
फिर भी चला के हल,
कुछ उम्मीदें बीजा कर आया हूँ।
लो माँ से बात कर लो,
मान ही नही रही है,
कह रहा हूँ उसके पास समय नही है,
पर बात को जान ही नही रही है।
बेटे तुम गाँव मत आना,
तुम्हारा समय ख़राब हो जायेगा,
दो दिन नही पढ़ेगा,
तो बेवजह का दबाब हो जायेगा।
अब तेरी दीदी सयानी हो रही है,
उसकी चिंता सताने लगी है,
तुम्हारे दादा की दवाईयाँ,
बड़ी महँगी आने लगीं हैं।
पिताजी ने फ़ोन माँ से छीन लिया,
एक आँसु आ गया था,हथेली में बीन लिया।
बेटा तुम्हारी माँ तो यूँ ही बोल रही है,
तबियत जो ख़राब है,
आजकल बहकी बहकी बात करने लगी है,
चलो मैं पैसे भेज दूँगा,अभी काट रहा हूँ,
जानता हूँ अब तुम्हारी आँखें भरने लगी हैं।
बेटे ने बड़ी देर सुनने के बाद कहा,
बाबा बस इस बार क़िस्मत साथ दे जाये,
पर आप पैसे डलवाना याद रखना,
ऐसा बोलकर उसने फ़ोन नीचे धर दिया।
पिताजी पैसे भेज रहें हैं,
तुम्हारा जन्मदिन भी मनेगा और
सब मुश्किल भी आसां हो जायेगी,
ख़ुशी से चिल्लाते हुये उसने,
अपनी किसी शहरी दोस्त को बाहों में भर लिया!

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दरकती दीवारों की मरम्मत जरुरी है।
घर के बुजुर्गों से मोहब्बत जरुरी है।।
तुमने तो करवा लिया बीमा अपना-
पर पूछना उनकी तबियत ज़रूरी है।
उन्हे भी हक है जश्न-ए-रोशनाई का-
हमारी धरोहरों की जीनत जरुरी है।
थामा था जिन्होंने तुम्हारा नन्हा हाथ-
उन धूजते हाथों को हिम्मत ज़रूरी है।
तुम पूज लो नई तिजोरियों को मगर-
पुराने गल्ले की भी इबादत ज़रूरी है।
नये खून की सरपरस्ती मंज़ूर होगी-
पर किसी पुराने की ज़मानत ज़रूरी है।
उसकी छाँव में हुई हैं महफ़िलें ‘शेखर’-
गट्टे वाले बरगद की सदारत ज़रूरी है।

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मैंने जब खोली गुदड़ी की तुरपाई।
❤️माँ मुझे बहुत याद आई।।
उसके एक कोने मे लगा था,
मेरे विद्यालय की गणवेश
का स्वेटर।
उसी से सटा के जुड़ा हुआ था,
मेरे भाई का वो खो-खो
वाला नेकर।
जिसे पहन कर बड़ी भाव
खाती थी-
बहिन की वो फेवरेट वाली फ्रॉक,
क्या गजब की काम आई।
मैंने जब खोली गुदड़ी की तुरपाई।
माँ मुझे बहुत याद आई।
दादी की वो लुगड़ी जिस पर
पत्तीदार गोटा था,
पापा का वो कोट जिसका
कपड़ा बड़ा मोटा था।
वो जिसका हम खेल खेल में
टेन्ट बना लेते थे,
वो चादर भी अलट पलट
कर थी लगाई।
मैंने जब खोली गुदड़ी की तुरपाई।
माँ मुझे बहुत याद आई।
तकियों की खोली,
कमीज,पजामे,बनियान,मफलर।
मोजे,टोपे,टाई,
रुमाल,तौलिया,टी शर्ट भर भर।
सबको सलीके,स्नेह,
समर्पण के रंग बिरंगे
धागों से जोड़ा,
और अपनी सबसे सुन्दर साड़ी,
कवर बनाकर चढ़ाई।
मैंने जब खोली गुदड़ी की तुरपाई।
माँ मुझे बहुत याद आई।
उसने पुरानी ख़ुशियों से नई
ख़ुशी जीने की अनमोल
कला थी सिखाई।
मैंने जब खोली गुदड़ी की तुरपाई।
माँ मुझे बहुत याद आई।

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hole1972 Yeni makale yazdı
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Was ist Poker und wie wird es gespielt? | #texas holdem poker

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मुश्किलों को आसान रखा है।
बस जीने का सामान रखा है।।
ज़िन्दगी तेरी इन ज़रूरतों ने-
पाँवों का इम्तिहान रखा है।
घड़ियों पर नज़रें रख के भी-
हर लम्हा इत्मिनान रखा है।
गलती नही तुम्हारी इसमें-
जो मुझ पे एहसान रखा है।
हमने दिल के तहखाने से-
सबको ही अनजान रखा है।
वो अभिमानी इसलिए ठहरे-
हद से ज़्यादा मान रखा है।
हमने टूटे ख़्वाबों का ‘शेखर’-
सोच के नाम उड़ान रखा है।

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