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Happiest of birthdays to my boy Harry! 💖 Spent far too long looking for some sensible photos to post. The temptation to stitch you up was real 😂 why you always a big goon?!! 🤣 Love you lots and hope you have a lovely day, il see your handsome face soon! 😘✨

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Hideaway with the birthday boy 🤎

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मैं होश पूर्वक मरा। इसलिए मुझे होशपूर्वक जन्म लेने का अवसर मिला। मैंने अपने माता-पिता को चुना। पृथ्वी पर हजारों मूर्ख प्रतिक्षण संभोग कर रहे है और लाखों अजन्मी आत्माएं किसी भी गर्भ में प्रवेश करने को तैयार है। मैंने उपयुक्तो क्षण की प्रतीक्षा में सात सौ साल इंतजार किया। और अस्तित्व का धन्यवाद कि वह क्षण मुझे मिल गया। लाखों वर्षो की तुलना में सात सौ साल कुछ भी महत्व नहीं रखते है। केवल सात सौ साल! हां मैं कह रहा हूं, केवल!
और, मैंने एक बहुत ही गरीब, लेकिन बहुत ही अंतरंग दंपति को चुना। मेरे पिता के ह्रदय में मेरी मां के लिए इतना प्रेम था कि मैं नहीं सोचता हूं कि कभी उन्होंने किसी दूसरी स्त्री को उस दृष्टि से देखा हो। यह कल्पना करना भी असंभव है--मेरे लिए भी, जो कि कुछ भी कल्‍पना कर सकता है--कि मेरी मां ने स्वप्न में भी किसी और पुरूष के बारे में सोचा हो--यह असंभव है।
मैंने दोनों को जाना है। वे इतने घनिष्ठत थे, एक-दूसरे के प्रति इतने प्रेमपूर्ण थे, इतने संतुष्ट थे, हालांकि गरीब थे--गरीब फिर भी अमीर। इस घनिष्ठरता और परस्पमर प्रेम के कारण ही वे गरीबी में भी इतने समृद्ध थे। जब मेरे पिता की मृत्यु हुई तो मैं अपनी मां के बारे में चिं‍तित था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि वे जिंदा रह पाएंगी। उन दोनों ने एक-दूसरे को इतना प्रेम किया था कि लगभग एक ही हो गए थे। वे बच पाईं क्यों कि वे मुझे प्रेम करती है। उनके बारे में मैं हमेशा चिंति‍त रहा हूं। मैं उन्हें अपने पास ही रखना चाहता था, ताकि उनकी मृत्यु परम संतुष्टि में हो सके। अब तुम्हारे द्वारा एक दिन सारे संसार को मालूम होगा--कि वे बुद्धत्व को उपलब्ध हो गई है। मैं उनका अंतिम मोह था। अब उनके लिए कोई मोह नहीं रह गया है। वे एक संबुद्ध महिला हैं--अशिक्षित, सरल, उनको तो यह भी नहीं मालूम कि बुद्धत्व क्या होता है। यही तो सौंदर्य है। कोई बुद्ध हो सकता है, बिना यह जाने कि बुद्धत्व क्या है। और इससे उल्टा भी हो सकता है: कोई बुद्धत्व के बारे में सब जान सकता है और फिर भी अबुद्ध बना रहा सकता है। मैंने इस दंपति को चुना-सीधे-सादे सरल ग्रामीण। मैं राजाओं और रानियों को भी चुन सकता था। यह मेरे हाथ में था। सब प्रकार के गर्भ उपलब्ध थे। पर मैं बहुत ही सरल और सादी रूचि का व्यक्ति हूं--मैं हमेशा सर्वोत्‍तम से संतुष्ट हो जाता हूं। यह दंपति गरीब थी, बहुत गरीब। तुम समझ न सकोगे कि मेरे पिता के पास केवल सात सौ रूपये थे। यही उनकी कुल संपत्ति थी। फिर भी मैंने उनको अपना पिता चुना। उनके पास एक संपन्नता थी, जिसे आंखें नहीं देख सकतीं; एक अभिजात्य था जो दिखाई नहीं देता। तुममें से बहुतों ने उन्हें देखा है और निश्चित ही उनके सौंदर्य को अनुभव किया होगा। वे सीधे, बहुत सीधे और सरल थे, तुम उन्हें ग्रामीण कह सकते हो। लेकिन वे समृद्ध थे--सांसारिक अर्थों में नहीं, लेकिन अगर कोई पारलौकिक अर्थ है । सात सौ रूपये, यहीं उनकी कुल पूंजी थी।
मुझे तो पता भी न चलता लेकिन जब उनके व्यापार का दिवाला निकल रहा था। और वे बहुत प्रसन्न थे। मैंने उनसे पूछा : ‘दद्दा’--‘मैं उन्हेंक दद्दा कहता था।‘ आप जल्दी ही दिवालिया होने वाले है और आप खुश है, क्या बात है, क्या‘ अफवाहें गलत है?’ उन्होंने कहा : ‘नहीं अफवाहें बिलकुल सही है। दिवाला निकलेगा ही। लेकिन मैं खुश हूं क्यों कि मैंने सात सौ रूपये बचा लिए है। जिससे मैंने शुरूआत की थी। और वो जगह तुम्हें दिखाऊ…वे सात सौ रूपये अभी भी जमीन में कहीं गड़े हुए है और वे वहीं गड़े रहेगें जब तक कि संयोगवश कोई उन्हें पा न लें। मैंने उनसे कहा, ‘हालांकि आपने मुझे वो जगह दिखा दी है, लेकिन मैंने देखा नहीं है।‘ उनहोंने पूछा : ’क्याै मतलब है तुम्हारा?’ ‘मैं किसी भी विरासत का हिस्सा नहीं हूं--बड़ी या छोटी, अमीर या गरीब।‘
लेकिन उनकी और से वे बहुत ही प्यार करने वाले पिता थे। जहां तक मेरा सवाल है, मैं प्यार करने वाला बेटा नहीं हूं

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ज्योतिष बहुत वैज्ञानिक चिंतन है . वह यह कहता है कि आपका आज कल | से निकला है , आपका आनेवाला कल आज से निकलेगा . और ज्योतिष यह भी कहता है कि जो कल होनेवाला है वह | किसी सूक्ष्म अर्थों में आज भी मौजूद होना | चाहिए . अब्राहम लिंकन ने मरने के तीन | दिन पहले एक सपना देखा . जिसमें उसने देखा कि उसकी हत्या कर दी गयी है और हाइट हाउस के एक खास कमरे में उसकी लाश पड़ी हुई है . उसने कमरे का नंबर भी | देखा . उसकी नींद खुल गई . वह हंसा , उसने अपनी पत्नी से कहा कि मैंने अभी एक | सपना देखा है कि मेरी हत्या कर दी गयी है . इस मकान के फलां नंबर के कमरे में मेरी लाश पड़ी है . मेरे सिरहाने तू खड़ी हुई है और आस - पास फला - फलां लोग खड़े हुए हैं . ' हंसी हुई , बात हुई लिंकन सो गया , पत्नी सो गयी ! और तीन दिन बाद लिंकन की हत्या हुई और उसी नंबर के कमरे में और उसी जगह लाश पड़ी थी और उसी क्रम में आदमी खड़े थे . अगर तीन दिन बाद जो होनेवाला है वह किसी अर्थों में आज ही न हो गया हो तो उसका सपना कैसे निर्मित हो सकता है ? सपने में झलक तो उसी बात की मिल सकती है जो किसी अर्थ में अभी भी कहीं मौजूद हो . ज्योतिष का मानना है कि भविष्य हमारा अज्ञान है इसलिए भविष्य है . अगर हमें ज्ञान हो तो भविष्य जैसी कोई घटना नहीं है .

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माँ से बड़ा कोई शब्द नही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की माँ हीराबेन जी का निधन बेहद दुःखद है।
ईश्वर दिवंगत आत्मा को श्री चरणों में स्थान प्रदान करें।
ॐ शान्ति
#विनम्र_श्रंद्धाजलि
Narendra Modi

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क्रिकेटर ऋषभ पंत का भीषण कार हादसा। दिल्ल से रुड़की जा रहे थे। रुड़की के नारसन बॉर्डर के पास कार पलट गई। इस हादसे में ऋषभ गंभीर रूप से घायल हैं। दिल्ली रेफर किया गया है। भगवान जल्दी से हमारे शेर को ठीक कर दो 😥

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#rajeshkhanna #twinklekhanna

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बार बार दिन ये आये
बार बार दिल ये गाये
तुम जियो हजारों साल..
जन्म दिन की अशेष शुभकामनाएं बच्चा!!

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कोई मरना नहीं चाहता।
आप कहेंगे, कुछ लोग आत्मघात कर लेते हैं। निश्चित कर लेते हैं। लेकिन कभी आपने खयाल किया कि आत्मघात कौन लोग करते हैं! वे ही लोग, जिनका जीवन का मोह बहुत गहन होता है, डेंस। यह बहुत उलटी बात मालूम पड़ेगी।
एक आदमी किसी स्त्री को प्रेम करता है और वह स्त्री इनकार कर देती है, वह आत्महत्या कर लेता है। वह असल में यह कह रहा था कि जीऊंगा इस शर्त के साथ, यह स्त्री मिले; यह कंडीशन है मेरे जीने की। और अगर ऐसा जीना मुझे नहीं मिलता–उसका जीने का मोह इतना सघन है–कि अगर ऐसा जीवन मुझे नहीं मिलता, तो वह मर जाता है। वह मर रहा है सिर्फ जीवन के अतिमोह के कारण। कोई मरता नहीं है।
एक आदमी कहता है, महल रहेगा, धन रहेगा, इज्जत रहेगी, तो जीऊंगा; नहीं तो मर जाऊंगा। वह मरकर यह नहीं कह रहा है कि मृत्यु मुझे पसंद है। वह यह कह रहा है कि जैसा जीवन था, वह मुझे नापसंद था। जैसा जीना चाहता था, वैसे जीने की आकांक्षा मेरी पूरी नहीं हो पाती थी। वह मृत्यु को स्वीकार कर रहा है, ईश्वर के प्रति एक गहरी शिकायत की तरह। वह कह रहा है, सम्हालो अपना जीवन; मैं तो और गहन जीवन चाहता था। और भी, जैसी मेरी आकांक्षा थी, वैसा।
एक व्यक्ति किसी स्त्री को प्रेम करता है, वह मर जाती है। वह दूसरी स्त्री से विवाह करके जीने लगता है। इसका जीवन के प्रति ऐसी गहन शर्त नहीं है, जैसी उस आदमी की, जो मर जाता है।
जिनकी जीवन की गहन शर्तें हैं, वे कभी-कभी आत्महत्या करते हुए देखे जाते हैं। और कई बार आत्महत्या इसलिए भी आदमी करता देखा जाता है कि शायद मरने के बाद इससे बेहतर जीवन मिल जाए। वह भी जीवन की आकांक्षा है। वह भी बेहतर जीवन की खोज है। वह भी मृत्यु की आकांक्षा नहीं है। वह इस आशा में की गई घटना है कि शायद इस जीवन से बेहतर जीवन मिल जाए। अगर बेहतर जीवन मिलता हो, तो आदमी मरने को भी तैयार है। मृत्यु के प्रति उन्मुखता नहीं है; हो नहीं सकती। जीवन का मोह है।

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महाभारत सूचक है। वह यह कह रहा है, युधिष्ठिर धर्मराज थे, एक महापंडित की तरह। धर्म उनके जीवन की जिज्ञासा न थी, ऊपर का आचरण था। शास्त्र अनुकूल चलने की परंपरा थी, इसलिए चले थे। लेकिन कोई जीवन की क्रांति न थी। धर्मराज थे, फिर भी जुआ खेल सकते थे, पत्नी को दांव पर लगा सकते थे। पंडित थे, ज्ञानी नहीं थे। धर्म क्या कहता है, यह सब जानते थे, लेकिन यह धर्म की उदभावना अपने ही प्राणों से न हुई थी। सज्जन थे, धार्मिक न थे। इसलिए उनको कोई अड़चन न हुई।
पंडित लड़ सकता है। उसको कोई अड़चन नहीं है। पंडित कभी धर्म को जीवन का हिस्सा नहीं मानता, बुद्धि का हिस्सा मानता है। अगर किसी को शास्त्र के संबंध में कोई अड़चन होती, तो युधिष्ठिर हल कर देते। लेकिन जीवन की अड़चन तो वे खुद ही हल नहीं कर सकते थे। वह प्रश्न भी उन्हें न उठा।
प्रश्न उठा अर्जुन को, जिसको धार्मिक कहने का कोई भी कारण नहीं है। न तो वह कोई धर्मज्ञाता था, न कोई धर्मराज था। जीवनभर युद्ध ही किया था, एक शुद्ध क्षत्रिय था, अहंकारी था, अहंकार को प्रखर त्वरा में जाना था, वही उसकी जीवन—सिद्धि थी। इसको कठिनाई आ गई!
अहंकार को जिसने जीया है, एक न एक दिन कठिनाई उसे आ जाएगी। एक दिन वह पाएगा कि अहंकार तो बड़ी दुर्गति में ले आया।
तो इसके हाथ शिथिल हो गए हैं। यह कहता है, अब मैं यह करना छोड्कर भाग जाना चाहता हूं। इसका करना असफल हो गया है। इसलिए न करने की बात इसको समझ में आ सकी। यह कर—करके देख लिया, फल कुछ पाया नहीं, फल यह है कि युद्ध हो रहा है। बोए थे बीज आशा में कि मधुर फल लगेंगे। हिंसा लगी, जहरीले फल आ गए। अगर ये ही फल हैं कृत्य के, तो अर्जुन कहता है, छोड़ता हूं सब, मैं संन्यस्त हो जाता हूं। मैं जाता हूं? मैं भाग जाता हूं। इसी से उसकी गढ़ जिज्ञासा उठी।
इसलिए मैं निरंतर कहता हुं, जिनके अहंकार परिपक्व नहीं हैं, वे समर्पण नहीं कर सकते। अहंकार चाहिए पहले पका हुआ, तभी समर्पण हो सकता है। कच्चा, अनपका, अधूरा अहंकार है, कैसे समर्पण करोगे! कर भी दोगे, तो हो न पाएगा; अधूरा रहेगा। अनुभव ही न हुआ था।
यह अर्जुन पक गया था। क्षत्रिय यानी अहंकार। और फिर क्षत्रियों में अर्जुन, अहंकार का गौरीशंकर। वह कहता है, मुझे जाने दो। कृष्ण ने इसलिए उसे जो संदेश दिया, वह बडा अनूठा है। वह कह रहा है कि मुझे जाने दो, मैं छोड़ दूं सब। लेकिन कृष्ण जानते हैं, वह इतना गहरा क्षत्रिय है अर्जुन कि यह छोड़ना भी कृत्य ही है, यह भी कर्म है, त्याग भी कर्म है। वह कहता है, मैं छोड़ दूं। मैं अभी भी बचा है। लडूंगा तो मैं, छोडूंगा तो मैं। युद्ध बेकार हुआ, इसलिए मैं त्याग करता हूं। लेकिन मैं त्याग के भीतर भी बचेगा। कृष्ण जानते हैं, यह जंगल भागकर संन्यासी हो जाएगा, तो भी अहंकार से बैठा रहेगा अड़ा हुआ। यह संन्यासी हो नहीं सकता। यह इतना आसान नहीं है।
संन्यास बड़ी गढ़ घटना है, आसान नहीं है, बड़ी नाजुक है, तलवार की धार पर चलना है। इतना सरल होता कि भाग गए, संन्यासी हो गए, ‘तब तो संन्यास में और संसार में बस जरा—सी दौड़ का ही नाता है, कि छोड़ दी दुकान, भाग गए; मंदिर में बैठ गए, संन्यासी हो गए। तो यह तो ऐसा हुआ कि जैसे संसार बाहर है, भीतर नहीं है।
संसार भीतर है और अर्जुन की दृष्टि में है। इसलिए कृष्ण ने कहा कि ऐसे छोड़ने से कुछ न होगा, असली छोड़ना तो वह है कि तू कर भी और जान कि नहीं करता है। ऐसे कर कि कर्ता का भाव पैदा न हो, वही संन्यास है। तू परमात्मा को करने दे, तू बीच से हट जा। अगर तू सच में ही समझ गया है कि करने का फल दुखद है, कर्ता का भाव पीड़ा लाता है, हिंसा लाता है, अगर तू ठीक से समझ गया, तो अब यह संन्यास की बात मत उठा। क्योंकि तब संन्यास भी तेरे लिए करना ही होगा, तब तू संन्यासी हो जा, कर मत। यही फर्क है। कोशिश मत कर, हो जा। चेष्टा मत कर, बस हो जा।
अर्जुन यही पूछता है कि यह कैसे होगा! यह कैसे होगा! संदेह उठाता है। और कृष्ण समझाए चले जाते हैं। इस समझाने में ही अर्जुन की पर्त—पर्त टूटती चली जाती है। एक—एक पाया कृष्ण खींचते जाते हैं। आखिरी घड़ी आती है, जहां अर्जुन कहता है, मेरे सारे संदेह गिर गए; मैं नि:संशय हुआ हूं; तुमने मुझे जगा दिया। फिर वह युद्ध करता है; फिर वह भागता नहीं। फिर भागना कहां!
फिर भागना किससे! फिर वह परमात्मा के चरणों में अपने को छोड़ देता है, वह निमित्त हो जाता है। वह कहता है, अब तुम जो करवाओ। लडवाओ, लडूंगा। भगाओ, भाग्ता। अपनी तरफ से कुछ न करूंगा। अपने को हटा लेता है।
यह जो अकर्ता भाव से किया हुआ कर्म है, यही मुक्ति है। ऐसे कर्म की रेखा किसी पर छूटती नहीं, कोई बंधन नहीं बनता। करते हुए मुक्त हो जाता है व्यक्ति। गुजरी नदी से, और पैर पानी को नहीं छूते। बाजार में खड़े रहो, और बाजार का धुआ तुम्हें स्पर्श भी नहीं करता।
ओशो - गीता दर्शन – भाग - 8, - अध्‍याय—18
(प्रवचन—चौथा) - सदगुरू की खोज

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