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वृंदावन का एक साधू अयोध्या की गलियों में राधे कृष्ण - राधे कृष्ण जप रहा था । अयोध्या का एक साधू वहां से गुजरा तो राधे कृष्ण राधे कृष्ण सुनकर उस साधू को बोला - अरे जपना ही है तो सीता राम जपो, क्या उस टेढ़े का नाम जपते हो ?
वृन्दावन का साधू भड़क कर बोला - जरा जबान संभाल कर बात करो, हमारी जबान पान खिलाती हैं तो लात भी खिलाती है । तुमने मेरे इष्ट को टेढ़ा कैसे बोला ?
अयोध्या वाला साधू बोला इसमें गलत क्या है ? तुम्हारे कन्हैया तो हैं ही टेढ़े । कुछ भी लिख कर देख लो-
उनका नाम टेढ़ा - कृष्ण
उनका धाम टेढ़ा - वृन्दावन
वृन्दावन वाला साधू बोला चलो मान लिया, पर उनका काम भी टेढ़ा है और वो खुद भी टेढ़ा है, ये तुम कैसे कह रहे हो ?
अयोध्या वाला साधू बोला - अच्छा अब ये भी बताना पडेगा ? तो सुन -
यमुना में नहाती गोपियों के कपड़े चुराना, रास रचाना, माक्खन चुराना - ये कौन से सीधे लोगों के काम हैं ? और बता आज तक किसी ने उसे सीधे खडे देखा है क्या कभी ? ...
वृन्दावन के साधू को बड़ी बेईज्जती महसूस हुई ,
और सीधे जा पहुंचा बिहारी जी के मंदिर अपना डंडा डोरिया पटक कर बोला - इतने साल तक खूब उल्लू बनाया लाला तुमने ।
ये लो अपनी लकुटी, कमरिया और पटक कर बोला ये अपनी सोटी भी संभालो
हम तो चले अयोध्या राम जी की शरण में और सब पटक कर साधू चल दिया।
अब बिहारी जी मंद मंद मुस्कुराते हुए उसके पीछे पीछे ।
साधू की बाँह पकड कर बोले अरे " भई तुझे किसी ने गलत भड़का दिया है "
पर साधू नही माना तो बोले, अच्छा जाना है तो तेरी मरजी ,
पर यह तो बता राम जी सीधे और मै टेढ़ा कैसे ?
कहते हुए बिहारी जी कुए की तरफ नहाने चल दिये ।
वृन्दावन वाला साधू गुस्से से बोला -
" नाम आपका टेढ़ा- कृष्ण,
धाम आपका टेढ़ा- वृन्दावन,

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