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वैज्ञानिक तथ्य, जो ये सिद्ध करते है की रामायण की रचना आज से लगभग ९ लाख वर्ष पूर्व हुई।
सतयुग 17 लाख 28 हजार वर्ष, त्रेतायुग 12 लाख 96 हजार वर्ष, द्वापर युग 8 लाख 64 हजार वर्ष और कलियुग 4 लाख 32 हजार वर्ष का बताया गया है।
अर्थात् श्रीराम के जन्म होने और हमारे समय के बीच द्वापरयुग है।
कलियुग के लगभग 5200 वर्ष बीत चुके है।
महर्षि बाल्मीकि जी, राम जी के समकालीन थे, जिन्होंने आज से लगभग ९ लाख वर्ष पूर्व संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की जिसे श्री तुलसीदास जी ने ६०० वर्ष पूर्व अवधि भाषा में रूपांतरित किया जो रामचरितमानस कहलाई।
वैज्ञानिक तथ्य :- रामायण सुन्दरकांड सर्ग 5, श्लोक 12 मे महर्षि वाल्मीकि जी लिखते है- वारणैश्चै चतुर्दन्तै श्वैताभ्रनिचयोपमे भूषितं रूचिद्वारं मन्तैश्च मृगपक्षिभि|
अर्थात् जब हनुमान जी वन मे श्रीराम और लक्ष्मण के पास जाते है तब वो सफेद रंग 4 दांतो नाले हाथी(GOMPHOTHERE) को देखते है,
कार्बन डेटिंग पद्धति से इसकी की आयु लगभग 10 लाख से 50 लाख के आसपास मिलती है।
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विश्व विजयी कार्कोट कायस्थ राजवंश के महान प्रतापी राजा ललितादित्य मुक्तापिड जिन्होंने 300 वर्षों तक तुर्की और अरबी आक्रांताओं को भारत मे घुसने नही दिया तथा भारत से लेकर तिब्बत,ईरान और चीन तक अपना साम्राज्य फैलाया।
भारत के इतिहास में एक राजा ऐसा हुआ जिसे ना पाठ्य पुस्तक में स्थान मिला ना ही किसी भारतीय इतिहासकार ने उनपर शोध किया लेकिन विदेशी इतिहासकार इन्हें "भारत का सिकंदर" मानते हैं।
ललितादित्य मुक्तापिड का काल भारतवर्ष तथा कश्मीर के इतिहास में स्वर्णिम काल के रूप में माना जाता है।ललितादित्य के काल मे कश्मीर सामरिक तथा सांस्कृतिक रूप से अत्यधिक समृद्ध हुआ और कश्मीर का विस्तार मध्य एशिया और बंगाल तक पहुँच गया।
ललितादित्य का जन्म लगभग 699ई० में हुआ था ,उन्होने अरब और तुर्की को आक्रान्ताओं को सफलतापूर्वक दबाया तथा तिब्बती सेनाओं को भी पीछे धकेला। उन्होने राजा यशोवर्मन को भी हराया जो सम्राट हर्षवर्धन का एक उत्तराधिकारी थे। उनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। उन्होने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया।
ललितादित्य के समय मे कश्मीर सबसे शक्तिशाली राज्य था ललितादित्य ने कश्मीर में (724-761 ई०)तक राज किया था ।ललितादित्य का साम्राज्य काराकोरम पर्वत श्रृंखला से लेकर विंध्य पर्वत तक फैला हुआ था। उत्तर में तिब्बत से लेकर द्वारिका और ओडिशा के सागर तट और दक्षिण तक, पूर्व में बंगाल और पश्चिम में मध्य एशिया तक कश्मीर का राज्य फैला हुआ था जिसकी राजधानी प्रकरसेन नगर थी ललितादित्य की सेना की पदचाप अरण्यक(ईरान) तक पहुँच गई थी।
ललितादित्य मुक्तापिड का उल्लेख कल्हण कृत "राजतरंगिणी" के अतिरिक्त चीन के तेंग राजवंश की पुस्तक"(Xing Teng Shu)", अलबरूनी की पुस्तक "तारिक-ए-हिन्द" एवं Zheng Yin की पुस्तक "Sixteen Kingdom" में भी मिलता है।कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिणी में ललितादित्य मुक्तापिड का विस्तृत रूप से वर्णन मिलता है।
* #मार्त्तण्ड_मंदिर* - कश्मीर के अनंतनाग में स्थित प्रसिद्ध सूर्य भगवान के मंदिर ,मार्त्तण्ड मंदिर का निर्माण ललितादित्य ने ही करवाया था। ललितादित्य ने मार्त्तण्ड मंदिर के अलावा अनेको मंदिर का निर्माण करवाया । तथा सर्व धर्म समभाव की नीति को अपनाते हुए मंदिरों के साथ साथ अनेको बौद्ध स्तूपों का भी निर्माण करवाया था।
* #प्रतापी_कायस्थ_ललितादित्य_की_शौर्यगाथा* - ललितादित्य का विस्तृत साम्राज्य चीन(पीकिंग) से लेकर ईरान (अरण्यक) एवं असम(प्रागज्योतिष) से लेकर मध्य भारत में विंध्य पर्वत से लेकर कावेरी नदी तक व खंभात की खाड़ी से लेकर बंगाल की खाड़ी (कलिंग)तक था ।
*कन्नौज_का_युद्ध* - ललितादित्य का मुख्य विजय अभियान कन्नौज के राजा यशोवर्मन पर जीत रहा है ।कन्नौज के राजा यशोवर्मन मध्य भारत के एक शक्तिशाली राजा थे मध्य भारत मे इनका साम्राज्य बहुत विस्तृत था ललितादित्य और यशोवर्मन के बीच एक भीषण युद्ध हुआ ।जिसमें यशोवर्मन पराजित हुआ और ललितादित्य ने मध्य भारत पर पूर्ण रूप से अपना साम्राज्य स्थापित किया।
* #तिब्बत_विजय* -- ललितादित्य ने तिब्बत के कबीलाई आक्रमणकारियों से न केवल कश्मीर की रक्षा की अपितु सम्पूर्ण तिब्बत को ही जीतकर अपने साम्राज्य का विस्तार चीन की सीमा तक कर दिया था ।
मुस्लिम आक्रांता* -- राजा दाहिर को 712ई० में पराजित कर अरबों ने भारत के कश्मीर राज्य पर हमला कर दिया था उस वक्त कश्मीर के राजा चंद्रपिण्ड ने अरबों को पराजित कर वापस सिंध की ओर भेज दिया था ।राजा चंद्रपिण्ड की मृत्यु के बाद अरबों ने पुनः कश्मीर पर आक्रमण किया था उस समय कश्मीर के राजा कायस्थ राजा ललितादित्य मुक्तापिड थे ।ललितादित्य ने न केवल अरब आक्रांता को अनेको बार पराजित करके अरबों से कश्मीर को बचाया अपितु सिंध से भी अरबों को भगाया।ललितादित्य ने अपने अद्धभुत युद्ध कौशल व कुशल नीतियों के कारण ही अनेको युद्धों को जीता था 12 वर्षो तक अनवरत युद्ध लड़ा और अनेको राजाओ पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार किया ।
हर समय युद्ध के लिए ततपर रहने व बिना थके युद्ध लड़ने के अपने अद्भुत क्षमता के कारण इतिहासकारों ने ललितादित्य को " "Belligerent Warrior" or "WarMonger Warrior" माना है ।।
#मृत्यु : - ललितादित्य की मृत्यु को लेकर इतिहासकारों का एकमत नही है कुछ इतिहासकारों का मानना है कि विजय अभियान के समय अपने सेना से पृथक हो गए और मृत्यु हो गई वहीं कुछ अन्य इतिहासकारों का मानना है कि युद्ध विजय अभियान के पश्चात राज पाट को त्याग कर वे हिमालय में वैराग्य को प्राप्त करने के लिए चले गए और वहीं मृत्यु हो गई।
महान प्रतापी शूरवीर राजा ललितादित्य को शत शत नमन। हैरत की बात है कि इतनी उपलब्धियों के बावजूद इनको पाठ्यक्रम में जगह नही मिली।