Ontdekken postsOntdek boeiende inhoud en diverse perspectieven op onze Ontdek-pagina. Ontdek nieuwe ideeën en voer zinvolle gesprekken
सोनीपत ये है कामी गाँव (सोनीपत) की बेटी #जन्नत_पांचाल,जिसकी उम्र मात्र 13 साल हैं इतनी कम उम्र में तीरंदाजी में 3 मैडल जीत चुकी हैं ,जो नेशनल लेवल पर हैं!!🥇🥇🏹🏹
जो कि एक गरीब परिवार से आती हैं पिता प्राइवेट नौकरी करके घर का खर्च चलाता है,छोटे भाई की उम्र 10 साल हैं वो भी विकलांग है ओर घर मे कोई आय का साधन भी नही हैं,😒😒
इतनी गरीबी होते हुए यह बेटी संघर्ष कर रही हैं किसी नेता-मंत्रियों के पास ऐसी गरीब परिवार की बेटियों के लिए कोई समय नही होता,आज जब हमें ऐसी प्रतिभाशाली बेटी का पता लगा तो गाँव मे इस बेटी के घर जाकर 5100 रुपये इस बेटी को सम्मान राशि दी आपके अपने हर्ष छिकारा !!🙏🏻🙏🏻💐
मुझे भी पता है इतने से रुपियो में कुछ भी नही हो सकता,पर हाँ इस बेटी का हौसला जरूर बढ़ेगा ,आप लगें रहों मेरी बहन टीम हर्ष छिकारा आगे भविष्य में भी आपके साथ खड़ी मिलेगी!!🤝🏻🙏🏻🤝🏻
नोट-जब कोई खिलाड़ी सँघर्ष करता है उसको साथ कि पैसों की जरूरत होती हैं तब कोई आगे नही आता,जब खिलाड़ी कामयाब हो जाता है अपने पैरों पर खड़ा हो जाता है उसका कद बडा हो जाता है तो अपने नम्बर बनाने के लिए नेता-मंत्रियों व पत्रकारों का तांता लग जाता हैं सँघर्ष में साथ जरूर दे कामयाबी के बाद तो उसको किसी की जरूरत ही नही होती!!!✌🏻✌🏻
"नमक से रक्त बनता है रक्त से नमक नहीं"
🌷महाबलीदानी पन्ना धाय गुर्जरानी🌷
16 वीं सदी में मेवाड़ संघर्षों से गुजर रहा था।
1527 में राणा सांगा खानवा के युद्ध में घायल हो मृत्यु को प्राप्त हो चुका था। इन्हीं का वंशज कुंवर उदयसिंह द्वितीय चित्तौड़ का वास्तविक उत्तराधिकारी था जिसका जन्म 1522 में हुआ था। चित्तौड़ ,विक्रमादित्य की निगरानी में था। उदयसिंह जो अभी बालक ही था, एक गुर्जर क्षत्रिय महिला 'पन्नाधाय 'के संरक्षण में था।
पन्ना का अपना पुत्र था ,जिसका नाम चन्दन था।
उदय और चन्दन सम-वय थे और एक साथ खेलते थे।
दासीपुत्र 'बनवीर' ने चित्तौड़ हथियाने के लिए विक्रमादित्य की हत्या कर दी और 'उदय 'को मारने उसके कक्ष में आया। उसके आने की खबर सुन पन्ना
जो निर्णय लिया वह स्वामिभक्ति की पराकाष्ठा है...
उसने 'कीरत बारी'जो जूठे पत्तल उठाता था, की टोकरी में ,सोये 'उदय' को लिटाया और उसकी जगह अपने पुत्र 'चन्दन' को लिटा दिया... बनवीर आया और उसने उदय के धोखे में चन्दन के टुकड़े कर दिए...! इस चरम स्थिति में पन्ना पर क्या गुजरी होगी, इसका बयान करने की ताकत किसी में नहीं।
पन्ना 'उदय 'को लेकर निकल भागी। अरावली की पहाड़ियों में दर-दर भटकी। अंत में कुम्भलगढ़ के जैन व्यापारी आशादेपुरा ने उन्हें संरक्षण दिया...
1540 में जब उदय 18 वर्ष का हुआ, उसने बनवीर को मारकर चित्तौड़ वापस लिया।
इतिहास के इस खंड में पन्ना ने स्वामिभक्ति की जो मिसाल रखी, अत्यंत दुर्लभ है। व्यक्तिगत त्याग, अभूतपूर्व देशभक्ति की मूर्ति पन्ना का , प्रसिद्ध एकांकीकार डॉ रामकुमार वर्मा की एकांकी, 'दीपदान'
में कहना था----
"नमक से रक्त बनता है, रक्त से नमक नहीं...!"