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लोग जल जाते है मेरी मुस्कान पर क्योंकी मेने कभी दर्द की नुमाइश नही की
जिन्दगी में जो मिला कबूल किया
किसी चीज की फर्माइस नही की

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बचपन मे एक कहावत पढ़ी थी...अंधा बांटे रेवड़ी...मुड़ मुड़ अपने को दे!

उस समय यह कहावत बहुत कन्फ्यूज करती थी। लगता कि जो रेवड़ी हम सामने वाले ठेले से लाते वो तो बिन मुड़े ही रेवड़ी देता। और जब बड़ी मंमी हम सब बच्चों को एक लाइन में बैठाकर कागज़ के टुकड़ों पर मुट्ठी मुट्ठी रेवड़ी रखती...वो तब भी नहीं मुड़ती।

फिर ज्यादा होशियार दिमाग ने यह सोचा कि यह अंधों की बात है...बाकी लोगों के लिए नहीं।

हालांकि कालांतर में सड़ जी ने इस कहावत का असली मतलब भी बता ही दिया। खैर...

जिसने बचपन मे यह मुट्ठी भर तिल और गुड़ से सजी रेवड़ियाँ न खाई हो, उनका बचपन भी क्या बचपन होगा? ठंडी रातों में कभी जेबों में ठूसते तो कभी भाई बहनों के प्यार पर अपनी 2 4 रेवड़ियाँ कुर्बान कर के अपना प्यार पक्का करना हो या कभी कट्टी वाले दोस्तों से बट्टी करनी हो...रेवड़ियाँ सबसे बेस्ट हुआ करती थी। उस समय लगता था कि काश किसी दिन पूरा ठेला भर के रेवड़ी मिल जाए!

अब शहर बदला और आदतें बदली। और रेवड़ी का टेस्ट भी बदल गया। मुझे कभी रेवड़ी का वह टेस्ट न मिला जो बचपन मे खाया करते थे।

बचपन की यादें और रेवड़ी का स्वाद...सब कुछ मिसिंग मिसिंग है।

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बिहार में शुरू हुई जाति जनगणना तो पूरे देश में क्यों नहीं? UP निकाय चुनाव में भाजपा द्वारा साजिश करके छीने गए OBC आरक्षण की लड़ाई में हम पिछड़े भाइयों के साथ हैं। इन मुद्दों पर विपक्ष एकजुटता के तहत Akhilesh Yadav जी से मिलकर जनांदोलन की तैयारी पर चर्चा।

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है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए,
जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए।
फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया,
जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए।
छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो,
आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए।
साथी तैयार हो जाये अब संघर्ष सड़क पर होगा।

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यूरोपीय देश नीदरलैंड में पिछले साल 2022 में पैदा होने वाले बच्चों में सबसे ज़्यादह रखा जाने वाला दूसरा नाम "मुहम्मद" है। डच सोशल इंश्योरेंस बैंक (SV की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2022 में पैदा होने वाले बच्चों में सबसे ज़्यादह "नूह" नाम रखा गया है जिनकी तअदाद 871 है और दूसरा नाम मुहम्मद है जिनकी तअदाद 671 है।

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इस्लामिक स्कॉलर डॉक्टर मुहम्मद हमीद-उ-उल्लाह साहब।
हमीद साहब की विलादत 19 फ़रवरी 1908 को रियासत-ए-हैदराबाद में हुई थी। हमीद साहब ऐसी अज़ीम शख़्सियत थे जिनके बारे में लिख पाना मुमकिन नहीं है। मुहम्मद हमीद-उ-ल्लाह साहब बीस ज़बान बोलना/लिखना जानते थे। इन्होंने फ़्रेंच में क़ुरआन का तर्जुमा के साथ साथ यूरोप की कई ज़बान में दर्जनों किताबें लिखीं थी उसके इलावह इन्होंने सैकड़ों किताबें लिखी हैं। पार्टिशन के वक़्त हमीद-उ-ल्लाह साहब पाकिस्तान चले गए थे। मुहम्मद हमीद-उ-ल्लाह साहब को 1985 में पाकिस्तान के सबसे बड़े हिलाल-ए-इम्तियाज़ ऐज़ाज़ से नवाज़ा गया था। उस वक़्त पाकिस्तान हुकूमत इन्हें तक़रीबन पच्चीस हज़ार डॉलर दी थी। जिसे इन्होंने एक तंज़ीम को डोनेट कर दिया था। मुहम्मद हमीद-उ-ल्लाह साहब की दीनी ख़िदमात के लिए सऊदी अरब की हुकूमत ने 1994 में किंग फ़ैसल अवॉर्ड से नवाज़ने के लिए नॉमिनेट किया था लेकिन मुहम्मद हमीद-उ-ल्लाह साहब ने ये कहते हुए किंग फ़ैसल अवॉर्ड लेने से इंकार कर दिया था- "मैंने जो कुछ लिखा/किया है वो अल्लाह तआला की रज़ा हासिल करने के लिए किया है"
मुहम्मद हमीद-उ-ल्लाह साहब की 2002 में अमेरिका के फ्लोरिडा में 94 साल की उम्र में इंतक़ाल हो गया था।
आज कल मुहम्मद हमीद-उ-ल्लाह साहब की ज़िंदगी पर लिखी किताब पढ़ रहा हूं।

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दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट में कहा - "अगस्त 2020 में ऑल्ट न्यूज़ के को-फॉउंडर और पत्रकार मुहम्मद ज़ुबैर के ट्विटर हैंडल से की गए ट्वीट में कोई अपराध नहीं पाया गया"
#muhammadzubair

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