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न्यूयॉर्क टाइम्स में नटवरलाल ने पैसे देकर छपवाया था अब विदेश वाले फ़्री में छाप रहे हैं ..

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Sunil Kumar Cambiato l'immagine del profilo
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Sunil Kumar Cambiato la sua copertura del profilo
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Anuradha Paudwal
अनुराधा पौडवाल को जन्मदिन की शुभकामनाएं
#anuradhapaudwal #hbdanuradhapaudwal #happybirthdayanuradhapaudwal #singer #music #bollywood

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Preeti Pandey condiviso a post  
3 anni

3 anni

एक अनुमान के अनुसार भारतीय मिठाई बाजार साठ से पैंसठ हजार करोड़ का है मेरे अपने आकलन के अनुसार यह एक लाख करोड़ से ऊपर का है।
जाहिर है पश्चिम की बहुराष्ट्रीय कंपनियों विशेषतः नैस्ले, कडबरीज आदि की निगाह इसे हथियाने में हैं।
उनकी शुरूआत ही धमाकेदार हुई और उन्होंने टीन एजर्स में चॉकलेट्स को एक स्टेटस स्टैण्डर्ड बना दिया है।
संभव है नई पीढ़ी के स्वाद तंतुओं में गहराई तक पैठ गई हो लेकिन भारतीय मिठाईयां हमारे सांस्कृतिक डीएनए में बैठी हुई हैं जो हमें हमारे देवताओं से जोड़ती हैं।
आप कुछ भी कर लें गणपति बप्पा को मोदक और लड्डू ही पसंद आवेंगे।
कान्हा की नगरी कान्हा जी का भोग पेड़ों और माखन-मिश्री से ही लगावेगी।
बंगाल और ओडिसा रसगुल्ले को जगन्नाथ जी का प्रसाद ही मानेंगे।
केवल जीवन के त्योहारों में ही नहीं मृत्यु के उत्सव तेरहवीं में हमारे पूर्वज अपने प्राचीनतम आर्य मिष्ठान्न- तस्मै और मालापूप से ही तृप्त होते हैं।
बहुराष्ट्रीय कंपनियां देवों से संरक्षित इन मिठाइयों से भला कैसे पार पावें?
तो उन्होंने अपना घृणित खेल शुरू किया।
नकली मावे पर दुकानों पर मिठाइयों की चेकिंग व छापे बढ़ जाते हैं दीपावली के समय।
निःसंदेह कुछ दुकानदार व प्रतिष्ठान हिंदुओं के विश्वास व स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते भी हैं परंतु प्रश्न यह उठता है कि रुटीन चैकिंग न होकर यकायक दीवाली पर ही क्यों?
ऐसे में मावे के प्रति संदेहशील मिष्ठान्नप्रेमियों को सोनपापड़ी ने एक विकल्प उपलब्ध कराया हुआ है और जिसे लंबे समय तक रखा भी जा सकता है, जिससे बौखलाकर उसके प्रति इस तरह का नकारात्मक प्रचार अभियान इन चॉकलेट कंपनियों द्वारा चलाया जा रहा है।
मतलब साफ है, पहले मावे की मिठाइयों के बाद, अब सोनपापड़ी सहित अन्य घी की मिठाइयों को मार्केट से बाहर कर चॉकलेट का साम्राज्य एक लाख करोड़ के बाजार पर जमाना।
जहाँ तक सोनपापड़ी का प्रश्न है, जो लोग सोनपापड़ी के नाम पर नाक भों सिकोड़ते हैं उन्हें सोनपापड़ी खाना आता ही नहीं।
सोनपापड़ी दांतों से रोंथकर भकोसने वाली मिठाई नहीं है, बल्कि शांति से जिव्हा पर रखकर उसके रेशे दर रेशे को घुलते महसूस करते हुए, धीरे-धीरे कंठ को सिक्त करते हुए नीचे उतारने वाली मिठाई है।
यह मिठाइयों के बीच उसी तरह है, जैसे मदिराओं के बीच द्राक्षा की बनी कापिशेयी।
और अगर फिर भी आपको सोनपापड़ी पसंद नहीं आ रही और उसके डिब्बे को देख नाक भों सिकोड़ें तो निश्चित मानिये आप 'नवधनाढ्य नकचढ़े क्लब' के नए सदस्य बन चुके हैं।
इसी बीच अगर पूप जी.. अरे वही मुगलिया खानसामेदार पुष्पेश पंत जी सोनपापड़ी के ' सोन' को फारसी शब्द 'सोहन' बताकर, इसकी फारसी उत्पत्ति बखानें तो इसका तत्सम शब्द 'स्वर्ण पर्पटी' बताते हुए उनकी कनपटी के अंदर एक पीस ठूँस देना।
तो मित्रो, अपने खांटी देशी और मात्र हिंदू हलवाई से शुद्ध घी की बनी 'स्वर्ण पर्पटी' शान से खरीदें, माता लक्ष्मी को भोग लगाएं और ऊपर वर्णित विधि से आराम से स्वाद लें।
और हां, कैडबरीज, नैस्ले को बाहर का रास्ता दिखाएं क्योंकि माता लक्ष्मी को कड़वी चीजें पसंद नहीं।

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दिपावली पर विज्ञापन ऐसा बनाओ ना की दिवाली पर बैन लगा दो,, इस विज्ञापन ने दिल जीत लिया ❤
( Mankind Pharma Limited Hats off Team for such great ad )

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एक अनुमान के अनुसार भारतीय मिठाई बाजार साठ से पैंसठ हजार करोड़ का है मेरे अपने आकलन के अनुसार यह एक लाख करोड़ से ऊपर का है।
जाहिर है पश्चिम की बहुराष्ट्रीय कंपनियों विशेषतः नैस्ले, कडबरीज आदि की निगाह इसे हथियाने में हैं।
उनकी शुरूआत ही धमाकेदार हुई और उन्होंने टीन एजर्स में चॉकलेट्स को एक स्टेटस स्टैण्डर्ड बना दिया है।
संभव है नई पीढ़ी के स्वाद तंतुओं में गहराई तक पैठ गई हो लेकिन भारतीय मिठाईयां हमारे सांस्कृतिक डीएनए में बैठी हुई हैं जो हमें हमारे देवताओं से जोड़ती हैं।
आप कुछ भी कर लें गणपति बप्पा को मोदक और लड्डू ही पसंद आवेंगे।
कान्हा की नगरी कान्हा जी का भोग पेड़ों और माखन-मिश्री से ही लगावेगी।
बंगाल और ओडिसा रसगुल्ले को जगन्नाथ जी का प्रसाद ही मानेंगे।
केवल जीवन के त्योहारों में ही नहीं मृत्यु के उत्सव तेरहवीं में हमारे पूर्वज अपने प्राचीनतम आर्य मिष्ठान्न- तस्मै और मालापूप से ही तृप्त होते हैं।
बहुराष्ट्रीय कंपनियां देवों से संरक्षित इन मिठाइयों से भला कैसे पार पावें?
तो उन्होंने अपना घृणित खेल शुरू किया।
नकली मावे पर दुकानों पर मिठाइयों की चेकिंग व छापे बढ़ जाते हैं दीपावली के समय।
निःसंदेह कुछ दुकानदार व प्रतिष्ठान हिंदुओं के विश्वास व स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते भी हैं परंतु प्रश्न यह उठता है कि रुटीन चैकिंग न होकर यकायक दीवाली पर ही क्यों?
ऐसे में मावे के प्रति संदेहशील मिष्ठान्नप्रेमियों को सोनपापड़ी ने एक विकल्प उपलब्ध कराया हुआ है और जिसे लंबे समय तक रखा भी जा सकता है, जिससे बौखलाकर उसके प्रति इस तरह का नकारात्मक प्रचार अभियान इन चॉकलेट कंपनियों द्वारा चलाया जा रहा है।
मतलब साफ है, पहले मावे की मिठाइयों के बाद, अब सोनपापड़ी सहित अन्य घी की मिठाइयों को मार्केट से बाहर कर चॉकलेट का साम्राज्य एक लाख करोड़ के बाजार पर जमाना।
जहाँ तक सोनपापड़ी का प्रश्न है, जो लोग सोनपापड़ी के नाम पर नाक भों सिकोड़ते हैं उन्हें सोनपापड़ी खाना आता ही नहीं।
सोनपापड़ी दांतों से रोंथकर भकोसने वाली मिठाई नहीं है, बल्कि शांति से जिव्हा पर रखकर उसके रेशे दर रेशे को घुलते महसूस करते हुए, धीरे-धीरे कंठ को सिक्त करते हुए नीचे उतारने वाली मिठाई है।
यह मिठाइयों के बीच उसी तरह है, जैसे मदिराओं के बीच द्राक्षा की बनी कापिशेयी।
और अगर फिर भी आपको सोनपापड़ी पसंद नहीं आ रही और उसके डिब्बे को देख नाक भों सिकोड़ें तो निश्चित मानिये आप 'नवधनाढ्य नकचढ़े क्लब' के नए सदस्य बन चुके हैं।
इसी बीच अगर पूप जी.. अरे वही मुगलिया खानसामेदार पुष्पेश पंत जी सोनपापड़ी के ' सोन' को फारसी शब्द 'सोहन' बताकर, इसकी फारसी उत्पत्ति बखानें तो इसका तत्सम शब्द 'स्वर्ण पर्पटी' बताते हुए उनकी कनपटी के अंदर एक पीस ठूँस देना।
तो मित्रो, अपने खांटी देशी और मात्र हिंदू हलवाई से शुद्ध घी की बनी 'स्वर्ण पर्पटी' शान से खरीदें, माता लक्ष्मी को भोग लगाएं और ऊपर वर्णित विधि से आराम से स्वाद लें।
और हां, कैडबरीज, नैस्ले को बाहर का रास्ता दिखाएं क्योंकि माता लक्ष्मी को कड़वी चीजें पसंद नहीं।

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kevenjohn nuovo articolo creato
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