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हमारे त्यौहार और भ्रामक खबरें!

कई सालों से देख रही हूं कि होली, दीपावली, नागपंचमी जैसे त्यौहार आते ही नकली मावे का खौफ हमारे दिल में बैठाने का प्रयास किया जाता है और हम इस खौफ से प्रभावित भी हो रहे हैं।
नकली खोए के भय से हमारे त्यौहार, हमारी परंपरा कहीं न कहीं प्रभावित हो रही है फीकी पड़ जाती है।
लोगो ने होली खेलना छोड़ दिया कहते हैं कि एलर्जी होती है।
गुझिया बनाना छोड़ दिया कहते हैं कि मावा नकली है।

मेरा सिर्फ इतना कहना है कि जिन शहरों में रात दिन इतनी धूल, मिट्टी, धुएं इत्यादि प्रदूषण से आप जूझते हो तब एलर्जी नही होती है तो होली के रंग, अबीर से क्यों डरना भला!
वर्ष भर सड़े मैदे से बनी सड़क किनारे वाले ठेले से फास्ट फूड खाते हैं, टॉयलेट क्लीनर जितना खतरनाक कोल्डड्रिंक पीते हैं तब क्या आपका पेट सुरक्षित रहता है?
फिर एक दिन अगर नकली मावा ही सही दो चार गुझिया खा लेंगे तो कुछ नहीं होगा।

इसलिए मन में भय बैठाकर त्यौहारों के रंग फीका न करें।
जी भरकर सारे पकवान बनाए, खाए और खिलाए हंसी खुशी खूब जोश से सारे त्यौहार मनाए।

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लरकोर!
जिस महिला के बच्चे छोटे होते हैं उन्हें लरकोर मेहरारू यानि बच्चों वाली महिला कहते हैं।
लरकोर घर में यूं सिल लोढ़ा, बुकवा, डोकवा, कजरौटा, छोटे छोटे कपड़े, भगई (लंगोट), कथोला, लोला , झुनझुना जैसी चीजें इधर उधर बिखरी हुई मिलेगीं।
हमारे यहां छोटे बच्चों की तेल मालिश दिन भर में कम से कम चार बार और बुकवा भी तीन चार बार लगाया ही जाता था।
छोटे बच्चों की मां पास से गुजर जाए तो उससे आती तेल, बुकवा, दूध की महक बता देती थी कि ये लरकोर हैं।
अबकी तरह उस समय बच्चों को न तो डाइपर पहनाया जाता था, न वाइप्स से साफ किया जाता था, फलां साबुन, फलां तेल जैसे टिट्टिम नहीं थे।
सरसों तेल से रगड़ कर दिन भर में कई बार मालिश होती थी और सुसु पॉटी करने पर पानी से धो दिए जाते थे और दूसरे साफ सुथरे भगई बांधकर नए धुले सूखे कथोले (पुराने कपड़ों का हाथ से बना छोटा सा बिस्तर) पर लिटा दिया जाता था।
लरकोर मेहरारू सारा दिन छोटे बच्चे की तेल, बुकवा की मालिश करने, दूध पिलाने सुसु पॉटी साफ करने, गंदे कपड़े धोने, सुखाने में ही लगी रहती थी।
संयुक्त परिवार होता था। कोई बच्चे को खेलाता था तब उसकी मां जाकर जल्दी से दो लोटा पानी डालकर नहा लेती थी या जल्दी जल्दी टेढ़े मेढे कौर निगल कर भोजन करती थी।
ये छोटे बच्चों की सबसे गंदी आदत है कि जब मां भोजन करने बैठेगी तभी बच्चों को पॉटी करना होता है। बेचारी मां मुंह तक ले गया निवाला थाली में रखकर बच्चे को धोकर साफ करके, दूसरे कपड़े पहनाती है तब तक महाशय को भूख लग जाती है अब पेट खाली किए हैं तो भूख लगना स्वाभाविक ही है।
मां बेचारी या तो आधा पेट खाए रह जाती है या फिर बच्चे को गोद में लेकर दूध पिलाते हुए भोजन करती है।
लड़की से मां बनने का सफर आसान नहीं होता है।
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अरूणिमा सिंह

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सपना जी के साथ

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कल मैंने विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ बातचीत की और बहुत सी नई जानकारियाँ प्राप्त कीं

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चीनी लड़कियों की ओर से नमस्कार

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यूपी की बेटियों को न्याय दो….

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An Appeal to All Mothers—and to Society at Large
To all mothers: let us be vigilant against the ravenous hunger for content, the blind chase to ‘TREND’
We are facing an existential vacuum—where personal frustration is being masked by an insatiable hunger for money and visibility, often gained at the cost of truth, dignity, and others’ pain. This has become a modern misery, one of the greatest moral crises of our times.
A particular social media platform has now become a stark example of this decay.
With brazen contempt, they chose to mock the fact that I am a Mother-in-Uniform. They publicly questioned my responsibility as a mother, especially during a moment when my daughter needed protection from a manipulative and dangerous man.
Worse still, they allegedly dug into over 22 years of my personal emails—an act that appears to be either a hack or enabled by a hack. A formal case regarding the breach of my email is currently under investigation with the Delhi Police.
This is a solemn appeal—not just to mothers, but to all citizens—to remain alert and guarded against these hungry hounds that prey on personal lives for clicks and clout.
I also make a strong and urgent appeal to the Judiciary and the Executive: please take serious note of such digital wolves. We need effective, enforceable, and truly deterrent legal frameworks to ensure that such violations are met with stringent punishment.
These digital predators lurk outside our homes and within our devices. They are watching, waiting—for their next target.
Let us not wait until they come for someone we love.
With deep concern,
Kiran Bedi

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सुप्रभात हरियाणा 🙏
एक परिवार के दो बच्चे प्रियंका और अजय बेनीवाल का लंदन में स्वागत है । दोनों भाई बहन की मुस्कुराहट बता रही है की कामयाब होने की ख़ुशी क्या है ❤️
मेरी कोशिश जारी है की कैसे अपने बच्चों को सही रास्ता दिखा कर , सही तरीक़े से कामयाब किया जाये 🙏
Smile speaks ❤️

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जयपुर स्थित हवामहल का रियासतकालीन दृश्य, जब जनसंख्या कम व सुकून ज्यादा था, ओ भी क्या दिन रहा होगा

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