बहुत बहुत बधाई भारत को खो खो मे वर्ल्ड कप विजेता बनने पर
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बहुत बहुत बधाई भारत को खो खो मे वर्ल्ड कप विजेता बनने पर
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दिव्या राय, जो कभी ₹1000 महीने के खर्च पर जीती थीं, आज बेंगलुरु के फेमस रामेश्वरम कैफे की को-फाउंडर हैं। आईआईएम अहमदाबाद से पढ़ाई और सीए की नौकरी के बाद उन्होंने 2021 में पति राघवेंद्र राव के साथ 10x10 फीट के छोटे से कैफे से शुरुआत की। उनकी मां ने इस फैसले का विरोध किया, लेकिन दिव्या ने हार नहीं मानी। बेहतरीन क्वालिटी और सोशल मीडिया के सहारे ये कैफे आज 3 ब्रांच के साथ हर महीने ₹4.5 करोड़ का बिजनेस कर रहा है। दिव्या और राघवेंद्र का सालाना टर्नओवर अब ₹50 करोड़ है।
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औरतें चली जाती हैं तो अमूमन अपने पीछे बस याद भर छोड़ जाती हैं।ज्यादातर बरसों से सेत कर रखी कुछ साड़ी बहुत सारा ब्लाउज पिस कुछ डिब्बे चूड़ी के कुछ नई पुरानी बिछिया अपने बच्चों के जन्मतुआ कपड़े ।यही इनकी थाती होती है।
अब नए बने घर में नई व्यवस्था के तहत अम्मा के पुराने बक्से को एक बार देख लें का निहोरा भाभियों से करना पड़ता तब वो बताती के अरे वो पुराना बक्सा एकदम ऊपर की छत पर बनी बरसाती में रखा है
तो बेटी को वहां जाकर कुछ देर उस बक्से में रखी चीजों को टटोलना पसंद।हम जान बूझकर ही उस उदास गली के हो लेते हैं।आखिर उसके हर धरे कपड़े और चीजों पर अम्मा की छुwन है। सहेज कर धरी साड़ी पर जमा गर्द है और सिल्क की साड़ी के मसके हुए तह
और फिर ये डिजाइन का पिटारा मिला।इसे अम्मा नमूना कहती थी।ना जाने किधर किधर से इकट्ठा की हुई स्वेटर की डिजाइन।
कैसा जमाना था के सरिता का सिलाई विशेषांक अगर पिताजी ला देते वो अम्मा के लिए सबसे बड़ी ट्रीट होती।बहन बताती है तब रेडियो पर डिजाइन बताने का कोई कार्यक्रम आता।अम्मा सजग सब नंबर की सलाई लेकर बिना चूक के वो डिजाइन बना लेती।और फिर सबसे नई डिजाइन से पिताजी की चौड़ी छाती और चौड़ी हो जाती।
बच्चों के लिए चिड़िया पंछी खरगोश।जादू की तरह स्वेटर बनता ।
अब इस पिटारे के सभी नमूने गुम सूम पड़े दिखे।यार दिन कितनी जल्दी बदल जाता है।ये कितने ठसक से अड़ोस पड़ोस को कॉपी करने को दिए जाते रहे थे।
जाने वाला चला जाता है।औरतें एक काले बक्से में बंद हैं जबकि उन्हें किसी अलमारी पर किताब की तरह होना था ।उनकी ऑफिस की तमाम फाइलें होनी थी । करीने से लगे उनके वार्डरोब होने चाहिए थे ।किसी नौकरी से रिटायर होने वाला कोई सैंड ऑफ गिफ्ट होना चाहिए था
पर ज्यादातर काले बक्से में रह गई किसी कमरे की दुच्चती पर या किसी छत की बरसाती में।
फिर बरसों बाद बेटी आएगी वही कुरेदगी पुरानी बात ।वही अम्मा की बाबत कई सवाल करेगी घर में वही पूछेगी पिता से के बताइए तो वो ब्राउन स्वेटर किधर है जिसके ऊन के पैसे के लिए अम्मा आपसे कितनी लड़ाई की थी
जितनी पैसों के लिए लड़ाई करती औरतें वो सारा ही पति बच्चों पर खर्च कर देती या फिर अंतिम यात्रा के बाद किसी उदास दोपहर उनकी अलमारी खंखलाते बेटे बताते उन्नीस हजार रुपया मिला अलमारी बक्सा मिला के
हम बक्से के सामने यूं देर तक बैठे अम्मा से कहते ही रहते हैं क्या अम्मा इतनी जल्दी क्या थी
फिर अब तो वो लड़ाई भी बंद हो गई न के बड़ी बहन को ज्यादा प्यार करती अम्मा और अम्मा कहती अरे करेजा काट के दिखाते तब भी तुम शिकायत करती
करनी तो है शिकायत वही तो हमारे बीच का प्यार था।काले बक्से को चूम माथे से लगा कर निकल गई हूं