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श्रद्धेय हनुमान प्रसाद पोद्दार 'भाई जी' अध्यात्म जगत के दृढ़ स्तंभ थे।

'कल्याण' पत्रिका के आदि संपादक के रूप में वे आजीवन सनातन की सेवा में समर्पित रहे। स्वाधीनता संग्राम में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी।

आज उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें कोटिश: नमन!

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उत्तर प्रदेश सरकार की 'सेवा, सुरक्षा और सुशासन की नीति' के 8 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में मा. राज्यपाल श्रीमती Anandiben Patel जी से आज राजभवन, लखनऊ में शिष्टाचार भेंट की।

इस अवसर पर उन्हें 'सबका साथ-सबका विकास-उत्कर्ष के 8 वर्ष' पुस्तक भी भेंट की।

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मूल्य आधारित पत्रकारिता के आदर्श, महान स्वाधीनता संग्राम सेनानी, उत्कृष्ट समाजसेवी गणेश शंकर विद्यार्थी की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि!

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बांस की कोठी!
मोरे पिछवरवा घन बांसवरिया ,
कोयलर लिही है बसेर।
सोवत राजा उठी कय बैठि जायँ,
अनकंय चिरैया कय बोलि।।
हमारे यहां विवाह के एक दिन पहले यानी भत्तवान के दिन एकदम सुबह सुबह सभी स्त्रियां मिलकर भोरहरी न्योतती (गीत गाती) हैं।
ये उसी गीत का अंश है। इस गीत के बाद कुल के जितने लोग गोलोक वासी हो गए हैं उन सभी पितरों को निमंत्रण दिया जाता है।
बांस बहुत एक बहुउपयोगी चीज है। ये घास प्रजाति का माना जाता है। हर गांव में आपको एक दो बांस की कोठी जरूर मिलेगी।
बंसवारी के नीचे से अगर राह गई है तो उधर से गुजर कर देखिए।
ठंडक भरी एकदम घनी छाया और उस के साथ अनगिनत चिड़ियों का कलरव ऐसा परिवेश बना देता है कि जी करता है कि बस अब यहीं ठहर जाएं।
शुभ अशुभ सारे कार्यों में बांस काम आता है।
कांटहवा बांस, बंबू बांस, लाठीहवा बांस जैसी इसकी कई प्रजाति होती हैं और अब तो लोग इतने बड़े बड़े बांस को भी ठिगना करके बोनसाई रूप में घरों में, ऑफिस में रखकर शोभा बढ़ाते हैं।
इस बांस की बनी लग्गी से आने वाले कुछ दिनों में आम तोड़े जाएंगे।
जब गांव में सबके यहां नया नया पक्का मकान बनना शुरू हुआ था तब बांस की बनी सीढ़ियों पर चढ़कर छत पर जाया जाता था।
बांस की बनी बंसखटी चारपाई अब बगीचे में बिछाई जाएगी।

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हमारे त्यौहार और भ्रामक खबरें!

कई सालों से देख रही हूं कि होली, दीपावली, नागपंचमी जैसे त्यौहार आते ही नकली मावे का खौफ हमारे दिल में बैठाने का प्रयास किया जाता है और हम इस खौफ से प्रभावित भी हो रहे हैं।
नकली खोए के भय से हमारे त्यौहार, हमारी परंपरा कहीं न कहीं प्रभावित हो रही है फीकी पड़ जाती है।
लोगो ने होली खेलना छोड़ दिया कहते हैं कि एलर्जी होती है।
गुझिया बनाना छोड़ दिया कहते हैं कि मावा नकली है।

मेरा सिर्फ इतना कहना है कि जिन शहरों में रात दिन इतनी धूल, मिट्टी, धुएं इत्यादि प्रदूषण से आप जूझते हो तब एलर्जी नही होती है तो होली के रंग, अबीर से क्यों डरना भला!
वर्ष भर सड़े मैदे से बनी सड़क किनारे वाले ठेले से फास्ट फूड खाते हैं, टॉयलेट क्लीनर जितना खतरनाक कोल्डड्रिंक पीते हैं तब क्या आपका पेट सुरक्षित रहता है?
फिर एक दिन अगर नकली मावा ही सही दो चार गुझिया खा लेंगे तो कुछ नहीं होगा।

इसलिए मन में भय बैठाकर त्यौहारों के रंग फीका न करें।
जी भरकर सारे पकवान बनाए, खाए और खिलाए हंसी खुशी खूब जोश से सारे त्यौहार मनाए।

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लरकोर!
जिस महिला के बच्चे छोटे होते हैं उन्हें लरकोर मेहरारू यानि बच्चों वाली महिला कहते हैं।
लरकोर घर में यूं सिल लोढ़ा, बुकवा, डोकवा, कजरौटा, छोटे छोटे कपड़े, भगई (लंगोट), कथोला, लोला , झुनझुना जैसी चीजें इधर उधर बिखरी हुई मिलेगीं।
हमारे यहां छोटे बच्चों की तेल मालिश दिन भर में कम से कम चार बार और बुकवा भी तीन चार बार लगाया ही जाता था।
छोटे बच्चों की मां पास से गुजर जाए तो उससे आती तेल, बुकवा, दूध की महक बता देती थी कि ये लरकोर हैं।
अबकी तरह उस समय बच्चों को न तो डाइपर पहनाया जाता था, न वाइप्स से साफ किया जाता था, फलां साबुन, फलां तेल जैसे टिट्टिम नहीं थे।
सरसों तेल से रगड़ कर दिन भर में कई बार मालिश होती थी और सुसु पॉटी करने पर पानी से धो दिए जाते थे और दूसरे साफ सुथरे भगई बांधकर नए धुले सूखे कथोले (पुराने कपड़ों का हाथ से बना छोटा सा बिस्तर) पर लिटा दिया जाता था।
लरकोर मेहरारू सारा दिन छोटे बच्चे की तेल, बुकवा की मालिश करने, दूध पिलाने सुसु पॉटी साफ करने, गंदे कपड़े धोने, सुखाने में ही लगी रहती थी।
संयुक्त परिवार होता था। कोई बच्चे को खेलाता था तब उसकी मां जाकर जल्दी से दो लोटा पानी डालकर नहा लेती थी या जल्दी जल्दी टेढ़े मेढे कौर निगल कर भोजन करती थी।
ये छोटे बच्चों की सबसे गंदी आदत है कि जब मां भोजन करने बैठेगी तभी बच्चों को पॉटी करना होता है। बेचारी मां मुंह तक ले गया निवाला थाली में रखकर बच्चे को धोकर साफ करके, दूसरे कपड़े पहनाती है तब तक महाशय को भूख लग जाती है अब पेट खाली किए हैं तो भूख लगना स्वाभाविक ही है।
मां बेचारी या तो आधा पेट खाए रह जाती है या फिर बच्चे को गोद में लेकर दूध पिलाते हुए भोजन करती है।
लड़की से मां बनने का सफर आसान नहीं होता है।
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अरूणिमा सिंह

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