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'सच, निष्पक्षता, जूनून'... एक पत्रकार से पूरा समाज और पत्रकारिता धर्म यही तीन चीजें मांगता है। लेकिन इसकी कीमत पत्रकार को चुकानी पड़ती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में 33 साल के युवा पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने ये कीमत चुकाई है। नए साल पर जहां पूरी दुनिया जश्न मना रही थी वहीं मुकेश की बेरहमी से हत्या हुई। उनके शव को एक सेप्टिक टैंक में ठूंस दिया गया और ऊपर से उसे पलस्तर से चुनवा दिया गया। मुकेश का गुनाह क्या था? सच दिखाना, भ्रष्टाचार उजागर करना या पत्रकारिता धर्म निभाना?
हर कोई हमसे अपेक्षा करता है कि हम उनकी आवाज बनें। डॉक्टरों का मार्च हो या किसानों का आंदोलन या फिर छात्रों पर हो रहा लाठीचार्ज... हर जगह हाथ में माइक पकड़ा एक पत्रकार निडर होकर खड़ा मिलता ही है। क्या दिन,क्या रात, क्या सर्दी क्या चिलचिलाती धूप... हमारी ड्यूटी है पत्रकारिता धर्म निभाना। इस पत्रकारिता धर्म की कीमत है पत्रकारों की जान! जो पूरे समाज की आवाज बनता है आखिर ये समाज उसकी आवाज कब बनेगा?
12 साल के बच्चे की निकली बारात, बकरे पर बैठाकर घुमाया पूरा गांव, भाभी से कराई शादी !
मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में अनोखी शादी हुई, शादी से पहले बारात निकाली गई. यहां 12 साल के बच्चे की घोड़ी की जगह बकरे पर बैठाकर बारात निकाली गई, बारात में बैंड-बाजों पर परिजनों ने जमकर डांस किया. इस दौरान जमकर आतिशबाजी भी हुई, इसके बाद दूल्हे की उसकी भाभी से शादी कराई गई.
लोहिया समाज में यह एक अनोखी परंपरा है जो करीब 400 साल से चली आ रही है. समाज में बड़े बेटे का कर्णछेदन का संस्कार शादी समारोह की तरह धूमधाम से किया जाता है. कर्ण छेदन संस्कार में बड़े बेटे को दूल्हे बनाकर उसकी बारात बकरे पर बैठाकर निकालने की परंपरा है. इस शादी में परिवार के अलावा रिश्तेदार और मोहल्ले के लोग शामिल होते हैं. इसके बाद विधि विधान से शादी की रस्में पूरी की जाती है.
टीकमगढ़ के प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि उनके बड़े पोते राघव अग्रवाल का कर्ण छेदन संस्कार गुरुवार को हुआ. शुक्रवार को समाज की परंपरा के अनुसार उसकी बकरे पर बारात निकाली गई. इसमें परिवार के सभी सदस्य और रिश्तेदार शामिल हुए. गाजे-बाजे के साथ निकाली गई बारात में जमकर रिश्तेदारों और परिजनों ने डांस किया और पटाखे फोड़कर जश्न मनाया गया.
प्रकाश अग्रवाल ने बताया कि इसके पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे के कर्ण छेदन संस्कार में इसी तरह बकरे पर बारात निकाल कर परंपरा निभाई थी. उन्होंने बताया कि दादा-परदादा के जमाने से यह परंपरा चली आ रही है. लोहिया समाज के ज्यादातर परिवारों ने आज भी परंपरा को जीवित रखा है.
उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को VIP संस्कृति को खत्म करने की आवश्यकता पर जोर दिया, विशेष रूप से धार्मिक स्थलों पर, क्योंकि उनके अनुसार वीआईपी दर्शन की अवधारणा देवत्व के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने नागरिकों से अपील की कि वे विघटनकारी राजनीति से ऊपर उठें और भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य में योगदान दें। धनखड़ ने कहा, "जब किसी को विशेष वरीयता या प्राथमिकता दी जाती है और उसे वीआईपी या वीवीआईपी कहा जाता है, तो यह समानता की भावना को कमजोर करता है। वीआईपी संस्कृति समाज के लिए एक विकृति है और समानता के दृष्टिकोण से इसका कोई स्थान नहीं होना चाहिए, खासकर धार्मिक स्थलों पर।"