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सिस्टम कभी-कभी कितना क्रूर हो जाता है इसका सबसे बड़ा उदाहरण कुमारी फलां-फलां सोनी जिनका सरकारी नौकरी में चयन हो गया, मगर कई वर्षों से पिलर टू पोस्ट भागते फिर रही है। तंत्र की संवेदनहीनता का इससे बड़ा और क्या प्रमाण हो सकता है? उम्मीद है कि राज्य के माननीय मुख्यमंत्री या संबंधित विभाग के मंत्री इस समाचार का जो एक प्रमुख दैनिक ने उठाया है, संज्ञान लेंगे।
#दिल्ली में पिछले एक हफ्ते से मीडिया में ग्रंथि और पुजारी की सम्मान पेंशन को लेकर बड़ी बहस चली हुई है। हमने 2015 में पुजारियों, ग्रंथियों , पादरियों, मौलवियों, शिल्पियों, ढोल वादकों, कलाकारों, पत्रकारों आदि सभी वर्गों के लिए पेंशन सम्मान योजना लागू की। हमारा नाम न मीडिया में और न सम्मान पाने वालों के मध्य चर्चा हो पाई, इसी कला का नाम #केजरीवाल है। अभी दिया नहीं बिना दिए चर्चा ही चर्चा है।