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शास्त्रार्थ का सार्वजनिक निमंत्रण

प्रिय शंकराचार्यों, हम लोग भी आ रहे हैं। आठ सौ साल का अनुभव है कि आप लोग धर्मांतरण रोकने में विफल रहे। धर्म गरीब की झोपड़ी में ही ज्यादा सुरक्षित रहा। तलवार और लालच दोनों का निषेध ग़रीबों ने बेहतर किया।

आप लोगों ने प्रयास कर लिया। अब औरों को भी नेतृत्व का अवसर दीजिए।

धर्म ओबीसी, एससी और एसटी तथा क्षत्रिय व वैश्य के भी नेतृत्व में आने से ज़्यादा सुरक्षित रहेगा। आप लोग भी रहिए। बाक़ी लोग भी रहें। सब रहें।

सिर्फ़ आपसे नहीं हो पाया।

वैसे शंकराचार्य कोई पोप या ख़लीफ़ा तो हैं नहीं कि सब लोग मानेंगे। भारतीय धर्मों की असंख्य धाराओं के लाखों अपने-अपने गुरू हैं। अपना-अपना मानते हुए भी एक विशाल महासमुद्र का हिस्सा है।

जो अनेक है, वह भी एक अखंड भारतीयता में समाहित है। वह द्वैत है, अद्वैत है, द्वेताद्वैत है, विशिष्टाद्वैत है, लौकिक है, नास्तिक है।

शंकराचार्य उनमें से ही एक परंपरा है।

पर सब मिलकर एक भी है।

इस साल कुंभ में संन्यास लेने वाले हर पाँच में से एक व्यक्ति यानी 20% अनुसूचित जाति और जनजाति से है। ओबीसी की गिनती अलग है। कई महामंडलेश्वर इन वर्गों से बन चुके हैं।

पटना के हनुमान मंदिर में दलित पुजारी हैं। सभी आशीर्वाद लेते हैं।

योगर्षि रामदेव इस युग के दुनिया के सबसे लोकप्रिय संत हैं, जिन्होंने स्वास्थ्य और वेदों की परंपरा को जोड़ा और अपना संदेश दिया। यादव हैं।

तमिलनाडु में हज़ारों ओबीसी अधीनम हैं तो कर्नाटक में लिंगायत और वोक्कालिगा संत। महाराष्ट्र में तुकाराम की संत परंपरा है। वरकरी हैं।

मंदिरों पर ज़्यादातर नियंत्रण मध्यवर्ती जातियों और ओबीसी का ही है।

शंकराचार्य संस्था में भी ये बदलाव चाहिए। खोलना चाहिए। लेकिन उसके लिए शास्त्रों का ज्ञान ही नहीं, शास्त्रों का अनुशासन भी चाहिए। ये बदलाव क्रमिक होगा। जिनको जल्दी थी, वे चले गए। मर गए।

पुजारी संस्था अब लोकतांत्रिक हो रही है। परीक्षाएँ होने लगी हैं। विज्ञापन निकलने लगे हैं।

अब मैं कहूँगा कि ये बाबा साहब का सपना था जिसे हिंदू समाज अब पूरा कर रहा है तो आप कहेंगे कि कहाँ लिखा है?

बाबा साहब की सबसे चर्चित कृति “एनिहिलेशन ऑफ कास्ट” (1935) में लिखा है। अध्याय 24 पढ़ें।

वे निस्संदेह वर्तमान युग में हिंदुओं के सबसे बड़े समाज सुधारक थे। उन्होंने कहा था कि पुजारी पद सभी हिंदुओं के लिए खोल दिया जाए।

हम लोगों का ऐसा नहीं है कि जामा मस्जिद का इमाम, बुख़ारा के एक ही परिवार का सदस्य बनता रहेगा। या अजमेर दरगाह के ख़ादिम एक ही बिरादरी और परिवार के लोग बनते रहेंगे। न हमारे यहाँ कट्टर सैय्यदवाद है कि एक ही कबीले की महानता गाते रहेंगे।

हमारी पुजारी परंपरा बहुत खुल चुकी है।
बाक़ी कार्य प्रगति पर है।

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दो शादियों की कहानी: रिहाना का नाच या लोकहित में 10,000 करोड़ रु का दान?

दस हज़ार करोड़ रुपए में अडानी परिवार भारत की अब तक की सबसे महँगी और भव्य शादी कर सकता था।

पिछली वाली बड़ी शादी से भी भव्य।

दुनिया के सबसे बड़े स्टार और डांसर को नचवा सकता था। सभी क्रिकेटर और मूवी स्टार को लाइन में खड़ा कर सकता था। दुनिया के कई नेताओं को बुला सकता था।

पर उसने सादगी से शादी की और इतना सारा रुपया लोकहित में दान कर दिया। इन पैसों का इस्तेमाल हॉस्पिटल और शिक्षा संस्थान तथा कौशल विकास में होगा।

समृद्धि अपने साथ ज़िम्मेदारी भी लाती है। कोई निभाता है, कोई नहीं।

भारत में भामाशाह की परंपरा है।

बिड़ला मंदिर बनाने की परम्परा है। डालमिया और गोयनका धर्मशाला की परंपरा है। सेकसरिया जैसे दानी उद्योगपति रहे हैं। टाटा ने कैंसर हॉस्पिटल बनाया। बजाज ने आज़ादी के आंदोलन में गांधी जी के लिए सेवाग्राम बनाया। नाडार और अज़ीम प्रेमजी बड़े दानी हैं। उनकी फ़िज़ूलख़र्ची का प्रदर्शन देश ने नहीं देखा।

परंपरा से सीखना चाहिए कि ज़िम्मेदार रईस कैसे बनें। फ़िज़ूलख़र्ची का अश्लील प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।

महात्मा गांधी का ट्रस्टी शिप का सिद्धांत जहां तक हो सके, लागू करना चाहिए।

प्राचीन ग्रंथ हितोपदेश में कहा गया है:

विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति, धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

अर्थ:

विद्या (ज्ञान) से विनय यानी नम्रता आती है, विनय से योग्यता (पात्रता) प्राप्त होती है। योग्यता से धन मिलता है, धन से धर्म (सदाचरण) और अंततः सुख की प्राप्ति होती है।

विनय यानी विनम्रता आवश्यक गुण है।

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दो शादियों की कहानी: रिहाना का नाच या लोकहित में 10,000 करोड़ रु का दान?

दस हज़ार करोड़ रुपए में अडानी परिवार भारत की अब तक की सबसे महँगी और भव्य शादी कर सकता था।

पिछली वाली बड़ी शादी से भी भव्य।

दुनिया के सबसे बड़े स्टार और डांसर को नचवा सकता था। सभी क्रिकेटर और मूवी स्टार को लाइन में खड़ा कर सकता था। दुनिया के कई नेताओं को बुला सकता था।

पर उसने सादगी से शादी की और इतना सारा रुपया लोकहित में दान कर दिया। इन पैसों का इस्तेमाल हॉस्पिटल और शिक्षा संस्थान तथा कौशल विकास में होगा।

समृद्धि अपने साथ ज़िम्मेदारी भी लाती है। कोई निभाता है, कोई नहीं।

भारत में भामाशाह की परंपरा है।

बिड़ला मंदिर बनाने की परम्परा है। डालमिया और गोयनका धर्मशाला की परंपरा है। सेकसरिया जैसे दानी उद्योगपति रहे हैं। टाटा ने कैंसर हॉस्पिटल बनाया। बजाज ने आज़ादी के आंदोलन में गांधी जी के लिए सेवाग्राम बनाया। नाडार और अज़ीम प्रेमजी बड़े दानी हैं। उनकी फ़िज़ूलख़र्ची का प्रदर्शन देश ने नहीं देखा।

परंपरा से सीखना चाहिए कि ज़िम्मेदार रईस कैसे बनें। फ़िज़ूलख़र्ची का अश्लील प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।

महात्मा गांधी का ट्रस्टी शिप का सिद्धांत जहां तक हो सके, लागू करना चाहिए।

प्राचीन ग्रंथ हितोपदेश में कहा गया है:

विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति, धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

अर्थ:

विद्या (ज्ञान) से विनय यानी नम्रता आती है, विनय से योग्यता (पात्रता) प्राप्त होती है। योग्यता से धन मिलता है, धन से धर्म (सदाचरण) और अंततः सुख की प्राप्ति होती है।

विनय यानी विनम्रता आवश्यक गुण है।

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दस हज़ार करोड़ रुपए में अडानी परिवार भारत की अब तक की सबसे महँगी और भव्य शादी कर सकता था।

पिछली वाली बड़ी शादी से भी भव्य।

दुनिया के सबसे बड़े स्टार और डांसर को नचवा सकता था। सभी क्रिकेटर और मूवी स्टार को लाइन में खड़ा कर सकता था। दुनिया के कई नेताओं को बुला सकता था।

पर उसने सादगी से शादी की और इतना सारा रुपया लोकहित में दान कर दिया। इन पैसों का इस्तेमाल हॉस्पिटल और शिक्षा संस्थान तथा कौशल विकास में होगा।

समृद्धि अपने साथ ज़िम्मेदारी भी लाती है। कोई निभाता है, कोई नहीं।

भारत में भामाशाह की परंपरा है।

बिड़ला मंदिर बनाने की परम्परा है। डालमिया और गोयनका धर्मशाला की परंपरा है। सेकसरिया जैसे दानी उद्योगपति रहे हैं। टाटा ने कैंसर हॉस्पिटल बनाया। बजाज ने आज़ादी के आंदोलन में गांधी जी के लिए सेवाग्राम बनाया। नाडार और अज़ीम प्रेमजी बड़े दानी हैं। उनकी फ़िज़ूलख़र्ची का प्रदर्शन देश ने नहीं देखा।

परंपरा से सीखना चाहिए कि ज़िम्मेदार रईस कैसे बनें। फ़िज़ूलख़र्ची का अश्लील प्रदर्शन नहीं करना चाहिए।

महात्मा गांधी का ट्रस्टी शिप का सिद्धांत जहां तक हो सके, लागू करना चाहिए।

प्राचीन ग्रंथ हितोपदेश में कहा गया है:

विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति, धनाद्धर्मं ततः सुखम्॥

अर्थ:

विद्या (ज्ञान) से विनय यानी नम्रता आती है, विनय से योग्यता (पात्रता) प्राप्त होती है। योग्यता से धन मिलता है, धन से धर्म (सदाचरण) और अंततः सुख की प्राप्ति होती है।

विनय यानी विनम्रता आवश्यक गुण है।

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