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तीर्थराज प्रयाग में आज पूज्य संतजन एवं धर्माचार्यों के पावन सान्निध्य में अखिल भारतवर्षीय अवधूत भेष बारह पंथ योगी महासभा द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सहभाग का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
जब हम संत एक साथ मिलते हैं तो ऐसे मिलते हैं जैसे 'गुरु भाई' मिल रहे हों, आपस में कोई भेद नहीं होता। पूर्ण विश्वास है कि महाकुम्भ के संदेश को हम हर सनातन धर्मावलम्बी के घर तक पहुंचाने का काम करेंगे।
आयोजन से जुड़े सभी पूज्य संतजन, महामंडलेश्वर एवं योगेश्वर गण के प्रति हृदय से आभार व अभिनंदन!

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जहाँ ट्रॉफी और मेडल योग्यता से मिलते है यहाँ म्हारा ही कब्जा है 🇮🇳🏆
भारत बना खो-खो वर्ल्ड चैंपियन ♥️
भारत की महिला और पुरुष दोनों टीम दिल्ली में आयोजित पहले खो-खो वर्ल्ड कप की चैंपियन बन गई है। पुरुष टीम में छोटे भाई आकाश बालियान (गांव बसेरा,अलीगढ़ पश्चिमी उत्तरप्रदेश) और महिला टीम में बहन मीनू धतरवाल (गांव बिठमड़ा हिसार हरियाणा) ने शानदार खेल दिखाते हुए भारत को चैंपियन बनने में अहम भूमिका निभाई है।
इस जीत में सबसे अहम योगदान मुन्नी अहलावत जून (डीघल) जी का भी रहा है जोकि महिला टीम की हेड कोच है ।
उत्तर भारत खासकर जाटलैंड में इस खेल के प्रति उतना रुझान नहीं था बस 2 ही खिलाड़ी उत्तर भारत के टीम में थे बावजूद उसके 4 टीम के हेड कोच जाट रहे है। अब उम्मीद करते है अगले वर्ल्ड कप में आधम-आध (50 %) सक्रियता अपनी रहेगी।
सभी देशवासियों को शुभकामनाएं
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तरुण शर्मा की कहानी हर भारतीय के लिए प्रेरणा है। यह कहानी है हिम्मत, जज्बे, और अपने सपनों को साकार करने की। राजस्थान के तरुण शर्मा का सफर आसान नहीं था। छह महीने की उम्र में पैरालिसिस के अटैक के बाद उनका जीवन संघर्षों से भर गया। डॉक्टरों की सलाह पर तीन साल की उम्र में कराटे सीखना शुरू किया। यहीं से उनकी यात्रा शुरू हुई, जो उन्हें पैरा कराटे में वर्ल्ड चैंपियनशिप तक ले गई।
गरीबी और चुनौतियां: एक वीर की परीक्षा
तरुण का परिवार बेहद गरीब था। उनके पिता सब्जी बेचकर घर चलाते थे। खेल के खर्च और डाइट का खर्चा निकालने के लिए तरुण ने बचपन से छोटे-मोटे काम करने शुरू कर दिए। 13 साल की उम्र में जिला स्तर का पहला टूर्नामेंट जीतने के बाद उनकी मेहनत रंग लाई, लेकिन खेल को जारी रखने के लिए कर्ज लेना पड़ा। यहां तक कि उनका घर भी गिरवी रखना पड़ा।
पिता के निधन के बाद भी नहीं रुके कदम
तरुण के लिए सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उनके पिता का निधन हो गया। लेकिन पिता का सपना और देश के लिए खेलने का जुनून उन्हें पीछे हटने नहीं दिया। सब्जी बेचते हुए भी उन्होंने ट्रेनिंग जारी रखी और देश के लिए मेडल जीतने की ठानी।
गौरव के क्षण: गोल्ड की बारिश
आज तरुण शर्मा ने पैरा एशियन चैंपियनशिप और पैरा वर्ल्ड चैंपियनशिप समेत कुल 18 मेडल (8 गोल्ड, 3 सिल्वर, और 7 ब्रॉन्ज) अपने नाम किए हैं। उनकी यह उपलब्धियां न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय हैं।
दूसरों के लिए प्रेरणा
तरुण अब अपने अनुभव का उपयोग दूसरों को सशक्त बनाने में कर रहे हैं। वह दिव्यांग बच्चों को मुफ्त में कराटे की ट्रेनिंग देते हैं। उनका सपना है कि उनकी कराटे अकादमी की एक पक्की छत हो, जहां और भी बच्चे अपने सपनों को साकार कर सकें।
एक सच्ची प्रेरणा
तरुण शर्मा की कहानी यह सिखाती है कि संघर्ष चाहे जितना बड़ा हो, हौसला और मेहनत हर बाधा को पार कर सकती है। उनकी यात्रा हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को पूरा करना चाहता है।
आइए, हम सब मिलकर इस सच्चे हीरो को सलाम करें। अगर आप भी तरुण के सपने को साकार करने में मदद करना चाहते हैं, तो उनसे 9613110009 पर संपर्क करें। आइए, इस प्रेरक कहानी को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाएं ताकि यह और भी लोगों को अपने सपनों के लिए लड़ने की प्रेरणा दे। 🙌🇮🇳✨

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ये वही यूनीफॉर्म है जो बीर महानायक पहनते थे💪😍💯

पराक्रम दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं, बधाई हो💓💘💯

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