41 ث - ترجم

आज जो जर्जर दिख रहा 🏠😥
किसी जमाने में इस घर का भी अलग ही दबदबा रहा होगा 😊🔥🌱🌾🌿🥀🏛️🏡🏕️🏠

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Please please please ऐसा ब्रेकर न बनाए !!!
नहीं तो उन लोगों का कब्जा हो जाएगा 😆😆

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बेटियाँ चावल उछाल
बिना पलटे,
महावर लगे कदमों से विदा हो जाती हैं ।

छोड़ जाती है बुक शेल्फ में,
कवर पर अपना नाम लिखी किताबें ।

दीवार पर टंगी खूबसूरत आइल पेंटिंग के एक कोने पर लिखा अपना नाम ।

खामोशी से नर्म एहसासों की निशानियां,
छोड़ जाती है ......
बेटियाँ विदा हो जाती हैं ।

रसोई में नए फैशन की क्राकरी खरीद,
अपने पसंद की सलीके से बैठक सजा,
अलमारियों में आउट डेटेड ड्रेस छोड़,
तमाम नयी खरीदादारी सूटकेस में ले,
मन आँगन की तुलसी में दबा जाती हैं ...
बेटियाँ विदा हो जाती हैं।

सूने सूने कमरों में उनका स्पर्श,
पूजा घर की रंगोली में उंगलियों की महक,
बिरहन दीवारों पर बचपन की निशानियाँ,
घर आँगन पनीली आँखों में भर,
महावर लगे पैरों से दहलीज़ लांघ जाती है....

बेटियाँ चावल उछाल विदा हो जाती हैं ।

एल्बम में अपनी मुस्कुराती तस्वीरें ,
कुछ धूल लगे मैडल और कप ,
आँगन में गेंदे की क्यारियाँ उसकी निशानी,
गुड़ियों को पहनाकर एक साड़ी पुरानी,
उदास खिलौने आले में औंधे मुँह लुढ़के,
घर भर में वीरानी घोल जाती हैं ....

बेटियाँ चावल उछाल विदा हो जाती हैं।

टी वी पर शादी की सी डी देखते देखते,
पापा हट जाते जब जब विदाई आती है।
सारा बचपन अपने तकिये के अंदर दबा,
जिम्मेदारी की चुनर ओढ़ चली जाती हैं ।

बेटियाँ चावल उछाल बिना पलटे विदा हो जाती हैं ।

......बस यही एक ऐसा पौधा है ..जो बीस पच्चीस साल का होकर भी दूसरे आंगन मे जा के फिर उस आंगन का होकर खुशबू, छांव , फल , सकून और हरियाली देता है ...ये तुलसी से कम योग्य नहीं .....ये भी पूजने योग्य है .......!!!

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आज भी एक रुपये की कीमत उन लोगों के लिए बहुत मायने रखती है, जो इसे कमाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। फिर भी, देश में ऐसे कई लोग हैं जिन्हें एक रुपये में भी भरपेट खाना नसीब नहीं होता। लेकिन दिल्ली के नांगलोई इलाके में रहने वाले प्रवीण गोयल ने यह सुनिश्चित किया है कि जरूरतमंदों को कभी भूखे पेट न सोना पड़े।
पिछले चार सालों से प्रवीण गोयल ने अपनी पहल, ‘श्री श्याम रसोई’, के माध्यम से एक मिसाल कायम की है। यहां मात्र एक रुपये में रोज़ाना हजारों लोगों को स्वादिष्ट और पौष्टिक खाना मिलता है। इस रसोई में दो सब्जियां, दाल-चावल, रोटी और मिठाई परोसी जाती है।
इस सेवा को बनाए रखने के लिए प्रवीण ने अपनी जीवनभर की जमा-पूंजी लगा दी और यहां तक कि अपनी पत्नी के गहने भी बेच दिए। उनका मानना है कि यह रसोई गरीब-अमीर का भेदभाव किए बिना सभी जरूरतमंदों के लिए है।
इस रसोई में प्रवीण के साथ कई सेवा भावी लोग निस्वार्थ भाव से काम करते हैं। यह पहल केवल भोजन तक सीमित नहीं है, बल्कि मानवता और समानता का भी संदेश देती है। प्रवीण गोयल जैसे लोग समाज के लिए एक प्रेरणा हैं।

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बहुत अधिक #खुशी आपको #रुला देती है
#डोमाराजू_गुकेश.....फूट फूट कर रोए....
क्योंकि वो #शतरंज के नए विश्व चैंपियन बन गए हैं.
केवल 18 वर्ष के #सनातनी #हिन्दू... #शिवभक्त #गुकेश...
आखिर इतने दिन तक ड्रा ड्रा देखते हुए.... 😁
भारतीय शतरंज के लिए #ऐतिहासिक क्षण ❣️💪🔥✊ अविश्वनीय ! इतिहास के सबसे युवा विश्व चैंपियन 18 वर्षीय #गुकेशडी 🇮🇳🇮🇳

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