image
43 w - Vertalen

2 दिवसीय रूस दौरे के लिए रवाना हुए पीएम मोदी

image

image

image

image
43 w - Vertalen

कल अहसास हुआ कि जशपुर वाक़ई दिल्ली से बहुत दूर जंगलों में है, जब कल मुझे प्रकाशक द्वारा 'सूचना' मिली कि 'मैं से माँ तक' का पाँचवा संस्करण अप्रैल में आ गया था, लेकिन प्रकाशक मुझे सूचित नहीं कर पाए। अगले चुनाव में मैं सरकार के आगे अनशन करूँगी कि जशपुर में फ्लाइट नहीं तो ट्रेन रूट ही चलवा दें ताकि किताबें ना सही, "सूचनाएँ" तो कम से कम समय पर पहुँच जाएँ।

ख़ैर, पाँच संस्करण वाली अब यह मेरी दूसरी किताब बन गई है। इसके आगे अभी 'ऐसी वैसी औरत' है जिसके 'सात' संस्करण आ चुके हैं। अन्य चार में से 3 के भी दो संस्करण हो गए हैं। पाठकों के इस प्रेम के प्रति आभार शब्दों में ज्ञापित नहीं कर सकती, फिर भी दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया, आप हमें पढ़ते हैं तो हम हैं। ❤️

image
43 w - Vertalen

प्री-लिट् चौक सेशन 😬❤️

image
43 w - Vertalen

माँ बताती हैं : मैं पाँच साल की रही होउंगी, जब होली आई तो मैंने ज़िद पकड़ ली कि इस साल मैं होलिका दहन देखूँगी। उस साल होलिका दहन का मुहूर्त रात 2:30 बजे का था। उन दिनों हम चंदेरी में रहा करते थे। हमारे मकानमालिक के बाड़े में कई किराएदार थे। सब मिलकर होलिका दहन मनाते तो वह उत्सव जैसा होता। मैं वह उत्सव मिस नहीं करना चाहती थी, बस इसलिए ज़िद में रात ढाई बजे का इंतज़ार करती रही। नींद न आए इसलिए रातभर बैठकर ड्राइंग बनाती रही। कक्षा आठ में जब अशोकनगर रहे तब मैंने अपनी आख़री बड़ी पेंटिंग बनाई थी। उसके बाद कुछ निजी कारणों से रंग छोड़ दिए थे। फिर बस पेंसिल स्केचिंग करती। मुझे याद नहीं कि जीवन का कोई एक साल ऐसा बीता होगा जिसमें मैंने कुछ भी ड्रॉ न किया हो।
बचपन से शुरू हुआ वह सफर और पिछले छः महीनों का लगातार अभ्यास आज यहाँ तक ले आया है, जिसने मुझमें विश्वास जगाया कि मैं (3d) पोट्रेट स्कल्पचर पेंटिंग बना सकती हूँ। इसे बनाने से पहले मैं नहीं जानती थी कि बना पाउंगी या नहीं क्योंकि इससे पहले मैंने ऐसी कोई पेंटिंग नहीं बनाई थी, बस पेंसिल स्केच पोट्रेट बनाए थे लेकिन 20 दिन तक प्रतिदिन 5-6 घंटे खड़े रहकर काम किया और नतीज़ा आपके सामने है। इस पेंटिंग के पूरा होने का श्रेय 'डॉ कुमार अरुणोदय जी' को भी जाता है जिन्होंने मेरी कला में विश्वास दिखाया और मुझे यह अवसर दिया कि मैं उनकी माताजी की पेंटिंग बना सकूँ। सहृदय धन्यवाद 🙏
(यदि आप किसी भी प्रकार की स्कल्पचर पेंटिंग बनवाना चाहें तो मैसेज करके जानकारी ले सकते हैं)

image
43 w - Vertalen

माँ बताती हैं : मैं पाँच साल की रही होउंगी, जब होली आई तो मैंने ज़िद पकड़ ली कि इस साल मैं होलिका दहन देखूँगी। उस साल होलिका दहन का मुहूर्त रात 2:30 बजे का था। उन दिनों हम चंदेरी में रहा करते थे। हमारे मकानमालिक के बाड़े में कई किराएदार थे। सब मिलकर होलिका दहन मनाते तो वह उत्सव जैसा होता। मैं वह उत्सव मिस नहीं करना चाहती थी, बस इसलिए ज़िद में रात ढाई बजे का इंतज़ार करती रही। नींद न आए इसलिए रातभर बैठकर ड्राइंग बनाती रही। कक्षा आठ में जब अशोकनगर रहे तब मैंने अपनी आख़री बड़ी पेंटिंग बनाई थी। उसके बाद कुछ निजी कारणों से रंग छोड़ दिए थे। फिर बस पेंसिल स्केचिंग करती। मुझे याद नहीं कि जीवन का कोई एक साल ऐसा बीता होगा जिसमें मैंने कुछ भी ड्रॉ न किया हो।
बचपन से शुरू हुआ वह सफर और पिछले छः महीनों का लगातार अभ्यास आज यहाँ तक ले आया है, जिसने मुझमें विश्वास जगाया कि मैं (3d) पोट्रेट स्कल्पचर पेंटिंग बना सकती हूँ। इसे बनाने से पहले मैं नहीं जानती थी कि बना पाउंगी या नहीं क्योंकि इससे पहले मैंने ऐसी कोई पेंटिंग नहीं बनाई थी, बस पेंसिल स्केच पोट्रेट बनाए थे लेकिन 20 दिन तक प्रतिदिन 5-6 घंटे खड़े रहकर काम किया और नतीज़ा आपके सामने है। इस पेंटिंग के पूरा होने का श्रेय 'डॉ कुमार अरुणोदय जी' को भी जाता है जिन्होंने मेरी कला में विश्वास दिखाया और मुझे यह अवसर दिया कि मैं उनकी माताजी की पेंटिंग बना सकूँ। सहृदय धन्यवाद 🙏
(यदि आप किसी भी प्रकार की स्कल्पचर पेंटिंग बनवाना चाहें तो मैसेज करके जानकारी ले सकते हैं)

image
43 w - Vertalen

माँ बताती हैं : मैं पाँच साल की रही होउंगी, जब होली आई तो मैंने ज़िद पकड़ ली कि इस साल मैं होलिका दहन देखूँगी। उस साल होलिका दहन का मुहूर्त रात 2:30 बजे का था। उन दिनों हम चंदेरी में रहा करते थे। हमारे मकानमालिक के बाड़े में कई किराएदार थे। सब मिलकर होलिका दहन मनाते तो वह उत्सव जैसा होता। मैं वह उत्सव मिस नहीं करना चाहती थी, बस इसलिए ज़िद में रात ढाई बजे का इंतज़ार करती रही। नींद न आए इसलिए रातभर बैठकर ड्राइंग बनाती रही। कक्षा आठ में जब अशोकनगर रहे तब मैंने अपनी आख़री बड़ी पेंटिंग बनाई थी। उसके बाद कुछ निजी कारणों से रंग छोड़ दिए थे। फिर बस पेंसिल स्केचिंग करती। मुझे याद नहीं कि जीवन का कोई एक साल ऐसा बीता होगा जिसमें मैंने कुछ भी ड्रॉ न किया हो।
बचपन से शुरू हुआ वह सफर और पिछले छः महीनों का लगातार अभ्यास आज यहाँ तक ले आया है, जिसने मुझमें विश्वास जगाया कि मैं (3d) पोट्रेट स्कल्पचर पेंटिंग बना सकती हूँ। इसे बनाने से पहले मैं नहीं जानती थी कि बना पाउंगी या नहीं क्योंकि इससे पहले मैंने ऐसी कोई पेंटिंग नहीं बनाई थी, बस पेंसिल स्केच पोट्रेट बनाए थे लेकिन 20 दिन तक प्रतिदिन 5-6 घंटे खड़े रहकर काम किया और नतीज़ा आपके सामने है। इस पेंटिंग के पूरा होने का श्रेय 'डॉ कुमार अरुणोदय जी' को भी जाता है जिन्होंने मेरी कला में विश्वास दिखाया और मुझे यह अवसर दिया कि मैं उनकी माताजी की पेंटिंग बना सकूँ। सहृदय धन्यवाद 🙏
(यदि आप किसी भी प्रकार की स्कल्पचर पेंटिंग बनवाना चाहें तो मैसेज करके जानकारी ले सकते हैं)

image