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पुनीत राजकुमार कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के एक मशहूर अभिनेता और गायक थे, जिन्हें लोग 'पॉवर स्टार' के नाम से जानते थे। उनका जन्म 17 मार्च 1975 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ था। वह कन्नड़ सिनेमा के महान अभिनेता डॉ. राजकुमार के बेटे थे, जिनका नाम कन्नड़ फिल्म जगत में बहुत सम्मान से लिया जाता है।

पुनीत राजकुमार ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में की थी। 1985 में आई फिल्म **'बेट्टाडा हूवु'** में उनकी बेहतरीन अदाकारी के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बचपन से ही उनकी प्रतिभा का लोहा सबने माना था। उन्होंने अपने पिता की लोकप्रियता को बनाए रखते हुए कन्नड़ सिनेमा में अपनी एक अलग पहचान बनाई।

2002 में बतौर मुख्य अभिनेता उनकी पहली फिल्म **'अप्पू'** रिलीज हुई, जो सुपरहिट साबित हुई। इस फिल्म ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया और वह युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए। इसके बाद पुनीत ने **'अभि', 'वीरा कन्नडिगा', 'अरसु', 'मिलाना'** जैसी कई हिट फिल्में दीं। उनकी हर फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया और उनकी एक्टिंग के साथ-साथ उनके डांस और एक्शन सीक्वेंस को भी दर्शकों ने खूब सराहा।

पुनीत सिर्फ एक बेहतरीन अभिनेता ही नहीं, बल्कि एक शानदार गायक भी थे। उन्होंने कई फिल्मों में गाने गाए, जो खासकर उनके फैन्स के बीच काफी लोकप्रिय रहे। उनके गानों और अदाकारी ने उन्हें कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के सबसे चहेते सितारों में से एक बना दिया।

पुनीत राजकुमार अपनी सादगी और सामाजिक कार्यों के लिए भी जाने जाते थे। उन्होंने कई चैरिटी संस्थाओं को समर्थन दिया और शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े कई कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वह हमेशा समाज की भलाई के कामों में आगे रहते थे, जिसके कारण उन्हें लोगों का बहुत प्यार और सम्मान मिला।

29 अक्टूबर 2021 को, 46 साल की उम्र में हार्ट अटैक से उनका अचानक निधन हो गया। उनके निधन से पूरी कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री और उनके चाहने वालों को गहरा सदमा लगा। पुनीत राजकुमार का असमय निधन एक बड़ा नुकसान था, लेकिन उनकी फिल्मों, गानों और सामाजिक कार्यों के जरिए वह हमेशा लोगों के दिलों में जिंदा रहेंगे।

पुनीत राजकुमार का नाम कन्नड़ सिनेमा के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा, और वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बने रहेंगे।

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रायचूर (कर्नाटक) के मज़दूर अंजिनेय यादव ने पैदल स्कूल जाने वाले 11 छात्रों को साइकल दी है। उन्होंने कहा, "मैंने गांव के कई छात्रों को पैदल स्कूल जाते देखा तो सोचा कि मुझे उनकी मदद करनी चाहिए।" उन्होंने कहा, "मैंने रोज़ाना अपनी कमाई में से थोड़ी-थोड़ी रकम बचानी शुरू की और ₹40,000 से अधिक की बचत करने में कामयाब रहा।"
सलाम है ऐसे देशभक्त भाई क़ो ऐसे कार्य सच्ची देशभक्ति से कम नही 🙏

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"मंजिल उन्हीं को मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है!" ये पंक्तियां वाकई में उन लोगों के लिए लिखी गई हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत और लगन से असंभव को संभव बना दिखाया है। ऐसी ही एक मिसाल हैं शीला शर्मा, जिनकी कहानी उनके अटूट हौसले की गवाही देती है। 💫
शीला की जिंदगी में एक बड़ा तूफान तब आया जब एक रेल हादसे में उन्होंने अपने दोनों हाथ खो दिए और साथ ही अपने पैर की तीन अंगुलियां भी। इस हादसे में उनकी मां भी चली गईं। इतने बड़े नुकसान के बाद भी शीला ने हार मानने के बजाय अपनी जिंदगी को एक नई दिशा देने का फैसला किया। एक छोटी-सी बच्ची के लिए बिना हाथों के और बिना मां के जीना बहुत कठिन था, लेकिन शीला ने अपनी कमजोरी को ताकत बना लिया। 🌈
गोरखपुर के एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली शीला आज लखनऊ जैसे महानगर में अपनी पहचान बना चुकी हैं। वे एक कुशल पेंटर हैं और सबसे खास बात यह है कि वे अपने पैरों से पेंटिंग बनाती हैं। उनकी कला इतनी उत्कृष्ट है कि लोग उनके हुनर को देखकर चकित रह जाते हैं। हाथों से पेंटिंग न कर पाने के बावजूद भी वे अपनी पेंटिंग्स में जीवन के सभी रंग भर देती हैं। 🎨
जैसे-जैसे शीला बड़ी होती गईं, उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता गया। उन्होंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में स्नातक किया और अपने पैरों से पेंटिंग बनाना शुरू कर दिया। वे पेंटिंग करते समय अपने पैरों और मुंह दोनों का उपयोग करती हैं। कुछ समय के लिए वे दिल्ली में भी रहीं, जहां के माहौल और कलाकारों ने उनके हौसलों को और प्रेरित किया। हालांकि, उनका दिल अपने शहर लखनऊ में ही बसता था, और वे वहां वापस लौट आईं। 💖
लखनऊ लौटने के बाद शीला की मुलाकात सुधीर से हुई और उन्होंने शादी कर ली। शादी के बाद भी उन्होंने अपने रंगों को नहीं छोड़ा। सुधीर ने उनका पूरा समर्थन किया, जिससे उनकी कला और भी निखर गई। शीला ने अपने परिवार और कला दोनों को बखूबी संभाला। उन्होंने न केवल किचन में अपने कर्तव्यों को निभाया, बल्कि अपने पेंटिंग्स में भी जान डाल दी। 🎨👩‍🎨
शीला अपनी कला की प्रदर्शनी लखनऊ, दिल्ली, मुंबई, और बैंगलोर जैसे महानगरों में लगा चुकी हैं। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें कई पुरस्कार भी दिलाए हैं। उनके परिचित उन्हें 'फुट पेंटर' के नाम से जानते हैं। शीला को प्राकृतिक दृश्य और महिलाओं की पेंटिंग बनाना बेहद पसंद है। 🌿👩‍🎨
शीला का सपना है कि वे उन बच्चों को पेंटिंग सिखाएं जो किसी हादसे में अपने हाथ या पैर खो चुके हैं। लेकिन वे इसे किसी एनजीओ या पैसों के लिए नहीं करना चाहतीं। उनका मानना है कि कुछ भी असंभव नहीं है। हर काम किया जा सकता है, बस जरूरत है हौसले और सकारात्मक सोच की। शायद इसलिए कहा जाता है कि कला शरीर के अंगों की मोहताज नहीं होती, उसे बस जुनून और धुन की जरूरत होती है। 💪🎨

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