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अगर कभी घर से दूर देहरादून शहर में पहाड़ के पारंपरिक व्यंजनों को खाने का मन हो तो आइए, रिस्पना पुल से 1 किलोमीटर आगे हरिद्वार रोड शास्त्री नगर के सामने एक छोटी सी दुकान "बूढ़ दादी" पर जहाँ, पौड़ी गढ़वाल निवासी डोभाल दम्पति द्वारा आज के दौर में भी पहाड़ो से विलुप्त हो चुके पारंपरिक पौष्टिक व्यंजनों को जीवंत करने का एक सराहनीय प्रयास किया जा रहा है ।
इस "बूढ़ दादी" रेस्टोरेंट में आपको विशेष तौर से पहाड़ी ढिढका , बिरंजी (झंगोरे की बिरयानी) , सिडकु और असकली जैसे लजीज व्यंजन खाने को मिलेंगे इसके साथ ही यहाँ की सबसे विशेष समौण "बारह नाज का बुख़णा" मिलेंगे जिसका कोई जवाब नही है।
आप सभी को भी कभी अवसर मिले तो एक बार जरूर जाइएगा।
साभार: पौड़ी गढ़वाल फेसबुक पेज की वाल से
अगर कभी घर से दूर देहरादून शहर में पहाड़ के पारंपरिक व्यंजनों को खाने का मन हो तो आइए, रिस्पना पुल से 1 किलोमीटर आगे हरिद्वार रोड शास्त्री नगर के सामने एक छोटी सी दुकान "बूढ़ दादी" पर जहाँ, पौड़ी गढ़वाल निवासी डोभाल दम्पति द्वारा आज के दौर में भी पहाड़ो से विलुप्त हो चुके पारंपरिक पौष्टिक व्यंजनों को जीवंत करने का एक सराहनीय प्रयास किया जा रहा है ।
इस "बूढ़ दादी" रेस्टोरेंट में आपको विशेष तौर से पहाड़ी ढिढका , बिरंजी (झंगोरे की बिरयानी) , सिडकु और असकली जैसे लजीज व्यंजन खाने को मिलेंगे इसके साथ ही यहाँ की सबसे विशेष समौण "बारह नाज का बुख़णा" मिलेंगे जिसका कोई जवाब नही है।
आप सभी को भी कभी अवसर मिले तो एक बार जरूर जाइएगा।
साभार: पौड़ी गढ़वाल फेसबुक पेज की वाल से
अगर कभी घर से दूर देहरादून शहर में पहाड़ के पारंपरिक व्यंजनों को खाने का मन हो तो आइए, रिस्पना पुल से 1 किलोमीटर आगे हरिद्वार रोड शास्त्री नगर के सामने एक छोटी सी दुकान "बूढ़ दादी" पर जहाँ, पौड़ी गढ़वाल निवासी डोभाल दम्पति द्वारा आज के दौर में भी पहाड़ो से विलुप्त हो चुके पारंपरिक पौष्टिक व्यंजनों को जीवंत करने का एक सराहनीय प्रयास किया जा रहा है ।
इस "बूढ़ दादी" रेस्टोरेंट में आपको विशेष तौर से पहाड़ी ढिढका , बिरंजी (झंगोरे की बिरयानी) , सिडकु और असकली जैसे लजीज व्यंजन खाने को मिलेंगे इसके साथ ही यहाँ की सबसे विशेष समौण "बारह नाज का बुख़णा" मिलेंगे जिसका कोई जवाब नही है।
आप सभी को भी कभी अवसर मिले तो एक बार जरूर जाइएगा।
साभार: पौड़ी गढ़वाल फेसबुक पेज की वाल से