Discover postsExplore captivating content and diverse perspectives on our Discover page. Uncover fresh ideas and engage in meaningful conversations
फिल्म अभिनेता रज़ा मुराद ने आपने पिता और एक महान कलाकार मुराद ऊर्फ हामिद अली खान के नाम कि सड़क का इनॉग्रेशन किया , साथ मैं उनकी धर्मपत्नी रहीं ।
बाप बेटे ने मिलकर लगभग 1100 फिल्मो मैं अभिनेय किया है । 1938 मैं नवाब रज़ा अली खान ने मुराद साहब को 24 घंटे मैं रामपुर छोड़ने का हुक्म दे दिया था , इसके बाद वो सीधे मुंबई पहुंचे , उसके बाद वो कैसे फिल्मो मैं इतने बड़े कलाकार बने ये पूरी कहानी के लिए एक विडीओ बना कर् आपके सामने रखूँगा , अगर कहानी सुन्ना पसंद करोगे तो कमेंट मैं बताओ ।
पेज को फॉलो कर लीजिए ।
एक ट्रेन द्रुत गति से दौड़ रही थी। ट्रेन अंग्रेजों से भरी हुई थी। उसी ट्रेन के एक डिब्बे में अंग्रेजों के साथ एक भारतीय भी बैठा हुआ था।
डिब्बा अंग्रेजों से खचाखच भरा हुआ था। वे सभी उस भारतीय का मजाक उड़ाते जा रहे थे। कोई कह रहा था, देखो कौन नमूना ट्रेन में बैठ गया, तो कोई उनकी वेश-भूषा देखकर उन्हें गंवार कहकर हँस रहा था।कोई तो इतने गुस्से में था कि ट्रेन को कोसकर चिल्ला रहा था, एक भारतीय को ट्रेन मे चढ़ने क्यों दिया ? इसे डिब्बे से उतारो।
किँतु उस धोती-कुर्ता, काला कोट एवं सिर पर पगड़ी पहने शख्स पर इसका कोई प्रभाव नही पड़ा।वह शांत गम्भीर भाव लिये बैठा था, मानो किसी उधेड़-बुन मे लगा हो।
ट्रेन द्रुत गति से दौड़े जा रही थी औऱ अंग्रेजों का उस भारतीय का उपहास, अपमान भी उसी गति से जारी था।किन्तु यकायक वह शख्स सीट से उठा और जोर से चिल्लाया "ट्रेन रोको"।कोई कुछ समझ पाता उसके पूर्व ही उसने ट्रेन की जंजीर खींच दी।ट्रेन रुक गईं।
जाटनी जट्टी ये अपने आप मे जाट नस्ल की जनक,संरक्षक,श्रेष्ठता का आधार है। इनके कर्म,धर्म,रिश्ते,व्यवहार,शिक्षा अव्वल दर्जे की होती है। अपने आप मे जाटनी एक विश्विद्यालय से कम नही होती है ।जाट तो अपने आर्थिक आय से जुड़े नित्य कर्मो में व्यस्त रहता है। चाहे खेत किसान ही हो जाट लेकिन उसकी नस्ल का चरित्र निर्माण व शारीरिक व बौद्धिक विकास जाटनी ही करती है।
हमारी नानी,दादी,माँ,भुआ,बहन,भाभी,चाची,ताई, एक बेहतरीन रिश्तों का संसार है। इन्ही रिश्तों की वजह से जाट का वजूद है ।जाटनी न हो तो जाट नस्ल का ठ से ठठेरा बज जाएगा। एक जाटनी भाइयो के साथ रहते हुए,घर के हर काम में बराबर का सहयोग करती है। समयानुसार होते परिवर्तन के अंतर्गत शिक्षा, खेल,कल्चर,परम्परा,विरासत से सीखती है ।आगे बढ़ती है उसकी सोच परिवार से जुड़ी रहती है तो वह आगे वाले अपने भविष्य के परिवार को वही कल्चर परम्पराये ओर शिक्षा से रूबरू कराती है। जिस माहौल से जाटनी निकलकर जाती है उसी तरह का संसार उसको आगे मिलता है। वही कल्चर,वही सिस्टम जिस से वो मजबूत मानसिकता से अपने दूसरे परिवार में सामंजस्य बैठा लेती है। और एक मजबूत भरोसे से उसको यह अदभुत संसार खुशनुमा जिंदगी सा लगता है।
जाटनी काम से कभी नही घबराई, न ही जाट कभी राजाओं की तरह आरामतलबी में रहा ।यह तो जाट सिस्टम है। जहां मेहनत के बाद रोटी भी गजब का स्वाद देती है।
मैं शर्तिया कह सकता हूँ इस जाट संसार मे वैवाहिक विघटन सिर्फ अपवाद के तौर पर दिखते है। जाटनी ही असल वजह है एक मजबूत जाट परिवार की ।जब से जाटनी ने दादी नानी की गोद छोड़ टीवी का रिमोट,व दादी नानी की उत्सुकता भरी आंखों से हटकर स्क्रीन से आंखे जोड़ी है ।तब से भटकाव शुरू हुआ है। ये खुद पर दूसरी दुनिया का मानसिक आवरण चढ़ाये बैठी है। दादी नानी रिश्तों व अपने जाट कल्चर व कुछ ऐतिहासिक घटनाओं से रूबरू कराती थी। एक मजबूत हौसलो वाली जाटनी बनाती थी ।वही माँ और भुआ काम,व पारिवारिक माहौल से वाकिफ कराती थी। जाटनी ही रिश्तों व आस्था के कर्मो को निभाती है जाट का इन मामलों में ज्ञान बिल्कुल अधूरा होता है।गांवो की रौनक भी जाटनी ही होती है। चाहे उत्सव हो मेला हो घरों में कोई भी उत्सव हो गीत संगीत कल्चरल सिस्टम को जाटनी ही निभाती है ।
जाट ग्रामीण आँचल में बसने वाली नस्ल है ।इस पर शहरीकरण जो थोपा गया है सिस्टम की बेरुखी द्वारा थोपा गया है। जो आधुनिक साधन संसाधन शहरों में है उनका इस्तेमाल गांव में भी हो सकता है ।शहरीकरण ने ही जाटनी को जाट नस्ल से दूर किया है। उसकी सोच नस्ल,विरासत,कल्चर,परम्परा से हटकर काल्पनिक कहानियों, व ख्वाबी दुनिया मे भटक गई है। जाटनी तो बस गांव में बने मठ,दादा खेड़ा,भूमिया,चामड़,जठेरा, कुछ भी कह लो ,पुरखो का प्रतीक वही जल चढ़ाना व दीपक प्रज्वलित करना था,घरों में दीपक जलाना व सभी वास्तविक जीवनशैली को भरोसे से अपनाना था। लेकिन शहरीकरण ने जाटनी को जाटत्व से दूर कर दिया। शहर में रहने वाले जाट परिवार की जाटनी चाहे ओलिम्पिक तक पहुँचे, या आईएएस तक उसकी सोच फिर नस्ल से बंधी नही रहेगी। लेकिन उसकी सोच में बाध्यता जरूर होगी। इंसानियत का पूर्ण रूप उसमें भी नही होगा क्योंकि जो आवरण इनकीं मानसिक परत को घेरे हुए है। वह दूसरो के सिस्टम का है। इनमे हिन्दू मुस्लिम,देश विदेश,अच्छा बुरा,गरीब अमीर, बनाबट सच्चाई,रिश्तों का नाटक भरा होगा। ये अपनी जिंदगी को एक स्टेटस सिंबल बनाकर धोखे में जीने को मजबूर हो जाती है। दुखी रहती है। चाहे धन और बनाबटी लोगो का जमाबड़ा इनके आसपास खूब इकट्ठा रहता हो।