अपने फैसलों के लिए दुनिया भर में सराहे जाने वाले सामाजिक न्याय के संघर्ष की दृढ़ निश्चयी पृष्ठ भूमि से आने वाले न्याय मूर्ति #भूषण_रामकृष्ण_गवई का माननीय सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश के पद पर विराजमान होना अत्यधिक गौरवपूर्ण और सुखद क्षण है, वह दूसरे दलित और पहले बौद्ध हैं जो इस परम आदरणीय पद पर विराजमान हुये हैं। उनके पिता स्व. श्री आरएस गवई जो सामाजिक न्याय के एक महान योद्धा थे, उनको एक से अधिक बार सुनने का मुझे भी सौभाग्य मिला। वह बताते थे कि क्यों अंबेडकर के मन में सनातन व्यवस्था के प्रति विद्रोह पैदा हुआ। श्री अंबेडकर जी का मानना था कि सनातन समाज असहिष्णु और अपनों के प्रति भी असंवेदनशील हो गया है। श्री गवई बताते थे इसलिए अंबेडकर जी ने बौद्ध धर्म अपनाया। काश भूषण रामकृष्ण गवई जी को प्रधान न्यायाधीश के रूप में उतना कार्यकाल मिल पाता जितना श्री चंद्रचूड़ जी को मिला। मैं निश्चय ही कह सकता हूं कि देश की न्यायिक व्यवस्था में और अधिक तार्किकता, साहसकिता, सहिष्णुता और समानता के प्रति प्रतिबद्धता मजबूत होती। हां श्री गवई को इतना समय अवश्य मिल रहा है कि "कुछ और गवई तथा महिलाएं" न्यायिक प्रणाली के अंदर ला सकें ताकि हमारी समस्त न्यायिक प्रणाली का मानवीय चेहरा है वह और चमके।
