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'लोकमाता' पूज्य देवी अहिल्याबाई होल्कर जी के त्रिशताब्दी स्मृति अभियान के अंतर्गत लखनऊ में आज आयोजित प्रदेश कार्यशाला में सम्मिलित हुआ।
अहिल्याबाई होल्कर जी ने सत्ता संभालने के बाद बहुत ही स्पष्ट उद्घोषणा की थी कि मेरा पथ धर्म का पथ है, धर्म का पथ ही न्याय का पथ है। न्याय का पथ हमें सर्वशक्तिमान और समर्थ बनाने में सहायक हो सकता है और उसी भाव के साथ उन्होंने उस कालखंड में सनातन धर्म की पुनर्स्थापना में अपना योगदान दिया था।
उस विशाल और विराट व्यक्तित्व के प्रति भारत की सनातन धर्म की पवित्र परंपरा ने उन्हें 'पुण्यश्लोक' के रूप में सादर नमन करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है।
उनकी पावन स्मृतियों को नमन!

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'लोकमाता' पूज्य देवी अहिल्याबाई होल्कर जी के त्रिशताब्दी स्मृति अभियान के अंतर्गत लखनऊ में आज आयोजित प्रदेश कार्यशाला में सम्मिलित हुआ।
अहिल्याबाई होल्कर जी ने सत्ता संभालने के बाद बहुत ही स्पष्ट उद्घोषणा की थी कि मेरा पथ धर्म का पथ है, धर्म का पथ ही न्याय का पथ है। न्याय का पथ हमें सर्वशक्तिमान और समर्थ बनाने में सहायक हो सकता है और उसी भाव के साथ उन्होंने उस कालखंड में सनातन धर्म की पुनर्स्थापना में अपना योगदान दिया था।
उस विशाल और विराट व्यक्तित्व के प्रति भारत की सनातन धर्म की पवित्र परंपरा ने उन्हें 'पुण्यश्लोक' के रूप में सादर नमन करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है।
उनकी पावन स्मृतियों को नमन!

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'लोकमाता' पूज्य देवी अहिल्याबाई होल्कर जी के त्रिशताब्दी स्मृति अभियान के अंतर्गत लखनऊ में आज आयोजित प्रदेश कार्यशाला में सम्मिलित हुआ।
अहिल्याबाई होल्कर जी ने सत्ता संभालने के बाद बहुत ही स्पष्ट उद्घोषणा की थी कि मेरा पथ धर्म का पथ है, धर्म का पथ ही न्याय का पथ है। न्याय का पथ हमें सर्वशक्तिमान और समर्थ बनाने में सहायक हो सकता है और उसी भाव के साथ उन्होंने उस कालखंड में सनातन धर्म की पुनर्स्थापना में अपना योगदान दिया था।
उस विशाल और विराट व्यक्तित्व के प्रति भारत की सनातन धर्म की पवित्र परंपरा ने उन्हें 'पुण्यश्लोक' के रूप में सादर नमन करते हुए उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है।
उनकी पावन स्मृतियों को नमन!

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ਭਾਰਤ ਨੇ ਟਰੰਪ ਨੂੰ ਦਿੱਤਾ ਮੂੰਹ-ਤੋੜਵਾਂ ਜਵਾਬ, ਹੁਣ ਅਮਰੀਕੀ ਉਤਪਾਦਾਂ 'ਤੇ ਵੀ ਲੱਗੇਗਾ ਟੈਰਿਫ

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"सफलता"
पिता की दौलत के बिना सफलता की सीढ़ी चढ़ने का मतलब है अपने दम पर, कड़ी मेहनत और लगन से लक्ष्य हासिल करना। यह एक कठिन लेकिन संतोषजनक यात्रा है जो आत्मविश्वास और आत्म-निर्भरता की भावना पैदा करती है। यदि आप पिता की दौलत के बिना सफलता हासिल करना चाहते हैं, तो आपको अपने लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना होगा, कड़ी मेहनत करनी होगी, और कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। यह महत्वपूर्ण है कि सफलता एक प्रक्रिया है, न कि कोई गंतव्य। आपको लगातार सीखते रहना चाहिए, विकसित रहना चाहिए, और अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते रहना चाहिए।

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बटाला में मिले श्री। ज़ा. ई/एल का टुकड़ा

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