Wifi Connection in Thoothukudi | Sathya Fibernet | #internet service provider in thoothukudi # wifi connection in thoothukudi # fibernet connection in thoothukudi # broadband connection in tuticorin
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आचार्य चाणक्य को कौटिल्य नाम से भी जाना जाता है और वह चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे. उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनका असली नाम विष्णुगुप्त था. आचार्य चाणक्य का गौत्र कोटिल था और इसलिए उनका नाम कौटिल्य भी पड़ गया. आचार्य चाणक्य को लगभग हर विषय की जानकारी थी और खगोल विज्ञान का तो पूरा ज्ञान था.
भाइयों ने 50 हजार के उधार से शुरू की थी Hero Cycles, जो आज है दुनिया की सबसे बड़ी Cycle कंपनी
धीरज झा
धीरज झा
अपडेटेड ऑन Feb 06, 2022, 14:36 IST
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वो दौर भी कमाल का था जब बच्चों के पास मोबाइल फोन, आई पैड, तरह तरह की गेम्स और आधुनिक यंत्रों की बजाए अच्छे-सच्चे दोस्त, बाहर जाने के बहाने, मैदान में खेले जाने वाले खेल, कॉमिक्स और ऐसी तमाम चीजें हुआ करती थीं. ये एक अच्छे बचपन की खास निशानियां थीं. इन्हीं तमाम चीजों में एक नाम आता है साइकिल का.
वही साइकिल जो बर्थडे गिफ्ट से लेकर क्लास में अच्छे नंबर लाने का लालच तक हुआ करती थी. ये वो समय था जब एक बढ़िया साइकिल किसी बच्चे के लिए सबसे बड़ा सपना हुआ करती थी. साइकिल को बिना चढ़े चलाने से शुरू हुआ सफर पहले कैंची और फिर काठी पर बैठ कर चलाने से खत्म होता था.
इसके बाद तो स्टंट्स का दौर शुरू होता था. कौन हाथ छोड़ कर साइकिल चला सकता है और कौन आंख बंद कर के. हमारे बचपन को खूबसूरत बनाने वाली इस साइकिल में भी एक खास नाम था जिसने हमारी साइकिल की ख्वाहिश को पूरा किया और साइकिलों की संख्या घटने नहीं दी. ये नाम था हीरो साइकिल्स. हीरो साइकिल पर बैठा बच्चा सच में खुद को हीरो समझता था.
Munjal Brothers
Hero
कहते हैं एक बार हीरो साइकिल कंपनी में हड़ताल हो गई. साइकिलों का निर्माण एकदम से रुक गया. उस समय कंपनी के मालिक खुद मशीन चला कर साइकिल बनाने लगे. जब कंपनी के बड़े अधिकारियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उनका जवाब था कि “आप सब चाहें तो घर जा सकते हैं लेकिन मेरे पास ऑर्डर हैं और मैं काम करूंगा. अगर साइकिल निर्माण नहीं हुए तो एक वक्त के लिए डीलर समझ जायेंगे कि हड़ताल के कारण काम नहीं हो रहा है मगर उस बच्चे के मन को हम कैसे समझाएंगे जिसके माता-पिता ने उसके जन्मदिन पर उसे साइकिल दिलाने का वादा किया होगा. हमारी हड़ताल की वजह से ऐसे कई बच्चों का दिल टूटेगा. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, मैं हर उस माता पिता का किया हुआ वादा पूरा करूंगा जिन्होंने अपने बच्चे को साइकिल दलाने का वादा किया है.”
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वो दौर भी कमाल का था जब बच्चों के पास मोबाइल फोन, आई पैड, तरह तरह की गेम्स और आधुनिक यंत्रों की बजाए अच्छे-सच्चे दोस्त, बाहर जाने के बहाने, मैदान में खेले जाने वाले खेल, कॉमिक्स और ऐसी तमाम चीजें हुआ करती थीं. ये एक अच्छे बचपन की खास निशानियां थीं. इन्हीं तमाम चीजों में एक नाम आता है साइकिल का.
वही साइकिल जो बर्थडे गिफ्ट से लेकर क्लास में अच्छे नंबर लाने का लालच तक हुआ करती थी. ये वो समय था जब एक बढ़िया साइकिल किसी बच्चे के लिए सबसे बड़ा सपना हुआ करती थी. साइकिल को बिना चढ़े चलाने से शुरू हुआ सफर पहले कैंची और फिर काठी पर बैठ कर चलाने से खत्म होता था.
इसके बाद तो स्टंट्स का दौर शुरू होता था. कौन हाथ छोड़ कर साइकिल चला सकता है और कौन आंख बंद कर के. हमारे बचपन को खूबसूरत बनाने वाली इस साइकिल में भी एक खास नाम था जिसने हमारी साइकिल की ख्वाहिश को पूरा किया और साइकिलों की संख्या घटने नहीं दी. ये नाम था हीरो साइकिल्स. हीरो साइकिल पर बैठा बच्चा सच में खुद को हीरो समझता था.
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कहते हैं एक बार हीरो साइकिल कंपनी में हड़ताल हो गई. साइकिलों का निर्माण एकदम से रुक गया. उस समय कंपनी के मालिक खुद मशीन चला कर साइकिल बनाने लगे. जब कंपनी के बड़े अधिकारियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उनका जवाब था कि “आप सब चाहें तो घर जा सकते हैं लेकिन मेरे पास ऑर्डर हैं और मैं काम करूंगा. अगर साइकिल निर्माण नहीं हुए तो एक वक्त के लिए डीलर समझ जायेंगे कि हड़ताल के कारण काम नहीं हो रहा है मगर उस बच्चे के मन को हम कैसे समझाएंगे जिसके माता-पिता ने उसके जन्मदिन पर उसे साइकिल दिलाने का वादा किया होगा. हमारी हड़ताल की वजह से ऐसे कई बच्चों का दिल टूटेगा. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, मैं हर उस माता पिता का किया हुआ वादा पूरा करूंगा जिन्होंने अपने बच्चे को साइकिल दलाने का वादा किया है.”
भाइयों ने 50 हजार के उधार से शुरू की थी Hero Cycles, जो आज है दुनिया की सबसे बड़ी Cycle कंपनी
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वो दौर भी कमाल का था जब बच्चों के पास मोबाइल फोन, आई पैड, तरह तरह की गेम्स और आधुनिक यंत्रों की बजाए अच्छे-सच्चे दोस्त, बाहर जाने के बहाने, मैदान में खेले जाने वाले खेल, कॉमिक्स और ऐसी तमाम चीजें हुआ करती थीं. ये एक अच्छे बचपन की खास निशानियां थीं. इन्हीं तमाम चीजों में एक नाम आता है साइकिल का.
वही साइकिल जो बर्थडे गिफ्ट से लेकर क्लास में अच्छे नंबर लाने का लालच तक हुआ करती थी. ये वो समय था जब एक बढ़िया साइकिल किसी बच्चे के लिए सबसे बड़ा सपना हुआ करती थी. साइकिल को बिना चढ़े चलाने से शुरू हुआ सफर पहले कैंची और फिर काठी पर बैठ कर चलाने से खत्म होता था.
इसके बाद तो स्टंट्स का दौर शुरू होता था. कौन हाथ छोड़ कर साइकिल चला सकता है और कौन आंख बंद कर के. हमारे बचपन को खूबसूरत बनाने वाली इस साइकिल में भी एक खास नाम था जिसने हमारी साइकिल की ख्वाहिश को पूरा किया और साइकिलों की संख्या घटने नहीं दी. ये नाम था हीरो साइकिल्स. हीरो साइकिल पर बैठा बच्चा सच में खुद को हीरो समझता था.
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कहते हैं एक बार हीरो साइकिल कंपनी में हड़ताल हो गई. साइकिलों का निर्माण एकदम से रुक गया. उस समय कंपनी के मालिक खुद मशीन चला कर साइकिल बनाने लगे. जब कंपनी के बड़े अधिकारियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उनका जवाब था कि “आप सब चाहें तो घर जा सकते हैं लेकिन मेरे पास ऑर्डर हैं और मैं काम करूंगा. अगर साइकिल निर्माण नहीं हुए तो एक वक्त के लिए डीलर समझ जायेंगे कि हड़ताल के कारण काम नहीं हो रहा है मगर उस बच्चे के मन को हम कैसे समझाएंगे जिसके माता-पिता ने उसके जन्मदिन पर उसे साइकिल दिलाने का वादा किया होगा. हमारी हड़ताल की वजह से ऐसे कई बच्चों का दिल टूटेगा. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, मैं हर उस माता पिता का किया हुआ वादा पूरा करूंगा जिन्होंने अपने बच्चे को साइकिल दलाने का वादा किया है.”
भाइयों ने 50 हजार के उधार से शुरू की थी Hero Cycles, जो आज है दुनिया की सबसे बड़ी Cycle कंपनी
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अपडेटेड ऑन Feb 06, 2022, 14:36 IST
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वो दौर भी कमाल का था जब बच्चों के पास मोबाइल फोन, आई पैड, तरह तरह की गेम्स और आधुनिक यंत्रों की बजाए अच्छे-सच्चे दोस्त, बाहर जाने के बहाने, मैदान में खेले जाने वाले खेल, कॉमिक्स और ऐसी तमाम चीजें हुआ करती थीं. ये एक अच्छे बचपन की खास निशानियां थीं. इन्हीं तमाम चीजों में एक नाम आता है साइकिल का.
वही साइकिल जो बर्थडे गिफ्ट से लेकर क्लास में अच्छे नंबर लाने का लालच तक हुआ करती थी. ये वो समय था जब एक बढ़िया साइकिल किसी बच्चे के लिए सबसे बड़ा सपना हुआ करती थी. साइकिल को बिना चढ़े चलाने से शुरू हुआ सफर पहले कैंची और फिर काठी पर बैठ कर चलाने से खत्म होता था.
इसके बाद तो स्टंट्स का दौर शुरू होता था. कौन हाथ छोड़ कर साइकिल चला सकता है और कौन आंख बंद कर के. हमारे बचपन को खूबसूरत बनाने वाली इस साइकिल में भी एक खास नाम था जिसने हमारी साइकिल की ख्वाहिश को पूरा किया और साइकिलों की संख्या घटने नहीं दी. ये नाम था हीरो साइकिल्स. हीरो साइकिल पर बैठा बच्चा सच में खुद को हीरो समझता था.
Munjal Brothers
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कहते हैं एक बार हीरो साइकिल कंपनी में हड़ताल हो गई. साइकिलों का निर्माण एकदम से रुक गया. उस समय कंपनी के मालिक खुद मशीन चला कर साइकिल बनाने लगे. जब कंपनी के बड़े अधिकारियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उनका जवाब था कि “आप सब चाहें तो घर जा सकते हैं लेकिन मेरे पास ऑर्डर हैं और मैं काम करूंगा. अगर साइकिल निर्माण नहीं हुए तो एक वक्त के लिए डीलर समझ जायेंगे कि हड़ताल के कारण काम नहीं हो रहा है मगर उस बच्चे के मन को हम कैसे समझाएंगे जिसके माता-पिता ने उसके जन्मदिन पर उसे साइकिल दिलाने का वादा किया होगा. हमारी हड़ताल की वजह से ऐसे कई बच्चों का दिल टूटेगा. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, मैं हर उस माता पिता का किया हुआ वादा पूरा करूंगा जिन्होंने अपने बच्चे को साइकिल दलाने का वादा किया है.”
भाइयों ने 50 हजार के उधार से शुरू की थी Hero Cycles, जो आज है दुनिया की सबसे बड़ी Cycle कंपनी
धीरज झा
धीरज झा
अपडेटेड ऑन Feb 06, 2022, 14:36 IST
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वो दौर भी कमाल का था जब बच्चों के पास मोबाइल फोन, आई पैड, तरह तरह की गेम्स और आधुनिक यंत्रों की बजाए अच्छे-सच्चे दोस्त, बाहर जाने के बहाने, मैदान में खेले जाने वाले खेल, कॉमिक्स और ऐसी तमाम चीजें हुआ करती थीं. ये एक अच्छे बचपन की खास निशानियां थीं. इन्हीं तमाम चीजों में एक नाम आता है साइकिल का.
वही साइकिल जो बर्थडे गिफ्ट से लेकर क्लास में अच्छे नंबर लाने का लालच तक हुआ करती थी. ये वो समय था जब एक बढ़िया साइकिल किसी बच्चे के लिए सबसे बड़ा सपना हुआ करती थी. साइकिल को बिना चढ़े चलाने से शुरू हुआ सफर पहले कैंची और फिर काठी पर बैठ कर चलाने से खत्म होता था.
इसके बाद तो स्टंट्स का दौर शुरू होता था. कौन हाथ छोड़ कर साइकिल चला सकता है और कौन आंख बंद कर के. हमारे बचपन को खूबसूरत बनाने वाली इस साइकिल में भी एक खास नाम था जिसने हमारी साइकिल की ख्वाहिश को पूरा किया और साइकिलों की संख्या घटने नहीं दी. ये नाम था हीरो साइकिल्स. हीरो साइकिल पर बैठा बच्चा सच में खुद को हीरो समझता था.
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कहते हैं एक बार हीरो साइकिल कंपनी में हड़ताल हो गई. साइकिलों का निर्माण एकदम से रुक गया. उस समय कंपनी के मालिक खुद मशीन चला कर साइकिल बनाने लगे. जब कंपनी के बड़े अधिकारियों ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उनका जवाब था कि “आप सब चाहें तो घर जा सकते हैं लेकिन मेरे पास ऑर्डर हैं और मैं काम करूंगा. अगर साइकिल निर्माण नहीं हुए तो एक वक्त के लिए डीलर समझ जायेंगे कि हड़ताल के कारण काम नहीं हो रहा है मगर उस बच्चे के मन को हम कैसे समझाएंगे जिसके माता-पिता ने उसके जन्मदिन पर उसे साइकिल दिलाने का वादा किया होगा. हमारी हड़ताल की वजह से ऐसे कई बच्चों का दिल टूटेगा. लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा, मैं हर उस माता पिता का किया हुआ वादा पूरा करूंगा जिन्होंने अपने बच्चे को साइकिल दलाने का वादा किया है.”




सोमनाथ मन्दिर भूमण्डल में दक्षिण एशिया स्थित भारतवर्ष के पश्चिमी छोर पर गुजरात नामक प्रदेश स्थित, अत्यन्त प्राचीन व ऐतिहासिक शिव मन्दिर का नाम है। यह भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिन्दा और महत्वपूर्ण मन्दिरों में से एक है। इसे आज भी भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना व जाना जाता है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बन्दरगाह में स्थित इस मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं चन्द्रदेव ने किया था, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में स्पष्ट है।
यह मन्दिर हिन्दू धर्म के उत्थान-पतन के इतिहास का प्रतीक रहा है। अत्यन्त वैभवशाली होने के कारण इतिहास में कई बार यह मंदिर तोड़ा तथा पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान भवन के पुनर्निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने करवाया और पहली दिसम्बर 1955 को भारत के राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया। सोमनाथ मन्दिर विश्व प्रसिद्ध धार्मिक व पर्यटन स्थल है। मन्दिर प्रांगण में रात साढ़े सात से साढ़े आठ बजे तक एक घण्टे का साउण्ड एण्ड लाइट शो चलता है, जिसमें सोमनाथ मन्दिर के इतिहास का बड़ा ही सुन्दर सचित्र वर्णन किया जाता है। लोककथाओं के अनुसार यहीं श्रीकृष्ण ने देहत्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी महत्त्व बढ़ गया।
सोमनाथजी के मन्दिर की व्यवस्था और संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट के अधीन है। सरकार ने ट्रस्ट को जमीन, बाग-बगीचे देकर आय का प्रबन्ध किया है। यह तीर्थ पितृगणों के श्राद्ध, नारायण बलि आदि कर्मो के लिए भी प्रसिद्ध है। चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक माह में यहाँ श्राद्ध करने का विशेष महत्त्व बताया गया है। इन तीन महीनों में यहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ लगती है। इसके अलावा यहाँ तीन नदियों हिरण, कपिला और सरस्वती का महासंगम होता है। इस त्रिवेणी स्नान का विशेष महत्त्व है।