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नवाबकाल
1775 में अवध के चौथे नवाब असिफुद्दोला या अशफ - उद - दुलाह ने अवध की राजधानी को फ़ैज़ाबाद से लखनऊ स्थानांतरित किया था। वास्तुकला की दृष्टि से अवध के नवाबों का इस शहर में काफी योगदान है, इसके अलावा उस समय के लखनऊ की मुग़ल चित्रकारी भी आज बहुत से संग्रहालय में सुरक्षित हैं। भवनों के स्तर पर बड़ा इमामबाड़ा, छोटा इमामबाड़ा, तथा रूमी दरवाज़ा मुग़ल वास्तुकला का जीता जागता उदाहरण है। हालाँकि आधुनिक प्रशासन की उपेक्षा से इन महत्त्वपूर्ण विरासतो का खंडहरों में तब्दील होने का खतरा उपस्थित हो गया है।

प्राचीन अवध राज्य का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में 1857 के सिपाही विद्रोह के फलस्वरुप हुआ था। यह शहर भारत के इस पहले व्यवस्थित स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सबसे पहले जीते गये कुछ शहरों में से था। ब्रिटिश शासकों को यह शहर अपने कब्ज़े में लेने के लिये काफी मशक्कत करनी पड़ी। लखनऊ का "शहीद स्मारक" आज भी हमें उन क्रांतिकारियों की याद ताज़ा कराता है।

लखनऊ के आधुनिक वास्तुकारी में लखनऊ विधानसभा और चारबाग़ स्थित लखनऊ रेलवे स्टेशन का नाम लिया जा सकता है। विश्व के सबसे पुराने आधुनिक स्कूलों में से एक ला मार्टीनियर कॉलेज भी इस शहर में मौजूद है जिसकी स्थापना ब्रिटिश शासक क्लाउड मार्टिन की याद में की गयी थी।

अहमद शाह अब्दाली के दिल्ली पर हमले के बाद शायर मीर तकी "मीर" अवध के चौथे नवाब अशफ - उद - दुलाह या असफ़ुद्दौला के दरबार में लखनऊ चले आये थे और अपनी जिन्दगी के बाकी दिन उन्होने यहीं गुजारे थे और 20 सितम्बर 1810 को यहीं उनका निधन हुआ।

सन १९०२ में नार्थ वेस्ट प्रोविन्स का नाम बदल कर यूनाइटिड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे यूपी कहा गया। सन १९२० में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से लखनऊ कर दिया गया। प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद ही बना रहा और् लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक् न्यायपीठ स्थापित की गयी। स्वतन्त्रता के बाद १२ जनवरी सन १९५० में इस क्षेत्र का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रख दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बना। गोविंद वल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्य मन्त्री बने। अक्टूबर १९६३ में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश एवम भारत की प्रथम महिला मुख्य मन्त्री बनी।

लखनऊ के सांसद श्री अटल बिहारी वाजपेयी दो बार, मई 16, 1996 से June 1, 1996 तक और फिर मार्च 19, 1998 से मई 22, 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं।

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Independence Day 2022: देश आजादी का 75वां वर्ष मना रहा हैं. भारत को अंग्रेजी हुकूमत से मुक्त कराने के लिए सबसे पहले अंग्रेजों से बगावत करने वाले देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी शहीद मंगल पांडेय को जरूर याद किया जाएगा. देश मंगल पांडेय की कुर्बानी को हमेशा याद रखेगा. ऐसे में स्वतंत्रता दिवस पर पेश है प्रथम शहीद मंगल पांडेय के गांव नगवां से एक रिपोर्ट

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जलियाँवाला बाग हत्याकांड

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जलियाँवाला बाग हत्याकांड
जलियाँवाला बाग स्मारक
जलियाँवाला बाग की और जाने वाला एक संकीर्ण मार्ग
जलियाँवाला बाग हत्याकांड is located in पंजाबजलियाँवाला बाग हत्याकांड
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भारत में अमृतसर की स्थिति
स्थान अमृतसर, भारत
निर्देशांक 31.64286°N 74.85808°Eनिर्देशांक: 31.64286°N 74.85808°E
तिथि 13 अप्रैल 1919; 104 वर्ष पहले
17:37 (IST)
लक्ष्य बाग में एकत्र अहिंसक प्रदर्शनकारी, यात्री
हमले का प्रकार हत्याकांड
हथियार गन
मृत्यु 379–1500+[1]
घायल ~ १,१००
अपराधी ब्रिटिश भारतीय दल
भागीदार संख्या ५०

जालियाँवाला बाग स्मारक
जालियाँवाला बाग हत्याकांड भारत के पंजाब प्रान्त के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियाँवाला बाग में १३ अप्रैल १९१९ (बैसाखी के दिन) हुआ था। रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दीं जिसमें 400 से अधिक व्यक्ति मरे[2] और २००० से अधिक घायल हुए।[3][4] अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, जबकि जलियांवाला बाग में कुल 388 शहीदों की सूची है। ब्रिटिश राज के अभिलेख इस घटना में 200 लोगों के घायल होने और 379 लोगों के शहीद होने की बात स्वीकार करते है जिनमें से 337 पुरुष, 41 नाबालिग लड़के और एक 6-सप्ताह का बच्चा था। अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार 1500 से अधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए।

यदि किसी एक घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सबसे अधिक प्रभाव डाला था तो वह घटना यह जघन्य हत्याकाण्ड ही था। माना जाता है कि यह घटना ही भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी।[5][6]

१९९७ में महारानी एलिज़ाबेथ ने इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धांजलि दी थी। २०१३ में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि "ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।"

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