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हस्तिनापुर में राजनीतिक संकट पैदा हो गया तो भीष्म वेदव्यास को लेने के लिये उनके आश्रम गये।
भगवान वेदव्यास ने कहा- "आपके रथ पर चलना उचित नहीं है। आप चलें, हम आ रहे हैं।"
विश्वामित्र, वशिष्ठ जैसे ऋषि जिनका रघुवंशियों में इतना आदर था, अपनी कुटिया में रहते थे। चाणक्य, विदुर जैसे प्रभावशाली, विद्वान मंत्री अपने आश्रमों में रहते थे। हमारे गोस्वामी जी अकबर के प्रस्ताव को ठुकरा दिये कि हमारे राजा तो राम हैं। द्रोपदी विदुषी नारी हस्तिनापुर की सभा मे धृतराष्ट्र से कहती है- "लोभ और धर्म का बैर है, राजन!" 'धर्म' राजप्रसादों, धन-वैभव से सैदव दूर रहा है। राजकुमारों को भी धर्मज्ञ बनने के लिये राजप्रसादों को त्यागना पड़ा।
सनातन धर्म, इब्राहिमिक मजहब नहीं है, जहां पोप, खलीफा, पादरी जैसे लोग सत्ता प्राप्ति के संघर्ष में सम्मिलित होते हैं। आश्रम, गुरुकुल से निकले प्रभावशाली व्यक्तित्व सत्ता संभालते है। धर्म की शिक्षाएं उन्हें अनुशासित रखती हैं, उनके कर्तव्यों के प्रति दृढ़ बनाती हैं।

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यदि मुगलों के शासन में औरंगजेब न आता तो मुगल का अंत इतनी तेजी से न होता।
हजारों मंदिरों को तोड़कर उसने थक चुके समाज को उसका पौरुष याद दिला दिया।
मुगलों का विनाश ऐसे हुआ जैसे रेत का पहाड़ , तूफान में उड़ जाता है।
जब मुगल सल्तनत के अंत के कारणों को खोजा जाता है।
इतिहासकार औरंगजेब की भूमिका को प्राथमिक मानते है।
औरंगजेब कि कट्टरपंथी नीति के विरुद्ध संपूर्ण भारत में विद्रोह हुआ। नेतृत्व अवश्य क्षत्रियों और मराठों के हाथ में था लेकिन इस विद्रोह में हर वर्ग सम्मलित हुआ।
उत्तर , दक्षिण , पूरब पश्चिम हर तरफ युद्ध हो रहे थे।
युद्घ में भागते दौड़ते औरंगजेब को दिल्ली की मिट्टी भी नसीब नहीं हुई।
औरंगजेब के बाद जो भी मुगल सत्ता में आये उनको धधकते भारत का सामना करना पड़ा। इनके शासन कि सीमाएं पल्लम तक सीमित हो गई।
कट्टरता के विरुद्ध भारत सैदव लड़ा है। बड़े बड़े आक्रमणकारियों और शासकों को ध्वस्त किया है।
यहां बनी कब्रे और उनके वंशजो की दुर्दशा इसकी गवाह है।
1947 में गाँधी जी ने भारतीय जनमानस के साथ विश्वासघात किया। यह घोषणा करके कि भारत का विभाजन हमारी लाश पर होगा। बाद में रात के अंधेरे में कांग्रेस ने विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।
संघर्ष से थक चुका समाज आवक , स्तब्ध रह गया। जो भारत हजार साल तक कट्टरता , अत्याचार के सामने घुटने नहीं टेका, वह विश्वासघात से विभाजित हो गया।
यह शिक्षा है ! जब कट्टरता से लड़े तो अपने जीवन मूल्यों के साथ छद्मम छवियों से सावधान रहे । जो अपनी कायरता को अहिंसा , उदारता , प्रगतिशीलता का आडंबर ओढ़ते है।।

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यूनिवर्सिटीज में प्रवेश के लिए नस्ल और जाति के उपयोग पर बैन, अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने छह दशक पुराने कानून को किया खत्म
#usuniversities #ussupremecourt

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Supriya Sule
सुप्रिया सुले को जन्मदिन की शुभकामनाएं

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एक बढ़ई किसी गांव में काम करने गया, लेकिन वह अपना हथौड़ा साथ ले जाना भूल गया। उसने गांव के लोहार के पास जाकर कहा, 'मेरे लिए एक अच्छा सा हथौड़ा बना दो।
मेरा हथौड़ा घर पर ही छूट गया है।' लोहार ने कहा, 'बना दूंगा पर तुम्हें दो दिन इंतजार करना पड़ेगा।
हथौड़े के लिए मुझे अच्छा लोहा चाहिए। वह कल मिलेगा।'
दो दिनों में लोहार ने बढ़ई को हथौड़ा बना कर दे दिया। हथौड़ा सचमुच अच्छा था। बढ़ई को उससे काम करने में काफी सहूलियत महसूस हुई। बढ़ई की सिफारिश पर एक दिन एक ठेकेदार लोहार के पास पहुंचा।
उसने हथौड़ों का बड़ा ऑर्डर देते हुए यह भी कहा कि 'पहले बनाए हथौड़ों से अच्छा बनाना।' लोहार बोला, 'उनसे अच्छा नहीं बन सकता। जब मैं कोई चीज बनाता हूं तो उसमें अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखता, चाहे कोई भी बनवाए।'
धीरे-धीरे लोहार की शोहरत चारों तरफ फैल गई। एक दिन शहर से एक बड़ा व्यापारी आया और लोहार से बोला, 'मैं तुम्हें डेढ़ गुना दाम दूंगा, शर्त यह होगी कि भविष्य में तुम सारे हथौड़े केवल मेरे लिए ही बनाओगे। हथौड़ा बनाकर दूसरों को नहीं बेचोगे।'
लोहार ने इनकार कर दिया और कहा, 'मुझे अपने इसी दाम में पूर्ण संतुष्टि है। अपनी मेहनत का मूल्य मैं खुद निर्धारित करना चाहता हूं। आपने फायदे के लिए मैं किसी दूसरे के शोषण का माध्यम नहीं बन सकता।
आप मुझे जितने अधिक पैसे देंगे, उसका दोगुना गरीब खरीदारों से वसूलेंगे। मेरे लालच का बोझ गरीबों पर पड़ेगा, जबकि मैं चाहता हूं कि उन्हें मेरे कौशल का लाभ मिले। मैं आपका प्रस्ताव स्वीकार नहीं कर सकता।'
सेठ समझ गया कि सच्चाई और ईमानदारी महान शक्तियां हैं। जिस व्यक्ति में ये दोनों शक्तियां मौजूद हैं, उसे किसी प्रकार का प्रलोभन अपने सिद्धांतों से नहीं डिगा सकता.....!!

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