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Namo Clothings is a Uniform Manufacturer, Supplier & Exporter.
We have a uniform manufacturing factory in Ludhiana, Punjab, India. We do all types of uniforms for school, college, corporate, office & sports. We use quality uniform fabrics with prints and embroidery. uniforms are made as per customer-required specifications. quality uniform manufacturers in India.
Add.-Plot No.4784, Street No. 1, Sunder Nagar, Near HDFC Bank, Ludhiana - 141007, Punjab, India
Phone:+91-9653287701 Email:- natureank@gmail.com
Mr. Ankit Jain (Proprietor)
Uniforms, School Uniform, College Uniform, Office Uniform, Corporate Uniform, Sports Uniform, Event Uniform, Hospital Uniform
Promoted By:- Bizzrise Technologies Inc
Website:- www.bizzriseinfotech.com
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एक बार फिर PUBG का क्रेज उफान पर

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दिल्ली वाले बडे खुश नसीब हैं
बिजली पानी एक साथ उपलब्ध हो रहा है

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🚩🚩🚩 क्षत्रिय सिरदारों आज मैं आपको उस किले की जानकारी प्राप्त कराना चाहता हूं जिस ऐतिहासिक धरोहर की देखरेख नही होने व लोगों में लालच का इनका अस्तित्व खतरे में डाल दिया। प्राचीन महल, किले, गढ़ छतरियां एवं मंदिर रख-रखाव के अभाव में जर्जर होती जा रही है। अधिकांश इमारतें खण्डहर बन चुकी है। पुरातत्व विभाग उनके वंशज द्वारा भी ऐतिहासिक धरोहर पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।उस धरोहर का नाम झिलाई का किला है जो राजस्थान राज्य के टोंक जिले की तहसील निवाई से आठ किलोमीटर की दूरी पर झिलाई गाँव के पास एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है जो जीर्ण शीर्ण अवस्था मे है ।
👏 क्षत्रिय सिरदारों कच्छावावंश की रियासत आमेर की छोटी रियासत झिलाय को छोटी आमेर के नाम से जाना जाता था। आमेर के यशस्वी शासक राजा मानसिंह जी के पौत्र संग्राम सिंह जी की वंश परंपरा में से थे । संग्राम सिंह जी को मुगल दरबार मे 700 जाट और 500 सवार का मनसबदार मिला हुआ था । राजावतो का क्रम इनके ज्येष्ठ पुत्र गज सिंह जी से चला । झुझार सिंह जी ने संवत 1552 में झिलाय पर शासन किया था बाद में उनके पुत्र संग्राम सिंह जी व इनके बाद में गज सिंह जी ने शासन किया ।झिलाय के प्रथम नरेश महाराजा गजसिंह जी हुए । पूर्व में कच्छावा वंश के भाई साखा नरूका राजपूत से शासन से लिया गया था। संवत 1552 में उन्होंने निवाई में किला कुंड महल का निर्माण करवाया। इनके वंशज महाराजा दरबार गजसिंह जी का झिलाय पर शासन रहा और इनके छोटे भाई का शासन बौंली, चौथका बरवाड़ा, शिवाड़ एवं खण्डार पर रहा। इन चार तहसीलों में इनका परिवार है, और इनके करीब 150 गांव हैं । संवत1693 में दरबार जसवंत सिंहजी , कंवर किरत सिंह जी ने झिलाय गढ़ का निर्माण करवाया था । कंवर कीरत सिंह जी ने अंग्रेज शासन काल में किले का निर्माण दुश्मनों के आक्रमण से बचाव के लिए करवाया गया। दरबार जसवंत सिंह ने किले का निर्माण उनके सैनिकों के लिए तथा गढ़ का निर्माण खुद के निवास के लिए करवाया। जसवंत सिंह जी ने गढ़ का निर्माण कराया और संवत 1731 में गढ़ संपूर्ण हुआ।झिलाय या झिलाई जयपुर स्टेट का प्रथम स्वतंत्र ठिकाना है। जब जयपुर स्टेट में संतान उत्पन्न नहीं होती थी या वंश आगे नहीं बढ़ता था । तब ठिकाना झिलाय से ही वंशज गोद ले कर उसका राज तिलक करा जाता था क्योंकि राजपुताना में सदियो से यह परंपरा है कि बड़े भाई के अगर पुत्र नहीं होता तो उनसे छोटे भाई के बड़े पुत्र को गोद लिया जाता था और जयपुर घराने का बड़ा ठिकाना झिलाय ही था और जब झिलाय में वंश नहीं बढ़ता था तब जयपुर स्टेट से वंशज को गोद लिया जाता था जो बड़ा भाई राजगद्दी पर विराजमान होता था । उनके आगे संबोधन में महाराज और महाराजा लगता है बाद में ठिकाना झिलाय (झलाय) जागीरो के भाइयो में बटवारे हुए जिसमे बड़े भाई ने ठिकाना-झिलाय व दूसरे भाइयो ने ठिकाना-ईसरदा,ठिकाना-बालेर, ठिकाना-पिलुखेड़ा, शिवाड़ राजस्थान में व ठिकाना-मुवालिया नरसिंहगढ़ स्टेट मालवा में है । नरसिंहगढ़ स्टेट के कुंवर चैनसिंह जी का विवाह ठिकाना मुवालिया में हुआ था जो जयपुर स्टेट के ही राजावत परिवार में से है ,क्योंकि सवाई जयसिंह जी को तीन बार मालवा का सूबेदार बनाया गया था ।इसलिए अगली पीढ़ी के मालवा के सभी राजाओं से अच्छे सम्बन्ध थे इसीलिए आगे की पीढ़ी ने सन 1820 के लगभग में मालवा में जागीर ले ली। कुंवर चैन सिंह जी सन 1827 में अग्रेजो से युद्ध करते हुए सिहोर छावनी में शहिद हो गए थे। कुंवर चैनसिंह जी को भारत का सर्वप्रथम युवा राजपूत शहीद भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारत की पहली स्वतंत्रता सग्राम की लड़ाई सन 1857 से भी पहले सन 24 जुलाई सन 1827 में लड़ी थी और शाहिद हो गये थे।कछवाहा वंश राजावत का सबसे बड़ा ठिकाना झिलाई एक स्वतंत्र राज्य की तरह था ।झिलाय के खुद के स्टाम्प, मोहर सिक्के चलते थे। कहा जाता है कि झिलाई महाराजा साहब को ट्रेन की आवाज से बहुत दिक्कत थी, इसीलिए उन्होंने झिलाई से ट्रेन की पटरी को नहीं निकलने दिया था। उन्होंने उस पर रोक लगा दी थी ,बाद में लोगों के विशेष अनुरोध पर उन्होंने दूर से निकलने की अनुमति प्रदान की । इसके पश्चात दूर से ट्रेन निकाली गई। झिलाई के महाराजा साहब के संतान नही होने पर उन्होंने गोद लेने के लिए अपने बड़वाह जी/राव को बुलवाकर झिलाई से मालवा नरसिंहगढ़ राज्य गये हुए अपने परिवार के पास ठिकाना मुवालिया पहुचाया था । वे वहा जा कर बड़े भाई के बड़े पुत्र को यहाँ झिलाई ले कर आवे ,परंतु ठिकाना मुवालिया में उस समय गादी पर एक भाई ही थे । उनके ही संतान थी, दूसरे भाई को नही, इसलिए बड़वाहजी को खाली हाथ लौटना पड़ा । महाराजा गोवर्द्धन सिंह जी झिलाई के स्वर्गलोक गमन के पश्चात जयपुर महाराज ब्रिगेडियर भवानी सिंह जी ने अपने छोटे भाई को ठिकाना झिलाई पर गोद नशीन करवाया जो अभी वर्तमान झिलाई की गादी पर विराजमान है व जयपुर विराजते हैं । ठिकाना झिलाई के भाई ठिकानेदार व जागीरदार महाराजा झुंझार सिंह जी राजावत के पुत्र महाराजा संग्राम सिंह जी थे व संग्राम सिंह जी के पांच पुत्र थे ।

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🚩🚩🚩 क्षत्रिय सिरदारों आज मैं आपको उस किले की जानकारी प्राप्त कराना चाहता हूं जिस ऐतिहासिक धरोहर की देखरेख नही होने व लोगों में लालच का इनका अस्तित्व खतरे में डाल दिया। प्राचीन महल, किले, गढ़ छतरियां एवं मंदिर रख-रखाव के अभाव में जर्जर होती जा रही है। अधिकांश इमारतें खण्डहर बन चुकी है। पुरातत्व विभाग उनके वंशज द्वारा भी ऐतिहासिक धरोहर पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।उस धरोहर का नाम झिलाई का किला है जो राजस्थान राज्य के टोंक जिले की तहसील निवाई से आठ किलोमीटर की दूरी पर झिलाई गाँव के पास एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है जो जीर्ण शीर्ण अवस्था मे है ।
👏 क्षत्रिय सिरदारों कच्छावावंश की रियासत आमेर की छोटी रियासत झिलाय को छोटी आमेर के नाम से जाना जाता था। आमेर के यशस्वी शासक राजा मानसिंह जी के पौत्र संग्राम सिंह जी की वंश परंपरा में से थे । संग्राम सिंह जी को मुगल दरबार मे 700 जाट और 500 सवार का मनसबदार मिला हुआ था । राजावतो का क्रम इनके ज्येष्ठ पुत्र गज सिंह जी से चला । झुझार सिंह जी ने संवत 1552 में झिलाय पर शासन किया था बाद में उनके पुत्र संग्राम सिंह जी व इनके बाद में गज सिंह जी ने शासन किया ।झिलाय के प्रथम नरेश महाराजा गजसिंह जी हुए । पूर्व में कच्छावा वंश के भाई साखा नरूका राजपूत से शासन से लिया गया था। संवत 1552 में उन्होंने निवाई में किला कुंड महल का निर्माण करवाया। इनके वंशज महाराजा दरबार गजसिंह जी का झिलाय पर शासन रहा और इनके छोटे भाई का शासन बौंली, चौथका बरवाड़ा, शिवाड़ एवं खण्डार पर रहा। इन चार तहसीलों में इनका परिवार है, और इनके करीब 150 गांव हैं । संवत1693 में दरबार जसवंत सिंहजी , कंवर किरत सिंह जी ने झिलाय गढ़ का निर्माण करवाया था । कंवर कीरत सिंह जी ने अंग्रेज शासन काल में किले का निर्माण दुश्मनों के आक्रमण से बचाव के लिए करवाया गया। दरबार जसवंत सिंह ने किले का निर्माण उनके सैनिकों के लिए तथा गढ़ का निर्माण खुद के निवास के लिए करवाया। जसवंत सिंह जी ने गढ़ का निर्माण कराया और संवत 1731 में गढ़ संपूर्ण हुआ।झिलाय या झिलाई जयपुर स्टेट का प्रथम स्वतंत्र ठिकाना है। जब जयपुर स्टेट में संतान उत्पन्न नहीं होती थी या वंश आगे नहीं बढ़ता था । तब ठिकाना झिलाय से ही वंशज गोद ले कर उसका राज तिलक करा जाता था क्योंकि राजपुताना में सदियो से यह परंपरा है कि बड़े भाई के अगर पुत्र नहीं होता तो उनसे छोटे भाई के बड़े पुत्र को गोद लिया जाता था और जयपुर घराने का बड़ा ठिकाना झिलाय ही था और जब झिलाय में वंश नहीं बढ़ता था तब जयपुर स्टेट से वंशज को गोद लिया जाता था जो बड़ा भाई राजगद्दी पर विराजमान होता था । उनके आगे संबोधन में महाराज और महाराजा लगता है बाद में ठिकाना झिलाय (झलाय) जागीरो के भाइयो में बटवारे हुए जिसमे बड़े भाई ने ठिकाना-झिलाय व दूसरे भाइयो ने ठिकाना-ईसरदा,ठिकाना-बालेर, ठिकाना-पिलुखेड़ा, शिवाड़ राजस्थान में व ठिकाना-मुवालिया नरसिंहगढ़ स्टेट मालवा में है । नरसिंहगढ़ स्टेट के कुंवर चैनसिंह जी का विवाह ठिकाना मुवालिया में हुआ था जो जयपुर स्टेट के ही राजावत परिवार में से है ,क्योंकि सवाई जयसिंह जी को तीन बार मालवा का सूबेदार बनाया गया था ।इसलिए अगली पीढ़ी के मालवा के सभी राजाओं से अच्छे सम्बन्ध थे इसीलिए आगे की पीढ़ी ने सन 1820 के लगभग में मालवा में जागीर ले ली। कुंवर चैन सिंह जी सन 1827 में अग्रेजो से युद्ध करते हुए सिहोर छावनी में शहिद हो गए थे। कुंवर चैनसिंह जी को भारत का सर्वप्रथम युवा राजपूत शहीद भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारत की पहली स्वतंत्रता सग्राम की लड़ाई सन 1857 से भी पहले सन 24 जुलाई सन 1827 में लड़ी थी और शाहिद हो गये थे।कछवाहा वंश राजावत का सबसे बड़ा ठिकाना झिलाई एक स्वतंत्र राज्य की तरह था ।झिलाय के खुद के स्टाम्प, मोहर सिक्के चलते थे। कहा जाता है कि झिलाई महाराजा साहब को ट्रेन की आवाज से बहुत दिक्कत थी, इसीलिए उन्होंने झिलाई से ट्रेन की पटरी को नहीं निकलने दिया था। उन्होंने उस पर रोक लगा दी थी ,बाद में लोगों के विशेष अनुरोध पर उन्होंने दूर से निकलने की अनुमति प्रदान की । इसके पश्चात दूर से ट्रेन निकाली गई। झिलाई के महाराजा साहब के संतान नही होने पर उन्होंने गोद लेने के लिए अपने बड़वाह जी/राव को बुलवाकर झिलाई से मालवा नरसिंहगढ़ राज्य गये हुए अपने परिवार के पास ठिकाना मुवालिया पहुचाया था । वे वहा जा कर बड़े भाई के बड़े पुत्र को यहाँ झिलाई ले कर आवे ,परंतु ठिकाना मुवालिया में उस समय गादी पर एक भाई ही थे । उनके ही संतान थी, दूसरे भाई को नही, इसलिए बड़वाहजी को खाली हाथ लौटना पड़ा । महाराजा गोवर्द्धन सिंह जी झिलाई के स्वर्गलोक गमन के पश्चात जयपुर महाराज ब्रिगेडियर भवानी सिंह जी ने अपने छोटे भाई को ठिकाना झिलाई पर गोद नशीन करवाया जो अभी वर्तमान झिलाई की गादी पर विराजमान है व जयपुर विराजते हैं । ठिकाना झिलाई के भाई ठिकानेदार व जागीरदार महाराजा झुंझार सिंह जी राजावत के पुत्र महाराजा संग्राम सिंह जी थे व संग्राम सिंह जी के पांच पुत्र थे ।

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🚩🚩🚩 क्षत्रिय सिरदारों आज मैं आपको उस किले की जानकारी प्राप्त कराना चाहता हूं जिस ऐतिहासिक धरोहर की देखरेख नही होने व लोगों में लालच का इनका अस्तित्व खतरे में डाल दिया। प्राचीन महल, किले, गढ़ छतरियां एवं मंदिर रख-रखाव के अभाव में जर्जर होती जा रही है। अधिकांश इमारतें खण्डहर बन चुकी है। पुरातत्व विभाग उनके वंशज द्वारा भी ऐतिहासिक धरोहर पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।उस धरोहर का नाम झिलाई का किला है जो राजस्थान राज्य के टोंक जिले की तहसील निवाई से आठ किलोमीटर की दूरी पर झिलाई गाँव के पास एक छोटी सी पहाड़ी पर बना हुआ है जो जीर्ण शीर्ण अवस्था मे है ।
👏 क्षत्रिय सिरदारों कच्छावावंश की रियासत आमेर की छोटी रियासत झिलाय को छोटी आमेर के नाम से जाना जाता था। आमेर के यशस्वी शासक राजा मानसिंह जी के पौत्र संग्राम सिंह जी की वंश परंपरा में से थे । संग्राम सिंह जी को मुगल दरबार मे 700 जाट और 500 सवार का मनसबदार मिला हुआ था । राजावतो का क्रम इनके ज्येष्ठ पुत्र गज सिंह जी से चला । झुझार सिंह जी ने संवत 1552 में झिलाय पर शासन किया था बाद में उनके पुत्र संग्राम सिंह जी व इनके बाद में गज सिंह जी ने शासन किया ।झिलाय के प्रथम नरेश महाराजा गजसिंह जी हुए । पूर्व में कच्छावा वंश के भाई साखा नरूका राजपूत से शासन से लिया गया था। संवत 1552 में उन्होंने निवाई में किला कुंड महल का निर्माण करवाया। इनके वंशज महाराजा दरबार गजसिंह जी का झिलाय पर शासन रहा और इनके छोटे भाई का शासन बौंली, चौथका बरवाड़ा, शिवाड़ एवं खण्डार पर रहा। इन चार तहसीलों में इनका परिवार है, और इनके करीब 150 गांव हैं । संवत1693 में दरबार जसवंत सिंहजी , कंवर किरत सिंह जी ने झिलाय गढ़ का निर्माण करवाया था । कंवर कीरत सिंह जी ने अंग्रेज शासन काल में किले का निर्माण दुश्मनों के आक्रमण से बचाव के लिए करवाया गया। दरबार जसवंत सिंह ने किले का निर्माण उनके सैनिकों के लिए तथा गढ़ का निर्माण खुद के निवास के लिए करवाया। जसवंत सिंह जी ने गढ़ का निर्माण कराया और संवत 1731 में गढ़ संपूर्ण हुआ।झिलाय या झिलाई जयपुर स्टेट का प्रथम स्वतंत्र ठिकाना है। जब जयपुर स्टेट में संतान उत्पन्न नहीं होती थी या वंश आगे नहीं बढ़ता था । तब ठिकाना झिलाय से ही वंशज गोद ले कर उसका राज तिलक करा जाता था क्योंकि राजपुताना में सदियो से यह परंपरा है कि बड़े भाई के अगर पुत्र नहीं होता तो उनसे छोटे भाई के बड़े पुत्र को गोद लिया जाता था और जयपुर घराने का बड़ा ठिकाना झिलाय ही था और जब झिलाय में वंश नहीं बढ़ता था तब जयपुर स्टेट से वंशज को गोद लिया जाता था जो बड़ा भाई राजगद्दी पर विराजमान होता था । उनके आगे संबोधन में महाराज और महाराजा लगता है बाद में ठिकाना झिलाय (झलाय) जागीरो के भाइयो में बटवारे हुए जिसमे बड़े भाई ने ठिकाना-झिलाय व दूसरे भाइयो ने ठिकाना-ईसरदा,ठिकाना-बालेर, ठिकाना-पिलुखेड़ा, शिवाड़ राजस्थान में व ठिकाना-मुवालिया नरसिंहगढ़ स्टेट मालवा में है । नरसिंहगढ़ स्टेट के कुंवर चैनसिंह जी का विवाह ठिकाना मुवालिया में हुआ था जो जयपुर स्टेट के ही राजावत परिवार में से है ,क्योंकि सवाई जयसिंह जी को तीन बार मालवा का सूबेदार बनाया गया था ।इसलिए अगली पीढ़ी के मालवा के सभी राजाओं से अच्छे सम्बन्ध थे इसीलिए आगे की पीढ़ी ने सन 1820 के लगभग में मालवा में जागीर ले ली। कुंवर चैन सिंह जी सन 1827 में अग्रेजो से युद्ध करते हुए सिहोर छावनी में शहिद हो गए थे। कुंवर चैनसिंह जी को भारत का सर्वप्रथम युवा राजपूत शहीद भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने भारत की पहली स्वतंत्रता सग्राम की लड़ाई सन 1857 से भी पहले सन 24 जुलाई सन 1827 में लड़ी थी और शाहिद हो गये थे।कछवाहा वंश राजावत का सबसे बड़ा ठिकाना झिलाई एक स्वतंत्र राज्य की तरह था ।झिलाय के खुद के स्टाम्प, मोहर सिक्के चलते थे। कहा जाता है कि झिलाई महाराजा साहब को ट्रेन की आवाज से बहुत दिक्कत थी, इसीलिए उन्होंने झिलाई से ट्रेन की पटरी को नहीं निकलने दिया था। उन्होंने उस पर रोक लगा दी थी ,बाद में लोगों के विशेष अनुरोध पर उन्होंने दूर से निकलने की अनुमति प्रदान की । इसके पश्चात दूर से ट्रेन निकाली गई। झिलाई के महाराजा साहब के संतान नही होने पर उन्होंने गोद लेने के लिए अपने बड़वाह जी/राव को बुलवाकर झिलाई से मालवा नरसिंहगढ़ राज्य गये हुए अपने परिवार के पास ठिकाना मुवालिया पहुचाया था । वे वहा जा कर बड़े भाई के बड़े पुत्र को यहाँ झिलाई ले कर आवे ,परंतु ठिकाना मुवालिया में उस समय गादी पर एक भाई ही थे । उनके ही संतान थी, दूसरे भाई को नही, इसलिए बड़वाहजी को खाली हाथ लौटना पड़ा । महाराजा गोवर्द्धन सिंह जी झिलाई के स्वर्गलोक गमन के पश्चात जयपुर महाराज ब्रिगेडियर भवानी सिंह जी ने अपने छोटे भाई को ठिकाना झिलाई पर गोद नशीन करवाया जो अभी वर्तमान झिलाई की गादी पर विराजमान है व जयपुर विराजते हैं । ठिकाना झिलाई के भाई ठिकानेदार व जागीरदार महाराजा झुंझार सिंह जी राजावत के पुत्र महाराजा संग्राम सिंह जी थे व संग्राम सिंह जी के पांच पुत्र थे ।

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