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नूरपुर दुर्ग (हिमाचल प्रदेश)
'नूरपुर' तंवर राजपूतों की रियासत रही। जहां राजा अनंगपाल तोमर द्वितीय के छोटे भाई के वंशज हैं। 900 वर्षों से यहां तंवर राजपूतों ने राज किया। तब से लेकर अब तक की वंशावली मौजूद है। अंतिम राजा देवेंद्र सिंह जी तंवर हुए, जो आजादी के बाद यहां के शासक बने। नूरपुर की एक राजकुमारी का विवाह सिरमूर में हुआ। सिरमूर भाटी राजपूतों की रियासत है, जहां जयपुर की राजमाता पद्मिनी देवी जी का जन्म हुआ था।

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"#चंदेलों की बेटी थी, गौंडवाने की रानी थी
चंडी थी रण चंडी थी,वह दुर्गावती भवानी थी"
राज्य और धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाली साहस की प्रतिमूर्ति महान #चंदेल_राजपूत वीरांगना #महारानी_दुर्गावती जी के बलिदान दिवस पर उन्हें शत् शत् नमन। 🙏🚩👑❤️
नोट.. इनके पति #कल्चुरी_क्षत्रिय थे

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2 سنوات

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वीरता साहस और शौर्य की प्रतिमूर्ति रानी दुर्गावती ने 1550-1564 तक गोंड साम्राज्य पर शासन किया था। कहा जाता है उन्होंने 51 युद्ध आक्रमणकारियों के विरुद्ध लड़े थे और कभी पराजित नहीं हुई थी।
24 जून 1564 को मुगल आक्रमणकारियों से लड़ते हुए आत्मसमर्पण करने के स्थान पर उन्होंने मृत्यु का वरण करना अधिक श्रेयस्कर समझा।
ऐसी महान वीरांगना को हमारा नमन।

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#बंगागांव (अब पाकिस्तान में) का यह एक किसान का घर जिसमें #भगतसिंह पैदा हुए। 28.09.1907 खाता-पीता घर, पानी के लिए घर मे ही कुआं, उस समय भी पक्का मकान, सुन्दर माहौल, आराम की जिन्दगी जी सकता था। पढ़ने के लिए कालेज भी गया।

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टाइटन पनडुब्बी से टाइटैनिक के मलवे देखने गए पांचों अरबपति हादसे का शिकार हुए और डूब कर मर गए।लोग इसपर अलग-2 अपनी राय दे रहे हैं। सबकी राय अपनी परिस्थितियों के अनुसार और अनुरूप है। पर सच ये है कि साहसिक यात्राओं की जोख़िम का हिम्मत कम लोग उठा पाते हैं.....
हर साल पर्वतारोहीयों के साथ हादसे होते हैं और वो हर फिर से नए पर्वतारोही फिर निकल पड़ते हैं। पुराने हादसों से सीखते हैं, संभलते हैं, हिम्मत करते हैं, जुनून पैदा करते हैं, अपनो का साथ खोने से डरते हैं पर फिर भी अपने अंदर पनप रहे जुनून को चिंगारी देते हैं और फिर दुर्गम यात्राओं पर निकल पड़ते हैं। पहाड़ों की दुर्गम चोटियां ऐसे ही फतह नहीं की गई है। सैकड़ों जाने गई हैं वहां पहुंचने से पहले। चांद का पहला सफर इतना आसान नहीं रहा होगा न ही उसके लिए हिम्मत बांधना इतना आसान रहा होगा।ये सब इतना आसान नहीं होता पर करने वाले करते ही हैं। राय देना आसान है कि वो स्कूल खोल सकते थे, हॉस्पिटल खोल सकते थे या कोई सामाजिक संस्थान खोल सकते थे पर वो उनका जुनून नहीं था।
मरना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है यहां कोई अमर नहीं है सबको एक न एक दिन जाना ही पड़ता है। दुर्गम यात्राओं को करना जोख़िम भरा काम होता है पर हिम्मत करने वालें ने, इस छोर से उस छोर तक सफ़र करने वालों ने, जान जोखिम में डाल दुर्गम यात्राओं करने वालों ने दुनिया वालों को अकूत ज्ञान से नवाजा है।
उन यात्रियों के हिम्मत भरी यात्रा से अनन्त के सफ़र पर निकल जाने के लिए बिग सैल्यूट.....

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