इस साल 11 अगस्त की डेट के बारे में सोचा जाए तो यही बात मन में बार-बार आ रही है. लगता है जैसे हर फिल्ममेकर अपनी फिल्मों को इसी दिन रिलीज करना चाहता है. तभी तो सभी के बीच रेस जैसी लगी हुई है. सनी देओल की 'गदर 2' और रणबीर कपूर की 'एनिमल' फिल्म को इस दिन रिलीज करने का ऐलान पहले ही किया जा चुका है. और अब अक्षय कुमार अपनी फिल्म 'OMG 2' के साथ सीट पकड़ने आ गए हैं.

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पुल जिसे देखकर हैरान हो जाएँगे
नीचे बादल, ऊपर पुल...रेलवे ने बनाया दुनिया का सबसे ऊंचा ब्रिज,
तस्वीर में देखा जा सकता है कि इस ब्रिज की ऊंचाई इतनी है कि बादल उसके नीचे आ गए हैं. चिनाब नदी पर बने इस ब्रिज की ऊंचाई नदी के तल से 359 मीटर है. पुल को जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में कटरा-बनिहाल रेल खंड पर 27949 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है ।
ये एक आर्क ब्रिज है और एफिल टावर से भी 35 मीटर ऊंचा है.
ख़ास बात है कि यह पुल 260 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवा को झेलने में सक्षम होगा. इसके लिए टेस्ट किए जा चुके हैं. इसकी उम्र 120 साल होगी.
इस ब्रिज को स्ट्रक्चरल स्टील से बनाया गया है और यह माइनस 10 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को झेलने में सक्षम होगा.
चिनाब ब्रिज देश में पहला ऐसा पुल है ब्लास्ट लोड के लिए डिजाइन किया गया है. यह आर्क ब्रिज रिएक्टर स्कैल पर 8 तीव्रता के भूकंप का सामना करने में सक्षम होगा और 30 किलोग्राम विस्फोटकों से होने वाले ब्लास्ट का सामना

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,,,,क्या आप भी बचपन मे नाना- नानी, मामा-मामी, दादा -दादी या चाचा-चाची के परिवार के साथ गर्मियों की छूटियो में छत पर पानी छिड़कर खाट पर या छत पर दरी - बिस्तर बिछा कर सोये हो,,,,
तब घर में बिजली केवल पीले से चमकने वाले 0, 40, 60 और 100 वॉट के पीतल की टोपी वाले फिलामेंट बल्ब के लिए होती थी। पंखे अमीरों के घर में ही होते थे
बहुत ही यादगार दिन थे वे कभी न भूलने वाले
तब सभी के छत लगभग एक ऊँचाई के थें।
एक नियम होता था।
पहले बालटी मे पानी भरकर दो तल्ले पर छत पर पानी का छिड़काव।💦
नीचे से बिस्तर छत पर पहुँचाना ।
उसे बिछाना ताकि बिस्तर ठंडा हो जाए।
खाने के बाद, पानी की छोटी सुराही और गिलास भी छत पर ले जाना। कभी कभी रेडियो पर आकाशवाणी पर हवा-महल का प्रोग्राम सुनते थे या पुराने गीतमाला के पुराने गाने।
लेट कर आसमान देखना, तारे गिनना, उनके झुंड के आकार बनाना,छत पर लेटे लेटे ही हमने सप्तऋषि मंडल ,ध्रुव तारा और असंख्य तारों को देखा और समझा
आते-जाते हवाई जहाज को देखना ।
सुबह सुरज के साथ उठना पड़ता था। गरमियों मे सुबह-सुबह कोयल की कूक , चिड़ियों का चहचहाना , मोर की आवाज़ या मुर्गे की आवाज़ भी सुनने को मिलती थी।
फिर बिस्तर समेट कर छत से नीचे लाना। सुराही भी।
पहले किसी की छत पर कोई लेटा हो , खासकर महिला, तो दुसरे छत के लोग स्वंय हट जाते थे। यह एक अनकहा शिष्टाचार था।
रात में अचानक आंधी या बारिश आने पर पड़ोस के घर की पक्की सीढ़ियों से उतर कर नीचे आते थे क्योंकि अपने पास बांस की कुछ छोटी पुरानी ढुलमुल 10' फीट की सीढ़ी थी जिसका कभी भी गिरने डर रहता था और 14' फीट की ऊंची छत पर उतरने चढ़ने के लिए छत की मुंडेर को पकड़ कर लटक कर चढ़ना और उतरना होता था।
रात में पड़ी हल्की ठंड और ओस के कारण कपड़े बिस्तर सील जाते थे।😝
उस समय इतने मच्छर नहीं होते थे जो छत पर सोने में बाधा उत्पन्न करते ।
अब आसपास ऊँचे घर बन गए।
आसपास और हम , दोनो बदल गए हैं।😥😥
जब से हर घर मे AC, फ्रिज, कूलर और हर कमरे में पंखे आ गए है तब से ये सुनहरा दौर गायब हो गया हैं,,,,,क्या आप भी बचपन मे नाना- नानी, मामा-मामी, दादा -दादी या चाचा-चाची के परिवार के साथ गर्मियों की छूटियो में छत पर पानी छिड़कर खाट पर या छत पर दरी - बिस्तर बिछा कर सोये हो,,,,
तब घर में बिजली केवल पीले से चमकने वाले 0, 40, 60 और 100 वॉट के पीतल की टोपी वाले फिलामेंट बल्ब के लिए होती थी। पंखे अमीरों के घर में ही होते थे
बहुत ही यादगार दिन थे वे कभी न भूलने वाले
तब सभी के छत लगभग एक ऊँचाई के थें।
एक नियम होता था।
पहले बालटी मे पानी भरकर दो तल्ले पर छत पर पानी का छिड़काव।💦
नीचे से बिस्तर छत पर पहुँचाना ।
उसे बिछाना ताकि बिस्तर ठंडा हो जाए।
खाने के बाद, पानी की छोटी सुराही और गिलास भी छत पर ले जाना। कभी कभी रेडियो पर आकाशवाणी पर हवा-महल का प्रोग्राम सुनते थे या पुराने गीतमाला के पुराने गाने।
लेट कर आसमान देखना, तारे गिनना, उनके झुंड के आकार बनाना,छत पर लेटे लेटे ही हमने सप्तऋषि मंडल ,ध्रुव तारा और असंख्य तारों को देखा और समझा
आते-जाते हवाई जहाज को देखना ।
सुबह सुरज के साथ उठना पड़ता था। गरमियों मे सुबह-सुबह कोयल की कूक , चिड़ियों का चहचहाना , मोर की आवाज़ या मुर्गे की आवाज़ भी सुनने को मिलती थी।
फिर बिस्तर समेट कर छत से नीचे लाना। सुराही भी।
पहले किसी की छत पर कोई लेटा हो , खासकर महिला, तो दुसरे छत के लोग स्वंय हट जाते थे। यह एक अनकहा शिष्टाचार था।
रात में अचानक आंधी या बारिश आने पर पड़ोस के घर की पक्की सीढ़ियों से उतर कर नीचे आते थे क्योंकि अपने पास बांस की कुछ छोटी पुरानी ढुलमुल 10' फीट की सीढ़ी थी जिसका कभी भी गिरने डर रहता था और 14' फीट की ऊंची छत पर उतरने चढ़ने के लिए छत की मुंडेर को पकड़ कर लटक कर चढ़ना और उतरना होता था।
रात में पड़ी हल्की ठंड और ओस के कारण कपड़े बिस्तर सील जाते थे।😝
उस समय इतने मच्छर नहीं होते थे जो छत पर सोने में बाधा उत्पन्न करते ।
अब आसपास ऊँचे घर बन गए।
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जब से हर घर मे AC, फ्रिज, कूलर और हर कमरे में पंखे आ गए है तब से ये सुनहरा दौर गायब हो गया हैं,💝

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