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कर्णेश्वर मंदिर महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के संगमेश्वर में यह मंदिर जिन कलाकारों ने इस प्राचीन अजूबे का निर्माण किया है, उनकी प्रशंसा करने शब्द कम पड़ जाते हैं।
सदियों से यह मंदिर सोमेश्वर में अलकनंदा, वरुण और शास्त्री नदियों के संगम को सजाता है
माना जाता है कि करवीर राजवंश के राजा कर्ण ने लगभग 1600 साल पहले इस मंदिर का निर्माण किया था!
सनातन धर्म ही सर्वश्रेष्ठ है 🚩
*क्या आपने कभी बंदरों को स्वाभाविक रूप से मरते देखा है?*
🙏 सियावर रामचंद्र की जय🙏
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क्या आपने कभी किसी बंदर को कुत्ते, बिल्ली, चूहे, गाय आदि की तरह मरा हुआ देखा है?
क्या आपने इसे कभी डिस्कवरी चैनल पर देखा है?
यह सच है कि स्वाभाविक रूप से मरने वाले बंदरों की मौत कोई नहीं देख सकता।
उन्हें मृत्यु से कम से कम एक सप्ताह पहले ही अपनी मृत्यु की तिथि का आभास हो जाता है।
तब से बंदर एक सुरक्षित स्थान चुनता है और बिना किसी भोजन या पानी के चुपचाप बैठ जाता है।
वह भी एक सप्ताह बंदर तपस्या करेगा।
जब आप इस जानकारी को गिनते हैं तो किसी भी अन्य चमत्कार से अधिक तथ्य यह है कि यह एक सप्ताह के लिए एक ही स्थान पर बैठती है।
यह बिल्कुल सच है कि जब एक बंदर मरने वाला होता है, तो वह चुपचाप और अन्य जानवरों को बिना किसी परेशानी के घने जंगल में दीमक नासूर के पास लेट जाता है और दीमक को उस पर भोजन करने देता है। दीमक उसके शरीर को खा जाती है और नासूर एक निश्चित समय के भीतर उस पर बैठ जाता है। यह सुनहरा सच है।
यहां तक कि अगर वे (बंदर) गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और सड़क पर मर जाते हैं, तो उनके रिश्तेदार उन्हें घसीटते हुए दीमक के नासूर के पास तब तक रखेंगे जब तक कि शरीर गायब न हो जाए।
अंजनेया ने जो वरदान मांगा और राम द्वारा दिया गया था, उनमें से एक यह था कि उन्हें मरने की स्थिति का पता होना चाहिए और उन्हें बिना किसी को परेशान किए दीमकों को खिलाना चाहिए और उनके शरीर के अंग किसी को दिखाई नहीं देने चाहिए।
दिलचस्प तथ्य...
सत्य सनातन धर्म जय श्री राम
जनेऊ क्या है :- भए कुमार जबहिं सब भ्राता।
दीन्ह जनेऊ गुरु पितु माता॥
जनेऊ क्या है :- आपने देखा होगा कि बहुत से लोग बाएं कांधे से दाएं बाजू की ओर एक कच्चा धागा लपेटे रहते हैं। इस धागे को जनेऊ कहते हैं। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है। जनेऊ को संस्कृत भाषा में ‘यज्ञोपवीत’ कहा जाता है। यह सूत से बना पवित्र धागा होता है, जिसे व्यक्ति बाएं कंधे के ऊपर तथा दाईं भुजा के नीचे पहनता है। अर्थात इसे गले में इस तरह डाला जाता है कि वह बाएं कंधे के ऊपर रहे। तीन सूत्र क्यों : जनेऊ में मुख्यरूप से तीन धागे होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं और यह सत्व, रज और तम का प्रतीक है। यह गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक है।यह तीन आश्रमों का प्रतीक है। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है। नौ तार : यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्या नौ होती है। एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र के दो द्वारा मिलाकर कुल नौ होते हैं। पांच गांठ : यज्ञोपवीत में पांच गांठ लगाई जाती है जो ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक है। यह पांच यज्ञों, पांच ज्ञानेद्रियों और पंच कर्मों का भी प्रतीक भी है। वैदिक धर्म में प्रत्येक आर्य का कर्तव्य है जनेऊ पहनना और उसके नियमों का पालन करना। प्रत्येक आर्य को जनेऊ पहन सकता है बशर्ते कि वह उसके नियमों का पालन करे। जनेऊ की लंबाई : यज्ञोपवीत की लंबाई 96 अंगुल होती है। इसका अभिप्राय यह है कि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर कुल 32 विद्याएं होती है। 64 कलाओं में जैसे- वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण, कृषि ज्ञान आदि।
जनेऊ के नियम :
1.यज्ञोपवीत को मल-मूत्र विसर्जन के पूर्व दाहिने कान पर चढ़ा लेना चाहिए और हाथ स्वच्छ करके ही उतारना चाहिए। इसका स्थूल भाव यह है कि यज्ञोपवीत कमर से ऊंचा हो जाए और अपवित्र न हो। अपने व्रतशीलता के संकल्प का ध्यान इसी बहाने बार-बार किया जाए।
2.यज्ञोपवीत का कोई तार टूट जाए या 6 माह से अधिक समय हो जाए, तो बदल देना चाहिए। खंडित यज्ञोपवीत शरीर पर नहीं रखते। धागे कच्चे और गंदे होने लगें, तो पहले ही बदल देना उचित है।
4.यज्ञोपवीत शरीर से बाहर नहीं निकाला जाता। साफ करने के लिए उसे कण्ठ में पहने रहकर ही घुमाकर धो लेते हैं। भूल से उतर जाए, तो प्रायश्चित करें ।
5.मर्यादा बनाये रखने के लिए उसमें चाबी के गुच्छे आदि न बांधें। इसके लिए भिन्न व्यवस्था रखें। बालक जब इन नियमों के पालन करने योग्य हो जाएं, तभी उनका यज्ञोपवीत करना चाहिए। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दाएं कान की नस अंडकोष और गुप्तेन्द्रियों से जुड़ी होती है। मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ लपेटने से शुक्राणुओं की रक्षा होती है। वैज्ञानिकों अनुसार बार-बार बुरे स्वप्न आने की स्थिति में जनेऊ धारण करने से इस समस्या से मुक्ति मिल जाती है। कान में जनेऊ लपेटने से मनुष्य में सूर्य नाड़ी का जाग्रण होता है।कान पर जनेऊ लपेटने से पेट संबंधी रोग एवं रक्तचाप की समस्या से भी बचाव होता है। माना जाता है कि शरीर के पृष्ठभाग में पीठ पर जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह काम करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित है। जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह नियंत्रित रहता है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है। जनेऊ से पवित्रता का अहसास होता है। यह मन को बुरे कार्यों से बचाती है।
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