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मर्यादा पुरुषोत्तम
श्री राम अत्यन्त गुणवान् एवं श्रेष्ठ महापुरुष थे।

धर्मज्ञः सत्यसन्धश्च प्रजानां च हिते रतः । यशस्वी ज्ञानसम्पन्नः शुचिर्वश्यः समाधिमान् ।। विष्णुना सदृशो वीर्ये सोमवत् प्रियदर्शनः । कालाग्निसदृशः क्रोधे क्षम्या पृथिवीसमः । धनदेन समस्त्यागे सत्ये धर्म इवापरः ।। सत्यवादी महेष्वासो वृद्धसेवी जितेन्द्रियः । स्मितपूर्वाभिभाषी च धर्म सर्वात्मनाश्रितः ।। आहूतस्याभिषेकाय विसृष्टस्य वनाय च । मयालक्षितस्तस्य स्वल्पोऽप्याकारविभ्रमः ।।

महर्षि वाल्मीकि ने कहा है कि राम धर्म के ज्ञाता, सत्य के पालक, सर्वहितकारी, कीर्तियुक्त, ज्ञानी, पवित्र, जितेन्द्रिय और समाधि लगाने वाले हैं।

वे पराक्रम में विष्णु, प्रिय दर्शन में सोम, क्रोध में काल, क्षमा में पृथ्वी, दान में कुबेर के समान और सत्यभाषण में मानो दूसरे धर्म ही हैं।

श्रीराम सदा सत्य बोलने वाले, महाधनुर्धर, वृद्धों की सेवा करने वाले, जितेन्द्रिय, हँसकर बोलने वाले और सब प्रकार से धर्म का सेवन करने वाले हैं।

महर्षि वसिष्ठ ने कहा है कि राज्याभिषेक के लिए बुलाये जाने पर और इसके प्रतिकूल वनगमन का आदेश दिये जाने पर दोनों स्थितियों में राम के मुखमण्डल पर कोई विकार नहीं दिखायी दिया। "

वस्तुतः राम एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श पति, आदर्श मित्र, आदर्श सम्राट् एवं आदर्श मनुष्य थे। यहाँ तक कि शत्रुओं ने भी उन्हें आदर्श कहा है।

उन्होंने प्रतिक्षण मर्यादा अर्थात् धर्म एवं नीति के अनुसार आचरण किया। इस कारण उन्हें मर्यादापुरुषोत्तम कहा जाता है।

उनकी असाधारण उपलब्धियों के कारण अधिकांश भारतीय उन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

श्री राम की ये उपलब्धियाँ किसी चमत्कार का नहीं अपितु निरन्तर साधना, संयम, बुद्धिमानी, कौशल एवं तपस्या का फल थीं ।

अतः हम भी उनका अनुसरण एवं सुनीति का आचरण करते हुए श्रेष्ठ मनुष्य “आर्य” बनें |

भारत को विश्वगुरु बनाने वाले सम्पूर्ण पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी के इस महान आर्यश्रेष्ठ स्वरूप को हर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई तक पहुंचाएं ।

आओ हम अपने पूर्वजों के गौरवशाली यश को आगे बढ़ाएं और हम और अपने बच्चों को भी वैसे बनाने का प्रयास करें, उनके पदचिन्हों पर चलें और चलने के लिए प्रेरित करें। पढ़ने के लिए धन्यवाद् आपका..✍️

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ये चित्र देखकर आपको लगेगा ....
कि शायद ये किसी संस्था... पुस्तकालय....शिक्षण संस्थान का होगा।
परंतु नहीं....
ये चित्र एक #रेस्टोरेंट का है जो उ.प्र.के मुजफ्फरनगर जिले में रोडवेज बस स्टैंड के पास है।
खास बात ये कि भोजन #पीतल_और_तांबे के चमचमाते बर्तनों में परोसा जाता है।
भोजन की #गुणवत्ता उम्दा और आम आदमी की पहूंच वाली कीमत।
रात 10.30 बजे तक भी भीड़ थी।पर भीड़ देखकर हम बिना भोजन करें ही मालिक का #परिचय और उन्हें इन चित्रों के लिए #धन्यवाद देकर लौट आये।

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मेरे अजनबी हमसफ़र💑....जरूर से जरूर पढ़ना:-
वो ट्रेन 🚂 के रिजर्वेशन के डब्बे में बाथरूम के तरफ वाली सीट 💺 पर बैठी थी... उसके चेहरे 🙎‍♀️ से पता चल रहा था कि थोड़ी सी घबराहट है उसके दिल में कि कहीं टीटी 👨‍✈️ ने आकर पकड़ लिया तो..कुछ देर तक तो पीछे पलट-पलट कर टीटी के आने का इंतज़ार करती रही। शायद सोच रही थी कि थोड़े बहुत पैसे देकर कुछ निपटारा कर लेगी। देखकर यही लग रहा था कि जनरल डब्बे में चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें आकर बैठ गयी, शायद ज्यादा लम्बा सफ़र भी नहीं करना होगा। सामान के नाम पर उसकी गोद में रखा एक छोटा सा बेग 🛍️ दिख रहा था। मैं 👨 बहुत देर तक कोशिश करता रहा पीछे से उसे देखने की कि शायद चेहरा सही से दिख पाए लेकिन हर बार असफल ही रहा...फिर थोड़ी देर बाद वो भी खिड़की पर हाथ टिकाकर सो गयी। और मैं भी वापस से अपनी किताब 📖 पढ़ने में लग गया...लगभग 1 घंटे के बाद टीटी 👨‍✈️ आया और उसे हिलाकर उठाया।
“कहाँ जाना है बेटा” “अंकल दिल्ली तक जाना है”“टिकट है ?” “नहीं अंकल …. जनरल का है ….लेकिन वहां चढ़ नहीं पाई इसलिए इसमें बैठ गयी”“अच्छा 300💵 रुपये का पेनाल्टी बनेगा” “ओह …अंकल मेरे पास तो लेकिन 100 रुपये ही हैं”“ये तो गलत बात है बेटा …..पेनाल्टी तो भरनी पड़ेगी” “सॉरी अंकल …. मैं अलगे स्टेशन पर जनरल में चली जाउंगी …. मेरे पास सच में पैसे नहीं हैं …. कुछ परेशानी आ गयी, इसलिए जल्दबाजी में घर से निकल आई … और ज्यादा पैसे रखना भूल गयी….” बोलते बोलते वो लड़की रोने लगी टीटी उसे माफ़ किया और 100 रुपये में उसे दिल्ली तक उस डब्बे में बैठने की परमिशन देदी। टीटी के जाते ही उसने अपने आँसू पोंछे और इधर-उधर देखा कि कहीं कोई उसकी ओर देखकर हंस तो नहीं रहा था..थोड़ी देर बाद उसने किसी को फ़ोन लगाया और कहा कि उसके पास बिलकुल भी पैसे नहीं बचे हैं …दिल्ली स्टेशन पर कोई जुगाड़ कराके उसके लिए पैसे भिजा दे, वरना वो समय पर गाँव नहीं पहुँच पायेगी। मेरे मन में उथल-पुथल हो रही थी, न जाने क्यूँ उसकी मासूमियत देखकर उसकी तरफ खिंचाव सा महसूस कर रहा था, दिल कर रहा था कि उसे पैसे देदूं और कहूँ कि तुम परेशान मत हो … और रो मत …. लेकिन एक अजनबी के लिए इस तरह की बात सोचना थोडा अजीब था। उसकी शक्ल से लग रहा था कि उसने कुछ खाया पिया नहीं है शायद सुबह से … और अब तो उसके पास पैसे भी नहीं थे। बहुत देर तक उसे इस परेशानी में देखने के बाद मैं कुछ उपाय निकालने लगे जिससे मैं उसकी मदद कर सकूँ और फ़्लर्ट भी ना कहलाऊं। फिर मैं एक पेपर पर नोट लिखा,“बहुत देर से तुम्हें परेशान होते हुए देख रहा हूँ, जानता हूँ कि एक अजनबी हम उम्र लड़के का इस तरह तुम्हें नोट भेजना अजीब भी होगा और शायद तुम्हारी नज़र में गलत भी, लेकिन तुम्हे इस तरह परेशान देखकर मुझे बैचेनी हो रही हैइसलिए यह 500 रुपये दे रहा हूँ , तुम्हे कोई अहसान न लगे इसलिए मेरा एड्रेस भी लिख रहा हूँ …...जब तुम्हें सही लगे मेरे एड्रेस पर पैसे वापस भेज सकती हो …. वैसे मैं नहीं चाहूँगा कि तुम वापस करो ….. अजनबी हमसफ़र ” एक चाय वाले के हाथों उसे वो नोट देने को कहा, और चाय वाले को मना किया कि उसे ना बताये कि वो नोट मैंने उसे भेजा है। नोट मिलते ही उसने दो-तीन बार पीछे पलटकर देखा कि कोई उसकी तरह देखता हुआ नज़र आये तो उसे पता लग जायेगा कि किसने भेजा। लेकिन मैं तो नोट भेजने के बाद ही मुँह पर चादर डालकर लेट गया था...थोड़ी देर बाद चादर का कोना हटाकर देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट महसूस की। लगा जैसे कई सालों से इस एक मुस्कराहट का इंतज़ार था। उसकी आखों की चमक ने मेरा दिल उसके हाथों में जाकर थमा दिया …. फिर चादर का कोनाहटा- हटा कर हर थोड़ी देर में उसे देखकर जैसे सांस ले रहा था मैं...पता ही नहीं चला कब आँख लग गयी। जब आँख खुली तो वो वहां नहीं थी … ट्रेन दिल्ली स्टेशन पर ही रुकी थी। और उस सीट पर एक छोटा सा नोट रखा था ….. मैं झटपट मेरी सीट से उतरकर उसे उठा लिया .. और उस पर लिखा था … Thank You मेरे अजनबी हमसफ़र …..आपका ये अहसान मैं ज़िन्दगी भर नहीं भूलूँगी …. मेरी माँ आज मुझे छोड़कर चली गयी हैं …. घर में मेरे अलावा और कोई नहीं है इसलिए आनन – फानन में घर जा रही हूँ। आज आपके इन पैसों से मैं अपनी माँ को शमशान जाने से पहले एक बार देख पाऊँगी …. उनकी बीमारी की वजह से उनकी मौत के बाद उन्हें ज्यादा देर घर में नहीं रखा जा सकता। आज से मैं आपकी कर्ज़दार हूँ ….जल्द ही आपके पैसे लौटा दूँगी। उस दिन से उसकी वो आँखें और वो मुस्कराहट जैसे मेरे जीने की वजह थे …. हर रोज़ पोस्टमैन से पूछता था शायद किसी दिन उसका कोई ख़त आ जाये …. आज 1 साल बाद एक ख़त मिला ….आपका क़र्ज़ अदा करना चाहती हूँ …. लेकिन ख़त के ज़रिये नहीं आपसे मिलकर … नीचे मिलने की जगह का पता लिखा था …. और आखिर में लिखा था ... तुम्हारी अजनबी हमसफ़र …
किसी को रोते देख कर हँसो मत क्यों कि हर इंसान किसी न किसी दुख में है

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