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बिग बॉस के घर में मनीषा रानी को महेश भट्ट ने गले से लगाया, देखतीं रह गईं बेटी पूजा भट्ट
#biggboss #maheshbhatt #manisharani

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तुलसी नर का क्या बड़ा, समय होत बलवान ।
भीलन लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण ।।
एक समय था।ईस्ट इंडिया नाम की ब्रिटिश कंपनी लगभग पूरे विश्व पर राज करती थी। ब्रिटेन से सबसे बुरे पर प्रभावशाली लोग इस कंपनी के मलिक हुआ करते थे। एक टाइम में ब्रिटेन की ऑफिसियल सेना से दुगुनी बड़ी सेना इनके पास हुआ करती थी।
दुनिया के लगभग सारे व्यापार पर एकाधिकार हुआ करता था इनका। अफ़्रीका में तो लोगों की ग़ुलामी तक का व्यापार करती थी ये कंपनी……. In short जलवा जलाल था इसका।
1857 के सिपाही विद्रोह के पहले ये कंपनी भारत में भी राज करती थी और ऐसा कौन सा भारतीय होगा जो इनके जुल्म की दास्तान से परिचित ना हो ?
ख़ैर ये तो हुआ ईस्ट इंडिया का इतिहास।
अभी ये कंपनी क्या कर रही है ? क्या ये exist करती है ?
हर चीज़ का अंत होता है। जैसा मैंने ऊपर लिखा “समय होत बलवान” तो ईस्ट इंडिया कंपनी का भी बुरा समय आया। एक समय लोगों ने कंपनी के प्राइवेट इक्विटी से बहुत पैसे कमाए बाद में ईस्ट इंडिया के शेयर सर्टिफिकेट का भाव 2 कौड़ी का हो गया था । जिसके पास भी ये शेयर थे उसके लिए ये कचरा था।
इस कचरे पर एक भारतीय “संजीव मेहता” की निगाह पड़ गई । एक तो संजीव को इसमें बिज़नेस की संभावना दिख रही थी और उससे बड़ी बात उस ब्रिटिश कंपनी का मलिक बनना जो १०० सालों तक भारतीयों को ग़ुलाम बना रखा था, ये अपने आप में गर्व की बात थी।
संजीव मेहता ने ईस्ट इंडिया कंपनी को महज़ 20 मिनट में ख़रीद लिया और उससे ज़्यादा मज़ेदार बात कि उन्होंने इस कंपनी का मूल्य एक “पेपर नैपकिन” पर लिख के दे दिया था और उसी भाव में उन्होंने इस कंपनी को ख़रीदा ।
आज ईस्ट इंडिया कंपनी चाय का व्यापार करती है और इसका पहला स्टोर लंदन में ही खुला।
सोच के ही आनंद आ जाता है कि जिस कंपनी ने भारत में अत्याचार किए उसे एक भारतीय ने नैपकिन पे भाव लिख के ख़रीद लिया।
सच है समय होत बलवान!

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VISHAKHAPATANAM PORT
विशाखापत्तनम बंदरगाह देश का सबसे गहरा बंदरगाह है। इसका पोताश्रय प्राकृतिक है। 1933 में यह बंदरगाह व्यापार के लिए खोला गया था।
यह भारत के 13 प्रमुख बंदरगाहों में से एक है और आंध्र प्रदेश का एकमात्र प्रमुख बंदरगाह है । माल ढुलाई की मात्रा के हिसाब से यह भारत का तीसरा सबसे बड़ा सरकारी स्वामित्व वाला बंदरगाह है और पूर्वी तट पर सबसे बड़ा बंदरगाह है। यह चेन्नई और कोलकाता बंदरगाहों के बीच में स्थित है।

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* मारवाड़ रियासत की सेना ‘जोधपुर रिसाला’ (रणबाँकुरो की सेना) के साथ महाराजा सर प्रताप सिंह जी ।
* जोधपुर रिसाला, जोधपुर लांसर्स,व सुमेर कैमल कौर, सहित मारवाड़ की सभी सेनाओं में क़ायमखानी 33 से 35% तक रहते थें
(फोटो क़रीब 110 वर्ष पूर्व)
* महाराजा सर प्रताप सिंह जी, मारवाड़ के महाराजा तख़्त सिंह जी के तीसरे पुत्र थे।
* 1916 में ब्रिटिश सरकार ने महाराजा प्रताप सिंह जी को बहादुरी के कारण "सर" की उपाधि दी।
* महाराजा सर प्रताप सिंह जी कभी भी मारवाड़ की राजगद्दी पर नहीं बैठे परन्तु अपने जीते जी गद्दी पर विराजमान सभी शासकों का संरक्षण पूरी निष्ठा के साथ किया और राज्य के लिए कई ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण कार्य किये।
* अपने शासन काल में महाराजा सर प्रताप सिंह जी जोधपुर के ‘चार शासकों के संरक्षक’ और समर्थक व प्रधानमंत्री रहे थे।
* इसलिए महाराजा सर प्रताप सिंह जी को ‘राजाओं का राजा’ कहा जाता था।

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चौमुखनाथ_शिव_मंदिर, पन्ना, मध्यप्रदेश, भारत
भारत के राज्य मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के सलेहा में स्थित है 5 वीं सदी का अति प्राचीन भगवान भोलेनाथ का चौमुख नाथ शिव मंदिर
अति प्राचीन इस मंदिर में भगवान शिव के चार मुख वाली प्रतिमा स्थापित है।
प्रतिमा का हर मुख अलग-अलग रूप वाला है।
चतुर्मुखी प्रतिमा में एक मुख भगवान के दूल्हे के वेष का है। इसको गौर से देखने पर भगवान के दूल्हे के रूप के दर्शन होते हैं। दूसरे मुख में भगवान अर्धनारीश्वर रूप में हैं। तीसरा मुख भगवान का समाधि में लीन स्थिति का है और चौथा उनके विषपान करने का है। प्रतिमा का सूक्ष्मता के साथ दर्शन करने पर सभी रूप उभरकर आते हैं। यह प्रतिमा अपने आप में अद्भुद है और दुर्लभ है।
🌷 ॐ नमः शिवाय 🌷
श्री सांब सदाशिव हर हर शंभू
शिवाय नमः शिव लिंगाय नमः।।

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वर्ष में 364 दिन आम दर्शनार्थियों के लिए बंद रहने वाले काले हनुमान जी का दर्शन मात्र 1 दिन सभी के लिए खुला रहता हैं यह वह दिन हैं जो विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के राजगद्दी के दूसरे दिन भोर की आरती के पश्चात होता हैं।आप सभी भी दर्शन करें... जय हनुमान...जय श्री राम 🙏😊
प्रभु श्रीराम के तीर से धरती को बचाने के लिए हनुमान जी को घुटने पर बैठना पड़ा
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार किले की खुदाई में ही दक्षिणमुखी हनुमान की भव्य प्रतिमा मिली थी जिसे काशीराज परिवार ने दक्षिणी छोर में मंदिर बना कर प्रतिमा को स्थापित किया था। बताया जाता है कि यह प्रतिमा त्रेता युग की है। धार्मिक मान्यता है कि प्रभु श्रीराम लंका पर विजय पाने के लिए निकले थे और रामेश्वरम में समुद्र के किनारे पहुंचे थे। प्रभु ने समुद्र से रास्ता मांगा था लेकिन समुद्र ने ऐसा करने से इंकार कर दिया था इससे कुपित होकर प्रभु श्रीराम ने अपना धनुष निकाल कर उस पर बाण चढ़ा ली थी और समुद्र को सुखा देने के लिए बाण छोडऩा चाहते थे। इससे डर कर समुद्र खुद प्रकट हुआ और प्रभु से माफी मांगी। प्रभु श्रीराम ने समुद्र को माफ तो कर दिया था लेकिन धनुष पर चढ़ाये गये बाण का वापस नहीं ले सकते थे इसलिए उन्होंने बाण को पश्चिम दिशा में छोड़ दिया था। प्रभु श्रीराम का बाण इतना शक्तिशाली था कि उसके टकराने से धरती हिल सकती थी इसलिए जहां पर धरती को बचाने के लिए हनुमानजी घुटने के बल बैठ गये थे और बाण जब धरती से टकराया तो उसके तेज से प्रभु का रंग काला पड़ गया था। धार्मिक मान्यता है कि दुनिया में प्रभु हनुमान की ऐसी अलौकिक मूर्ति और कही नहीं है। धार्मिक मान्यता है कि रामनगर में राज्याभिषेक के समय खुद प्रभु श्रीराम आते हैं इसलिए मंदिर का पट भी इसी दिन खुलता है और साल भर बंद रहता है।

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