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प्राचीन समय भारत मे कभी छुआछुत रहा ही नहीं, और ना ही कभी जातियाँ भेदभाव का कारण होती थी।
चलिए हजारो साल पुराना इतिहास पढ़ते हैं। थोड़ा समय लगेगा मगर पड़ियेगा जरूर जो लोग ब्राह्मणों को बदनाम करते हैं उन्हें अवश्य पढ़ना चाहिए
सम्राट शांतनु ने विवाह किया एक मछवारे की पुत्री सत्यवती से।उनका बेटा ही राजा बने इसलिए भीष्म ने विवाह न करके,आजीवन संतानहीन रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की।
सत्यवती के बेटे बाद में क्षत्रिय बन गए, जिनके लिए भीष्म आजीवन अविवाहित रहे, क्या उनका शोषण होता होगा?
महाभारत लिखने वाले वेद व्यास भी मछवारे थे, पर महर्षि बन गए, गुरुकुल चलाते थे वो।
विदुर, जिन्हें महा पंडित कहा जाता है वो एक दासी के पुत्र थे, हस्तिनापुर के महामंत्री बने, उनकी लिखी हुई विदुर नीति, राजनीति का एक महाग्रन्थ है।
भीम ने वनवासी हिडिम्बा से विवाह किया।
श्री कृष्ण दूध का व्यवसाय करने वालों के परिवार से थे,
उनके भाई बलराम खेती करते थे, हमेशा हल साथ रखते थे।
यादव क्षत्रिय रहे हैं, कई प्रान्तों पर शासन किया और श्री कृष्ण सबके पूजनीय हैं, गीता जैसा ग्रन्थ विश्व को दिया।
राम के साथ वनवासी निषादराज गुरुकुल में पढ़ते थे।
उनके पुत्र लव कुश महर्षि वाल्मीकि के गुरुकुल में पढ़े जो वनवासी थे
तो ये हो गयी वैदिक काल की बात, स्पष्ट है कोई किसी का शोषण नहीं करता था,सबको शिक्षा का अधिकार था, कोई भी पद तक पहुंच सकता था अपनी योग्यता के अनुसार।
वर्ण सिर्फ काम के आधार पर थे वो बदले जा सकते थे, जिसको आज इकोनॉमिक्स में डिवीज़न ऑफ़ लेबर कहते हैं वो ही।
प्राचीन भारत की बात करें, तो भारत के सबसे बड़े जनपद मगध पर जिस नन्द वंश का राज रहा वो जाति से नाई थे ।
नन्द वंश की शुरुवात महापद्मनंद ने की थी जो की राजा नाई थे। बाद में वो राजा बन गए फिर उनके बेटे भी, बाद में सभी क्षत्रिय ही कहलाये।
उसके बाद मौर्य वंश का पूरे देश पर राज हुआ, जिसकी शुरुआत चन्द्रगुप्त से हुई,जो कि एक मोर पालने वाले परिवार से थे और एक ब्राह्मण चाणक्य ने उन्हें पूरे देश का सम्राट बनाया । 506 साल देश पर मौर्यों का राज रहा।
फिर गुप्त वंश का राज हुआ, जो कि घोड़े का अस्तबल चलाते थे और घोड़ों का व्यापार करते थे।140 साल देश पर गुप्ताओं का राज रहा।
केवल पुष्यमित्र शुंग के 36 साल के राज को छोड़ कर 92% समय प्राचीन काल में देश में शासन उन्ही का रहा, जिन्हें आज दलित पिछड़ा कहते हैं तो शोषण कहां से हो गया? यहां भी कोई शोषण वाली बात नहीं है।
फिर शुरू होता है मध्यकालीन भारत का समय जो सन 1100- 1750 तक है, इस दौरान अधिकतर समय, अधिकतर जगह मुस्लिम आक्रमणकारियो का समय रहा और कुछ स्थानों पर उनका शासन भी चला।
अंत में मराठों का उदय हुआ, बाजी राव पेशवा जो कि ब्राह्मण थे, ने गाय चराने वाले गायकवाड़ को गुजरात का राजा बनाया, चरवाहा जाति के होलकर को मालवा का राजा बनाया।
अहिल्या बाई होलकर खुद बहुत बड़ी शिवभक्त थी। ढेरों मंदिर गुरुकुल उन्होंने बनवाये।
मीरा बाई जो कि राजपूत थी, उनके गुरु एक चर्मकार रविदास थे और रविदास के गुरु ब्राह्मण रामानंद थे|।
यहां भी शोषण वाली बात कहीं नहीं है।
मुग़ल काल से देश में गंदगी शुरू हो गई और यहां से पर्दा प्रथा, गुलाम प्रथा, बाल विवाह जैसी चीजें शुरू होती हैं।
साथ ही ब्राह्मणों के खिलाफ प्रोपगंडा शुरू होता है
1800 -1947 तक अंग्रेजो के शासन रहा और यहीं से जातिवाद शुरू हुआ । जो उन्होंने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत किया।
अंग्रेज अधिकारी निकोलस डार्क की किताब "कास्ट ऑफ़ माइंड" में मिल जाएगा कि कैसे अंग्रेजों ने जातिवाद, छुआछूत को बढ़ाया और कैसे स्वार्थी भारतीय नेताओं ने अपने स्वार्थ में इसका राजनीतिकरण किया।
इन हजारों सालों के इतिहास में देश में कई विदेशी आये जिन्होंने भारत की सामाजिक स्थिति पर किताबें लिखी हैं, जैसे कि मेगास्थनीज ने इंडिका लिखी, फाहियान, ह्यू सांग और अलबरूनी जैसे कई। किसी ने भी नहीं लिखा की यहां किसी का शोषण होता था। या ब्राह्मणोंने जातिवाद फैलाया है ऐसा कहीं भी नहीं मिलता
योगी आदित्यनाथ जो ब्राह्मण नहीं हैं, गोरखपुर मंदिर के महंत हैं, पिछड़ी जाति की उमा भारती महा मंडलेश्वर रही हैं। जन्म आधारित जाति को छुआछुत व्यवस्था हिन्दुओ को कमजोर करने के लिए लाई गई थी।
इसलिए भारतीय होने पर गर्व करें और घृणा, द्वेष और भेदभाव के षड्यंत्रों से खुद भी बचें और औरों को भी बचाएं। बेवजह ब्राह्मणों पर लांछन ना लगाएं क्योंकि हमारी संस्कृति को हमारे सनातन परंपराओं को जीवित रखने में ब्राह्मण ने अभूतपूर्व योगदान दिया है और सभी जाति वर्ग का सहयोग है इस भारतवर्ष में

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दिवेर का युद्ध"
महाराणा प्रताप ने कुंवर अमरसिंह को मेवाड़ का सेनापति घोषित किया अकबर के चाचा सुल्तान खां का सामना कुंवर अमरसिंह से हुआ कुंवर अमरसिंह ने सुल्तान खां पर भाले से भीषण प्रहार किया भाला इतने तेज वेग से मारा था कि सुल्तान खां के कवच, छाती व घोड़े को भेदते हुए जमीन में घुस गया और वहीं फँस गया
"टोप उड्यो बख्तर उड्यो, सुल्तान खां रे जद भालो मारियो | राणो अमर यूं लड्यो दिवेर में, ज्यूं भीम लड्यो महाभारत में ||"
सुल्तान खां मरने ही वाला था कि तभी वहां महाराणा प्रताप आ पहुंचे सुल्तान खां ने कुंवर अमरसिंह को देखने की इच्छा महाराणा के सामने रखी तो महाराणा ने किसी और राजपूत को बुलाकर सुल्तान खां से कहा कि "यही अमरसिंह है" सुल्तान खां ने कहा कि "नहीं ये अमरसिंह नहीं है, उसी को बुलाओ" तब महाराणा ने कुंवर अमरसिंह को बुलाया सुल्तान खां ने कुंवर अमरसिंह के वार की सराहना की महाराणा ने सुल्तान खां को तकलीफ में देखकर कुंवर अमरसिंह से कहा कि "ये भाला सुल्तान खां के जिस्म से निकाल लो" कुंवर अमरसिंह ने खींचा पर भाला नहीं निकला, तो महाराणा ने कहा कि "पैर रखकर खींचो तब कुंवर अमरसिंह ने भाला निकाला

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बनारस में एक मराठी करहाडे ब्राह्मण परिवार में जन्मी, लक्ष्मीबाई ने 1842 में झांसी के महाराजा गंगाधर राव से शादी की। 1853 में जब महाराजा की मृत्यु हुई, तो गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी के अधीन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके दत्तक उत्तराधिकारी के दावे को मान्यता देने से इनकार कर दिया। और व्यपगत के सिद्धांत के तहत झाँसी पर कब्जा कर लिया। रानी 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में भाग लेने के लिए तैयार नहीं थी। उन्होंने कंपनी के सहयोगियों के खिलाफ झांसी की सफल रक्षा का नेतृत्व किया, लेकिन 1858 की शुरुआत में झांसी ह्यूग रोज की कमान में ब्रिटिश सेना के अधीन हो गई। रानी घोड़े पर सवार होकर भागने में सफल रही और ग्वालियर पर कब्जा करने के लिए विद्रोहियों में शामिल हो गई, जहाँ उन्होंने नाना साहेब को पुनर्जीवित मराठा साम्राज्य के पेशवा के रूप में घोषित किया। ग्वालियर में ब्रिटिश जवाबी हमले के दौरान घातक रूप से घायल होने के बाद जून 1858 में उनकी मृत्यु हो गई।

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कुँवर रघुराज प्रताप सिंह (जन्मः 31 अक्टूबर 1967, उत्तर प्रदेश) एक सुप्रसिद्ध भारतीय राजनेता है[1], जो राजा भैया के नाम से भी प्रसिद्ध हैं।

रघुराज प्रताप सिंह विशेन (राजा भैया) ये विशेन क्षत्रिय है ये सन 1993 से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिला के विधान सभा क्षेत्र कुंडा से निर्दलीय विधायक निर्वाचित किए जाते हैं। विधानसभा चुनाव 2012 में भी भारी मतों से जीतकर विधानसभा सदस्य हैं। राजा भैया का बसपा सरकार में मुकदमे में मायावती ने जेल में भेज दिया था सपा सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने

रजनीतिक प्रचारक राजस्थान - ठाकुर श्याम सिंह , मोहन सिंह , कुँवर शिवमंगल सिंह जादौन

जीवन परिचय
रघुराज का जन्म 31 अक्टूबर 1967 को प्रतापगढ़ विशेन क्षत्रिय के भदरी रियासत में पिता श्री उदय प्रताप सिंह और माता श्रीमती मंजुल राजे के यहाँ हुआ। इनके दादा राजा बजरंग बहादुर सिंह, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल थे। राघुराज के पिता राजा उदय प्रताप सिंह विश्व हिंदू परिषद व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मानद पादाधिकारी रह चुके हैं। इनकी माता श्रीमती मंजुल राजे भी एक शाही परिवार की है। राजा भैया अपने परिवार के पहले ऐसे सदस्य थे जिन्होंने पहली बार राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश किया।

रघुराज प्रताप की प्राथमिक शिक्षा नारायणी आश्रम, इलाहाबाद के महाप्रभु बाल विद्यालय में हुआ। सन 1985 में भारत स्काउट एंड गाइड हाई स्कूल से दसवी तथा सन 1987 में इलाहाबाद के एक इंटरमीडिएट स्कूल से बारहवी की पढ़ाई की। लखनऊ विश्वविद्यालय से इन्होंने कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की। घुड़सवारी और निशानेबाजी के शौकीन राजा भैया लखनऊ विश्वविद्यालय से मिलिट्री साइंस और भारतीय मध्यकालीन इतिहास में स्नातक हैं। राजा भैया के बारे में कहा जाता है कि वे साइकिल चलाने से लेकर हवाई जहाज उड़ाने तक का कारनामा करते हैं।

रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया का विवाह बस्ती रियासत की राजकुमारी भान्वी देवी से हुआ। इनके दो पुत्र शिवराज एंव ब्रृजराज, दो पुत्रियाँ राधवी और ब्रृजेश्वरी है।

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बनारस में एक मराठी करहाडे ब्राह्मण परिवार में जन्मी, लक्ष्मीबाई ने 1842 में झांसी के महाराजा गंगाधर राव से शादी की। 1853 में जब महाराजा की मृत्यु हुई, तो गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी के अधीन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके दत्तक उत्तराधिकारी के दावे को मान्यता देने से इनकार कर दिया। और व्यपगत के सिद्धांत के तहत झाँसी पर कब्जा कर लिया। रानी 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में भाग लेने के लिए तैयार नहीं थी। उन्होंने कंपनी के सहयोगियों के खिलाफ झांसी की सफल रक्षा का नेतृत्व किया, लेकिन 1858 की शुरुआत में झांसी ह्यूग रोज की कमान में ब्रिटिश सेना के अधीन हो गई। रानी घोड़े पर सवार होकर भागने में सफल रही और ग्वालियर पर कब्जा करने के लिए विद्रोहियों में शामिल हो गई, जहाँ उन्होंने नाना साहेब को पुनर्जीवित मराठा साम्राज्य के पेशवा के रूप में घोषित किया। ग्वालियर में ब्रिटिश जवाबी हमले के दौरान घातक रूप से घायल होने के बाद जून 1858 में उनकी मृत्यु हो गई।

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