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सीता भवन नेपाल की राजधानी काठमांडू में एक राणा महल है। नारायणहिती पैलेस के पूर्व में स्थित महल परिसर, आंगनों, उद्यानों और इमारतों की एक प्रभावशाली और विशाल सरणी में शामिल किया गया था। सीता भवन का निर्माण भीम शमशेर जंग बहादुर राणा ने 1929 में अपनी पत्नी महारानी श्री तीन सीता बड़ी महारानी दीला कुमारी देवी के लिए करवाया था।
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कंगना राणावत - रानी लक्ष्मीबाई के रूप में
जीशु सेनगुप्ता - गंगाधर राव के रूप में [8]
अतुल कुलकर्णी - तात्या टोपे के रूप में
मोहम्मद जीशान अय्युब- सदाशिव के रूप में
सुरेश ओबेराय - बाजीराव द्वितीय के रूप में
वैभव तत्ववादी - पुराण सिंह के रूप में [9]
अंकिता लोखंडे - झलकारीबाई के रूप में [10]
रिचर्ड कीप - जनरल ह्यूग रोज़ के रूप में रखें
एडवर्ड सोनरब्लिक
निहार पांड्या - नाना साहिब के रूप में
अमित बहल - दिनकर राव के रूप में
एंडी वॉन इच - मेजर एलिस के रूप में
बिली विल्सन - औपनिवेशिक सिपाही नं 19 के रूप में
जैकब ब्लुमबर्ग - औपनिवेशिक सिपाही नं 20 के रूप में
बेंजामिन पेरेक - औपनिवेशिक सिपाही नं 29 के रूप में
यही वजह है कि यहां पर रोजाना 200 से 300 शवों का अंतिम संस्कार होता है।आपको बता दें कि यहां पर शिवजी और मां दुर्गा का प्रसिद्ध मंदिर भी है, जिसका निर्माण मगध के राजा ने करवाया था। तो चलिए अब आपको बता दें कि इस घाट में ऐसा क्या है कि यहां दाह संस्कार करने से मोक्ष मिलता है।
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हिंदुओं के लिए इस घाट को अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र माना जाता है। बताया जाता है कि मणिकर्णिका घाट को भगवान शिव ने अनंत शांति का वरदान दिया है। इस घाट की विशेषता है कि यहां चिता की आग कभी शांत नहीं होती है, यानी यहां हर समय किसी ना किसी का शवदाह हो रहा होता है। इस घाट को लेकर कई जनश्रुतियां हैं।
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एक कथा के अनुसार यहां पर भगवान विष्णु ने हजारों वर्ष तक इसी घाट पर भगवान शिव की आराधना की थी। विष्णु जी ने शिवजी से वरदान मांगा कि सृष्टि के विनाश के समय भी काशी को नष्ट न किया जाए। भगवान शिव और माता पार्वती विष्णु जी की प्रार्थना से प्रसन्न होकर यहां आए थे। तभी से मान्यता है कि यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है। तो वहीं ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती के लिए यहां स्नान कुंड का निर्माण किया था।
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जिसे लोग अब मणिकर्णिका कुंड के नाम से जानते हैं। स्नान के दौरान माता पार्वती का कर्ण फूल कुंड में गिर गया, जिसे महादेव ने ढूंढ कर निकाला। देवी पार्वती के कर्णफूल के नाम पर इस घाट का नाम मणिकर्णिका हुआ। इस घाट की एक और मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने देवी सती के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार इसी घाट पर किया था। जिस कारण से इसे महाश्मशान भी कहते हैं। मोक्ष की चाह रखने वाला इंसान जीवन के अंतिम पड़ाव में यहां आने की कामना करता है। तो वहीं इससे जुड़ी एक और हैरान कर देने वाली बात ये है कि यहां पर साल में एक दिन ऐसा भी होता है जब नगर बधु पैर में घुंघरू बांधकर यहां नृत्य करती हैं।
स्नान के दौरान माता पार्वती का कर्ण फूल कुंड में गिर गया, जिसे महादेव ने ढूंढ कर निकाला। देवी पार्वती के कर्णफूल के नाम पर इस घाट का नाम मणिकर्णिका हुआ। इस घाट की एक और मान्यता है कि यहां भगवान शिव ने देवी सती के पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार इसी घाट पर किया था। जिस कारण से इसे महाश्मशान भी कहते हैं।