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ਅਮਿਤਾਭ ਬੱਚਨ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਵਾਲੀ Caller Tune ਹੋਈ ਬੰਦ
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#जाट भाई को #सैल्यूट 🫡 #साधुवाद 🥰❤️
#सीधीबातनोबकवास??✌️
CO #अनुज_चौधरी का #मुहर्रम पर सख्त #चेतावनी ..⚠️
जय हिन्द जय भारत 🇮🇳❤️
ये वही वक्त है जिसका इंतजार भारत दशकों से कर रहा था। दुनिया की सबसे “खतरनाक टेक्नोलॉजी” अब भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रही है।
वैश्विक कूटनीति के शतरंज पर एक ऐसा चाल चली गई है जिसने वॉशिंगटन से लेकर मॉस्को और बीजिंग तक हलचल मचा दी है।
बात किसी रक्षा डील की नहीं है, बल्कि भारत के सुपरपावर बनने या फिर पश्चिमी ताकतों का सिर्फ ग्राहक बने रहने की कहानी है।
बहुत अच्छी खबर लाया हूँ।
और इस कहानी की शुरुआत होती है एक ऐसी पेशकश से, जिसने पूरी दुनिया में खलबली मचा दी है-रूस का भारत को Su-57E स्टील्थ फाइटर जेट्स के लिए 100% तकनीकी ट्रांसफर और भारत में निर्माण का ऑफर।
रूस का भारत को प्रस्ताव.....
यानी रूस ने भारत के सामने वो प्रस्ताव रख दिया है जो अमेरिका ने आज तक अपने सबसे करीबी सहयोगियों तक को नहीं दिया।
और ये पेशकश उस वक्त आई है जब अमेरिका खुद भारत को अपने एडवांस्ड स्टील्थ फाइटर F-35A बेचने के लिए मनाने की जुगत में लगा है।
फर्क सिर्फ इतना है-F-35A खरीदने पर भारत सिर्फ ग्राहक रहेगा, लेकिन Su-57E लेने पर भारत उसका निर्माता बन सकता है। तकनीक का मालिक।
रूस ने भारत के सामने जो कार्ड फेंका है, वो सिर्फ फाइटर जेट बेचने तक सीमित नहीं है। उसने कहा है कि भारत और रूस मिलकर Su-57E का निर्माण करेंगे, उसमें लगने वाली स्टील्थ तकनीक, इंजन, एवियोनिक्स और हथियार प्रणालियों का संयुक्त विकास करेंगे।
रूस, भारत को उस टेक्नोलॉजी की कुंजी सौंप देगा जिसके पीछे दुनिया की कई ताकतें दशकों से लगी हुई हैं।
कहा बनाएगा भारत का न्य हथियार...?
भारत में ये निर्माण नासिक स्थित हिन्दुस्तान एरोनॉटिक लि. HAL प्लांट में हो सकता है, जहां पहले से ही भारतीय वायुसेना के रीढ़ बने तेजस और Su-30MKI फाइटर जेट्स बन रहे हैं।
यानी भारत को न नई फैक्ट्री बनानी है, न नई तैयारी करनी है। बस प्लान्ट में नई मशीनें लगेंगी, नई टेक्नोलॉजी आएगी और भारत का अगला कदम सीधे 'फिफ्थ जेनरेशन फाइटर जेट्स' की दुनिया में होगा।
Su-57E को आप यूं समझिए-ये वही विमान है जो हवा में अदृश्य हो जाता है। सुपरसोनिक क्रूज़ करता है, उसके थ्रस्ट वेक्टरिंग इंजन उसे ऐसे घुमाते हैं जैसे आसमान में मौत ने नृत्य शुरू कर दिया हो।
दुश्मन की रडार उसे पकड़ ही नहीं पाती और अगर पकड़ भी ले तो तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। भारत के लिए इससे बड़ी कोई डील नहीं हो सकती थी। तकनीकी आत्मनिर्भरता का असली मतलब यही है।