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दस साल पहले बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस्लाम को अपाहिज कहा था। तीन रोज़ पहले तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट करके बताया कि वो ख़ुद उम्रभर के लिए अपाहिज हो गई हैं। इंसान को अपनी ज़ुबान पर कंट्रोल रखना चाहिए। आज़ादी का क़त्तई ये मतलब नहीं हुआ कि आप अपनी ज़ुबान से कुछ भी बकते रहें। आप अगर किसी दीन/धर्म में यक़ीन नहीं रखते हैं तो कम-अज़-कम उन करोड़ों-अरबों लोगों का यक़ीन और उनके सेंटीमेंट का ख़्याल कीजिए जो किसी भी दीन/धर्म में यक़ीन रखते या मानते हैं। आप अगर किसी दीन/धर्म को नहीं मानते हैं तो न मानें। लेकिन यह हक़ आपको किसने दिया कि आप किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ उल्टी/सीधी बातें बोलें या लिखें और लोगों की जज़्बात को ठेस पहुंचाएं?
बचिए इन चीज़ों से। किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ या उनकी मान्यताओं के ख़िलाफ़ बोलने/लिखने से बचिए। ग़लत दीन/धर्म नहीं होता बल्कि उसके मानने वालों ने गंदगी फैलाई है।
ख़ैर! अल्लाह से दुआ है अल्लाह तआला - तस्लीमा नसरीन को शिफ़ा अता फ़रमाए।

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दस साल पहले बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस्लाम को अपाहिज कहा था। तीन रोज़ पहले तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट करके बताया कि वो ख़ुद उम्रभर के लिए अपाहिज हो गई हैं। इंसान को अपनी ज़ुबान पर कंट्रोल रखना चाहिए। आज़ादी का क़त्तई ये मतलब नहीं हुआ कि आप अपनी ज़ुबान से कुछ भी बकते रहें। आप अगर किसी दीन/धर्म में यक़ीन नहीं रखते हैं तो कम-अज़-कम उन करोड़ों-अरबों लोगों का यक़ीन और उनके सेंटीमेंट का ख़्याल कीजिए जो किसी भी दीन/धर्म में यक़ीन रखते या मानते हैं। आप अगर किसी दीन/धर्म को नहीं मानते हैं तो न मानें। लेकिन यह हक़ आपको किसने दिया कि आप किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ उल्टी/सीधी बातें बोलें या लिखें और लोगों की जज़्बात को ठेस पहुंचाएं?
बचिए इन चीज़ों से। किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ या उनकी मान्यताओं के ख़िलाफ़ बोलने/लिखने से बचिए। ग़लत दीन/धर्म नहीं होता बल्कि उसके मानने वालों ने गंदगी फैलाई है।
ख़ैर! अल्लाह से दुआ है अल्लाह तआला - तस्लीमा नसरीन को शिफ़ा अता फ़रमाए।

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दस साल पहले बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस्लाम को अपाहिज कहा था। तीन रोज़ पहले तस्लीमा नसरीन ने ट्वीट करके बताया कि वो ख़ुद उम्रभर के लिए अपाहिज हो गई हैं। इंसान को अपनी ज़ुबान पर कंट्रोल रखना चाहिए। आज़ादी का क़त्तई ये मतलब नहीं हुआ कि आप अपनी ज़ुबान से कुछ भी बकते रहें। आप अगर किसी दीन/धर्म में यक़ीन नहीं रखते हैं तो कम-अज़-कम उन करोड़ों-अरबों लोगों का यक़ीन और उनके सेंटीमेंट का ख़्याल कीजिए जो किसी भी दीन/धर्म में यक़ीन रखते या मानते हैं। आप अगर किसी दीन/धर्म को नहीं मानते हैं तो न मानें। लेकिन यह हक़ आपको किसने दिया कि आप किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ उल्टी/सीधी बातें बोलें या लिखें और लोगों की जज़्बात को ठेस पहुंचाएं?
बचिए इन चीज़ों से। किसी भी दीन/धर्म के ख़िलाफ़ या उनकी मान्यताओं के ख़िलाफ़ बोलने/लिखने से बचिए। ग़लत दीन/धर्म नहीं होता बल्कि उसके मानने वालों ने गंदगी फैलाई है।
ख़ैर! अल्लाह से दुआ है अल्लाह तआला - तस्लीमा नसरीन को शिफ़ा अता फ़रमाए।

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ये मुबीन फ़ातिमा हैं जो जम्मू कश्मीर की रहने वाली हैं। मुबीन फ़ातिमा एक तलाक़शुदा ख़ातून हैं जिनका एक बच्चा है। मुबीन फ़ातिमा ने "जम्मू कश्मीर एडमिनिस्ट्रेशन सर्विस" (JKAS) इम्तिहान में 154वां मक़ाम हासिल किया है।
मुबीन फातिमा तलाक़ शुदा और एक बच्चे की वालिदा होने के बावजूद अपनी परेशान हालात का मज़बूती से सामना करती हुई कामयाबी हासिल की हैं। मुबीन फ़ातिमा के जज़्बे और बहादुरी को सलाम।

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दो रुपए प्रति ट्वीट करने वाले बेरोज़गार शाहरुख़ ख़ान की मूवी पठान का बॉयकॉट कर रहे हैं। इधर पठान मूवी फ़िल्मी दुनिया में आयेदिन नया रिकॉर्ड अपने नाम कर रही है। शाहरुख़ ख़ान की मूवी पठान ने एक और रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है। पठान मूवी भारत की पहली मूवी है जो दुनियाभर के 100 से ज़्यादह देशों में रिलीज़ हो रही है।

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लखनऊ यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में तीन गोल्ड मेडल जीतने वाली इक़रा रिज़वान वारसी के वालिद रिज़वान साहब पहले स्प्रे पेंटिंग का काम करते थे। वबा के दौरान उनकी नौकरी चली गई थी तो वो हस्पतालों के इर्द गिर्द घूमकर मास्क बेचने लगे। रिज़वान साहब की यही आमदनी का ज़रिया है जिससे वो अपना घर परिवार चलाते हैं।
इक़रा रिज़वान को डॉ. राधा कुमुद मुखर्जी गोल्ड मेडल, पंडित देवी सहाय मिश्रा गोल्ड मेडल और श्रीमती श्याम कुमारी हुक्कू मेमोरियल गोल्ड मेडल से नवाज़ा गया है। इक़रा रिज़वान साल 2021 में बेस्ट स्टूडेंट अवॉर्ड कांस्य पदक भी अपने नाम कर चुकी हैं। इक़रा अपनी कामयाबी का स्रेह अपने परिवार को देते हुए कहती हैं- "मैं आगे उर्दू में परास्नातक की पढ़ाई करूंगी उसके बाद यूजीसी व नेट इम्तिहान दूंगी और प्रोफ़ेसर बनकर अपने जैसी लड़कियों को आगे बढ़ाऊंगी। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। कोविड काल में और भी मुश्किल हालात थे। मां मास्क की सिलाई करती थीं। वालिद उनको हस्पतालों के बाहर बेचते थे। इसी से घर चलता था। अब भी हालात बहुत ज़्यादह नहीं बदले हैं। हम चार भाई-बहन हैं, जिसमें मैं सबसे बड़ी हूं"
मुबारकबाद इक़रा रिज़वान।

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