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अपनी सगी और नाबालिग बेटी को भी पद, पैसा और राजनीति के लिए दांव पर लगाने को जो तैयार है तो दूसरों के बच्चों पर कितना रहम करेंगे यह विषय सोचनीय है। विचारणीय यह कि क्या ऐसा व्यक्तिगत स्तर तक ही चल रहा है या फिर बातें उससे आगे की है?
अख़बार की अंतिम पंक्तियों पर गौर करें तो भाजपा महिला मोर्चा की नेता अनामिका शर्मा का अचानक से केवल लग्जरी लाइफस्टाइल ही नहीं बदला बल्कि पार्टी में पद और प्रतिष्ठा भी बढ़ी है। किसने दिए ये अच्छे पर और क्यों दिए उन सफेदपोश लोगों की भी जांच हों।
अभी मैनपुरी के भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष के बेटे का मामला ठंडा भी नहीं हुआ कि हरिद्वार का आमने आ गया। इससे पहले जाने कितने ही सड़क से लेकर ओयो तक यह सब चल रहा है।समय सोचने का भी है कि आखिर यह सब देशभर में चल क्या रहा है?
सोचना यह भी कि बड़े–बड़े मामलों को आंच भी नहीं आने दी जाती है, समर्थक कानून के भी खिलाफ खड़े हो जाते हैं, बेगुनाही का सबूत भी मीडिया और समर्थक दे आते हैं इसके पीछे क्या वजह हो सकती है? सारा ध्यान हिन्दू, मुस्लिम, मंदिर, मस्जिद, धर्म इत्यादि पर ही क्यों?