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राम नवमी का इतिहास
राम नवमी हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे भगवान श्रीराम के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है। यह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है और चैत्र नवरात्रि का समापन भी इसी दिन होता है।
राम नवमी का पौराणिक महत्व
भगवान श्रीराम त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के पुत्र के रूप में जन्मे थे। राजा दशरथ की तीन रानियाँ—कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी—थीं, लेकिन उन्हें संतान प्राप्ति नहीं हो रही थी। तब उन्होंने ऋषि वशिष्ठ के परामर्श से पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। इस यज्ञ के फलस्वरूप, राजा दशरथ को चार पुत्र प्राप्त हुए—श्रीराम (कौशल्या से), भरत (कैकेयी से), और लक्ष्मण व शत्रुघ्न (सुमित्रा से)। श्रीराम विष्णु के सातवें अवतार माने जाते हैं, जिनका जन्म अधर्म का नाश करने और धर्म की स्थापना के लिए हुआ था।
राम नवमी का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
1. त्रेतायुग में श्रीराम का जन्म – श्रीराम का जन्म रावण के अत्याचारों को समाप्त करने के लिए हुआ था। उन्होंने मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर मानवता को धर्म, सत्य और कर्तव्य का संदेश दिया।
2. रामराज्य की स्थापना – श्रीराम ने अयोध्या में एक आदर्श राज्य की स्थापना की, जिसे "रामराज्य" कहा जाता है। यह न्याय, समता और शांति का प्रतीक था।
3. वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास की रामचरितमानस – श्रीराम के जीवन का विस्तृत वर्णन महर्षि वाल्मीकि की "रामायण" और गोस्वामी तुलसीदास की "रामचरितमानस" में मिलता है।
राम नवमी का उत्सव
इस दिन देशभर में विशेष पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन और रामायण के पाठ किए जाते हैं।
अयोध्या में भव्य शोभायात्राएँ निकाली जाती हैं।
भक्त उपवास रखते हैं और मंदिरों में जाकर रामलला के दर्शन करते हैं।
रामलीला का मंचन किया जाता है, जिसमें श्रीराम के जीवन प्रसंगों को दर्शाया जाता है।
राम नवमी केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि यह धर्म, आस्था और भगवान श्रीराम के आदर्शों का प्रतीक है। यह हमें सत्य, न्याय और कर्तव्यपरायणता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
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