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4 फरवरी की संध्या, भारत मंडपम, विश्व पुस्तक मेला—Bharat Literature Festival में आचार्य प्रशांत का बहुप्रतीक्षित संबोधन सुनने के लिए पूरा हॉल खचाखच भरा था। यह संवाद वरिष्ठ पत्रकार चित्रा त्रिपाठी (ABP News) के संचालन में हुआ। चर्चा की शुरुआत गीता से हुई, जहां आचार्य प्रशांत ने स्पष्ट किया—"गीता जीवन को बेहतर नहीं बनाती, गीता जीवन देती है।" यह वाक्य सभा में गूंजा और हर श्रोता को गहरी सोच में डाल गया। उन्होंने समझाया कि गीता मात्र एक प्रेरणादायक ग्रंथ नहीं, बल्कि संपूर्ण जीवन-दर्शन है, जिसे समझना और अपनाना आज के युग की अनिवार्यता है।
इसके बाद संवाद और गहराया, जिसमें अध्यात्म, श्रुति और स्मृति का भेद, लिंगभेद, कुंभ और अमृत के गूढ़ अर्थ, जलवायु परिवर्तन जैसे ज्वलंत विषय शामिल रहीं। आचार्य प्रशांत के तर्कसंगत उत्तरों और उनकी स्पष्टता ने श्रोताओं को झकझोर दिया। अंत में श्रोताओं ने प्रश्न पूछे, जिनका उन्होंने विस्तार से उत्तर दिया। जब पूरी चर्चा का सारांश प्रस्तुत किया गया, तो पूरा हॉल ध्यान से सुन रहा था और अंततः जोशपूर्ण तालियों से गूंज उठा।
यह आयोजन और भी ऐतिहासिक बन गया जब आचार्य प्रशांत ने 103 डिग्री बुखार के बावजूद दो घंटे के गहन सत्र के बाद, बिना विश्राम किए मीडिया साक्षात्कार दिए और घंटों तक प्रतीक्षा कर रहे Penguin और Harper Collins के Publishers के आग्रह पर उनके स्टॉल्स का दौरा किया और अपने पाठकों से मुलाकात की। अंत में उन्होंने संस्था के स्वयंसेवकों से भी मुलाकात की, और उनके जिज्ञासाओं का समाधान किया। इस पूरे दिन ने यह सिद्ध कर दिया कि जब समर्पण अडिग हो और उद्देश्य स्पष्ट, तो कोई भी बाधा ज्ञान और सत्य के प्रसार को रोक नहीं सकती।