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आज नगर निगम देहरादून के वार्ड नंबर-76 #निरंजनपुर से पार्षद पद की उम्मीदवार श्रीमती #शीना_मेहता जी के कार्यालय के उद्घाटन समारोह में प्रतिभाग किया एवं समस्त क्षेत्र वासियों से अपील की कि बेटी शीना एवं मेयर प्रत्याशी श्री विरेन्द्र पोखरियाल जी को अपना अमूल्य वोट देकर उन्हें भारी मतों से विजयी बनाएं।
इस दौरान नगर निगम देहरादून के मेयर प्रत्याशी श्री #विरेन्द्र_पोखरियाल जी सहित अन्य साथी मौजूद रहे।
।।जय कांग्रेस - विजय कांग्रेस।।
हम जंहा के निवासी हैं। वही की एक घटना है जिससे सभी परिचित है। थोड़ा बिलंब से इस पर लिख रहें है।
अतुल ने सोशल पर वीडियो बनाकर आत्महत्या किया था।
पूरा घटनाक्रम पुरुष स्त्री में बंट गया। यह अंतहीन बहस है। जो चलती रही, चलती भी रहेगी।
लेकिन इसमें जो स्पष्ट बात सामने आई है। वह यही है कि एक कठोर कानून अत्याचार का अस्त्र बन गया है।
कोई किसी के साथ नही रहना चाहता तो यह कानून आपको बाध्य करेगा कि आप नर्क भरी जिंदगी जिएं या आत्महत्या कर लें।
हम कभी भाई, पिता, बहन , मित्र किसी के साथ नहीं रहना चाहते हैं। यह रिश्तों की जटिलता है। वैसे पत्नी या पति के साथ नहीं रहना चाहते तो इसके लिये मृत्युदंड जैसे कानून क्यों बनाये गये हैं। पति पत्नी का रिश्ता कोई समुद्र मंथन से निकला है। जो टूट गया तो ब्रह्मांड हिल जायेगा।
जैसे दुनिया के अन्य देशों मे सरल कानून हैं। वैसे ही भारत में क्यों नहीं होना चाहिये। आश्चर्य कि बात है पिछले 15 दिन से मीडिया, सोशल मीडिया, सुप्रीम कोर्ट सब में यह बहस का विषय है। लेकिन कानून बनाने वाली संस्था संसद जो इस समय चल भी रही है। उसमें कोई चर्चा नही है। अब संसद मात्र भाषणबाजी का केंद्र बनकर रह गई है। किसी भी गम्भीर विषय पर वहां बात नहीं होती।
संसद अभी चाहे तो कानून को सरल करके इस कानूनी अत्याचार से लाखों लोगों का जीवन बचा सकती है।।
बहुत बार ऐसा होता है।
हम जानते हैं, जो हम पाना चाहते हैं। उसे पा नहीं सकते हैं। फिर उसे पाने के प्रयास का आनंद लेते हैं। जिसकी अंतिम परिणीति दुख है।
बहुतायत लोग ऐसे हैं। जिनके पैरों में नैतिकता, सही - गलत कि बेड़ियां पड़ी है। वह खोने के दुख से डरते हैं। या इससे डरते हैं कि लोग क्या कहेंगें। जीवन के महान अनुभव से वंचित हो जाते हैं।
वह अनुभव है, वह चाहत जिसे पाना अंसभव है।
हम दुख से डरते हैं, इसके लिये अच्छाइयों का बोझ लाद लेते हैं। यह भी अहंकार ही है। देखो हम कितने अच्छे है। जबकि अंदर मन खंड खंड टूटा है। टूटा हुआ मन, हजार दुखों पर भारी पड़ जाता है।।
मेरा पक्ष -
वर्तमान में कोई भी नहीं जो भरत जैसा चरित्र वाला हो। राम होना तो स्वयं राम के सिवा किसी के बस नहीं। समय के साथ साथ राजनीति/राजधर्म का नित नया रूप देखने को मिलता रहा है लेकिन भरत जैसे धर्म की खड़ांऊ लेकिन राज्य करने वाला उदात्त चरित्र वाला नहीं। यहां "धर्म" का मतलब स्वयं श्रीराम से है, और खड़ाऊ से अर्थ उनसे मिली प्रेरणा!
वर्तमान के आलोक में रामराज का सपना दिखाते, श्रीराम की दुहाई देते रहने वाले यदि वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण से ही सीख ले पाते।
फोटो इसलिए कि समय समय पर अपडेट आदि डालते रहना चाहिए।