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सिर्फ समर्थक लोग फॉलो करेंगे #फिल्म्स के बारे में दस अज्ञात तथ्य
1. 1888 में बनी पहली फिल्म "राउंडय गार्डन सीन" थी, जिसे फ्रेंच आविष्कारक लुइस ले प्रिंस द्वारा निर्देशित किया गया था।
2. 1911 में पहली हॉलीवुड फिल्म "द स्क्व मैन" थी, जिसका निर्देशन ऑस्कर एपफेल और सेसिल बी ने किया था। डेमिल।
3. पहली 3डी फिल्म 1922 में "द पावर ऑफ़ लव" थी, जिसका निर्देशन नट जी ने किया था। डेवरीच और हैरी के. फेयरल।
4. ध्वनि के साथ पहली फिल्म 1927 में "द जैज सिंगर" थी, जिसका निर्देशन एलन क्रॉसलैंड ने किया था।
5. 2016 में बनी सबसे लंबी फिल्म "अम्बियन" थी, एंडर्स वेबर्ग द्वारा निर्देशित, 720 घंटे के रनटाइम के साथ।
6. एंथनी और जो रूसो द्वारा निर्देशित 2019 में अब तक की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म "एवेंजर्स: एंडगेम" है।
7. एक ही फिल्म द्वारा जीते गए सबसे अधिक अकादमी पुरस्कार 11 हैं, 1959 में "बेन-हुर" द्वारा, 1997 में "टाइटैनिक" और 2003 में "द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स: द रिटर्न ऑफ द किंग" द्वारा प्राप्त किए गए हैं।
8. कंप्यूटर-जनरेटेड इमेज (सीजीआई) को फीचर करने वाली पहली फिल्म 1973 में माइकल क्रिचटन द्वारा निर्देशित "वेस्टवर्ल्ड" थी।
9. गति कैप्चर तकनीक का उपयोग करने वाली पहली फिल्म 2001 में पीटर जैक्सन द्वारा निर्देशित "द लॉर्ड ऑफ द रिंग्स: द फेलोशिप ऑफ द रिंग" थी।
10. "द मैट्रिक्स" त्रयी के लिए $ 250 मिलियन के वेतन के साथ अब तक का सबसे अधिक भुगतान करने वाला अभिनेता कीनू रीव्स है,,🙏🙏
हंगरी में आयोजित 2024 शतरंज ओलंपियाड से ऐतिहासिक मुलाकात हुई। इस समारोह में मशहूर हंगेरियन-अमेरिकी ग्रैंडमास्टर सुसान पोल्गर भारत के शतरंज स्टार प्रगनानंदा और वैशाली की माँ नागलक्ष्मी से मिली।
पूर्व Women's World Chess Champion पोल्गर ने अपनी उस मुलाकात के बारे में सोशल मीडिया में लिखा। जिसमें उन्होंने नागलक्ष्मी की प्रशंसा की और भारत के लिए युवा शतरंज सितारों को बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में कहा।
सच, एक माँ का संघर्ष तब सार्थक होता है, जब उनके बच्चों की कामयाबी की वजह से लोग उन्हें सम्मान दें।
बेटा चौथी कक्षा में पढ़ रहा था, तभी शिक्षक ने पिता को बताया कि आपका बेटा बहुत बढ़िया शतरंज खेलता है। यदि इसे खेलने दिया जाय तो बहुत आगे जाएगा...
पिता बड़े डॉक्टर थे, माता भी डॉक्टर। हमारे समाज में ऐसे दम्पत्ति बच्चे के जन्म के पहले की तय कर देते हैं कि बच्चा डॉक्टर बनेगा। पर उस पिता ने रिस्क लिया, और आज के हिसाब से बहुत बड़ा रिस्क लिया। बच्चे को शतरंज खेलने में ही आनन्द आता था तो उसके जिम्मे केवल शतरंज खेलने का ही काम रहने दिया। मतलब समझ रहे हैं? बच्चे ने चौथी कक्षा के आगे पढ़ाई ही नहीं की है।
आप अपने आसपास दृष्टि दौड़ा कर देखिये, क्या ऐसा कोई पढा लिखा पिता दिखता है जो खेलने के लिए बेटे की पढ़ाई छुड़वा दे? नहीं मिलेगा। क्यों? क्योंकि हमारा लक्ष्य ही है कि बच्चा किसी तरह पढ़ लिख कर कहीं नौकर लग जाय। हम इससे उपर सोच ही नहीं पाते...
हाँ तो पिता ने बच्चे की पढ़ाई छुड़वा दी। बच्चा अच्छा खेल रहा था तो स्कूल के बाहर भी खेलने जाने लगा। अब छोटे बच्चे को अकेले तो कहीं भेज नहीं सकते, सो माता ने भी अपनी नौकरी लगभग छोड़ ही दी। उसके पीछे साये की तरह लगी रहती, उसके भोजन और सुविधा का ध्यान रखती, पसन्द-नापसंद का ध्यान रखती...
2017 में केवल ग्यारह वर्ष के उस बच्चे से किसी पत्रकार ने पूछा- आप आगे क्या करना चाहते हैं? लड़के ने बिना किसी झिझक के कहा था- मुझे सबसे कम आयु का ग्रैंडमास्टर बनना है। मुझे सबसे कम आयु का विश्व चैंपियन बनना है।
कल वह बच्चा सचमुच सबसे कम आयु का विश्वविजेता बन गया है। इस उपलब्धि में उसकी प्रतिभा, उसका समर्पण, उसे मिली सुविधाओं की भूमिका तो है ही, बस सबसे बड़ी भूमिका उसके पिता डॉ रजनीकांत के उस रिस्क की है जो उन्होंने उसकी चौथी कक्षा में पढ़ाई छुड़वा कर उठाई थी।
पुराने बूढ़े कहते थे- "लीक छोड़ कर तीन चले, शायर सिंह सपूत..." लीक पर चलने वाले अब भी दाल रोटी की व्यवस्था में लगे रह जाते हैं। राजा वही बनता है, जो रिस्क लेता है...
गुकेश दूबे को बहुत बहुत बधाई...
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
बेटा चौथी कक्षा में पढ़ रहा था, तभी शिक्षक ने पिता को बताया कि आपका बेटा बहुत बढ़िया शतरंज खेलता है। यदि इसे खेलने दिया जाय तो बहुत आगे जाएगा...
पिता बड़े डॉक्टर थे, माता भी डॉक्टर। हमारे समाज में ऐसे दम्पत्ति बच्चे के जन्म के पहले की तय कर देते हैं कि बच्चा डॉक्टर बनेगा। पर उस पिता ने रिस्क लिया, और आज के हिसाब से बहुत बड़ा रिस्क लिया। बच्चे को शतरंज खेलने में ही आनन्द आता था तो उसके जिम्मे केवल शतरंज खेलने का ही काम रहने दिया। मतलब समझ रहे हैं? बच्चे ने चौथी कक्षा के आगे पढ़ाई ही नहीं की है।
आप अपने आसपास दृष्टि दौड़ा कर देखिये, क्या ऐसा कोई पढा लिखा पिता दिखता है जो खेलने के लिए बेटे की पढ़ाई छुड़वा दे? नहीं मिलेगा। क्यों? क्योंकि हमारा लक्ष्य ही है कि बच्चा किसी तरह पढ़ लिख कर कहीं नौकर लग जाय। हम इससे उपर सोच ही नहीं पाते...
हाँ तो पिता ने बच्चे की पढ़ाई छुड़वा दी। बच्चा अच्छा खेल रहा था तो स्कूल के बाहर भी खेलने जाने लगा। अब छोटे बच्चे को अकेले तो कहीं भेज नहीं सकते, सो माता ने भी अपनी नौकरी लगभग छोड़ ही दी। उसके पीछे साये की तरह लगी रहती, उसके भोजन और सुविधा का ध्यान रखती, पसन्द-नापसंद का ध्यान रखती...
2017 में केवल ग्यारह वर्ष के उस बच्चे से किसी पत्रकार ने पूछा- आप आगे क्या करना चाहते हैं? लड़के ने बिना किसी झिझक के कहा था- मुझे सबसे कम आयु का ग्रैंडमास्टर बनना है। मुझे सबसे कम आयु का विश्व चैंपियन बनना है।
कल वह बच्चा सचमुच सबसे कम आयु का विश्वविजेता बन गया है। इस उपलब्धि में उसकी प्रतिभा, उसका समर्पण, उसे मिली सुविधाओं की भूमिका तो है ही, बस सबसे बड़ी भूमिका उसके पिता डॉ रजनीकांत के उस रिस्क की है जो उन्होंने उसकी चौथी कक्षा में पढ़ाई छुड़वा कर उठाई थी।
पुराने बूढ़े कहते थे- "लीक छोड़ कर तीन चले, शायर सिंह सपूत..." लीक पर चलने वाले अब भी दाल रोटी की व्यवस्था में लगे रह जाते हैं। राजा वही बनता है, जो रिस्क लेता है...
गुकेश दूबे को बहुत बहुत बधाई...
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
बेटा चौथी कक्षा में पढ़ रहा था, तभी शिक्षक ने पिता को बताया कि आपका बेटा बहुत बढ़िया शतरंज खेलता है। यदि इसे खेलने दिया जाय तो बहुत आगे जाएगा...
पिता बड़े डॉक्टर थे, माता भी डॉक्टर। हमारे समाज में ऐसे दम्पत्ति बच्चे के जन्म के पहले की तय कर देते हैं कि बच्चा डॉक्टर बनेगा। पर उस पिता ने रिस्क लिया, और आज के हिसाब से बहुत बड़ा रिस्क लिया। बच्चे को शतरंज खेलने में ही आनन्द आता था तो उसके जिम्मे केवल शतरंज खेलने का ही काम रहने दिया। मतलब समझ रहे हैं? बच्चे ने चौथी कक्षा के आगे पढ़ाई ही नहीं की है।
आप अपने आसपास दृष्टि दौड़ा कर देखिये, क्या ऐसा कोई पढा लिखा पिता दिखता है जो खेलने के लिए बेटे की पढ़ाई छुड़वा दे? नहीं मिलेगा। क्यों? क्योंकि हमारा लक्ष्य ही है कि बच्चा किसी तरह पढ़ लिख कर कहीं नौकर लग जाय। हम इससे उपर सोच ही नहीं पाते...
हाँ तो पिता ने बच्चे की पढ़ाई छुड़वा दी। बच्चा अच्छा खेल रहा था तो स्कूल के बाहर भी खेलने जाने लगा। अब छोटे बच्चे को अकेले तो कहीं भेज नहीं सकते, सो माता ने भी अपनी नौकरी लगभग छोड़ ही दी। उसके पीछे साये की तरह लगी रहती, उसके भोजन और सुविधा का ध्यान रखती, पसन्द-नापसंद का ध्यान रखती...
2017 में केवल ग्यारह वर्ष के उस बच्चे से किसी पत्रकार ने पूछा- आप आगे क्या करना चाहते हैं? लड़के ने बिना किसी झिझक के कहा था- मुझे सबसे कम आयु का ग्रैंडमास्टर बनना है। मुझे सबसे कम आयु का विश्व चैंपियन बनना है।
कल वह बच्चा सचमुच सबसे कम आयु का विश्वविजेता बन गया है। इस उपलब्धि में उसकी प्रतिभा, उसका समर्पण, उसे मिली सुविधाओं की भूमिका तो है ही, बस सबसे बड़ी भूमिका उसके पिता डॉ रजनीकांत के उस रिस्क की है जो उन्होंने उसकी चौथी कक्षा में पढ़ाई छुड़वा कर उठाई थी।
पुराने बूढ़े कहते थे- "लीक छोड़ कर तीन चले, शायर सिंह सपूत..." लीक पर चलने वाले अब भी दाल रोटी की व्यवस्था में लगे रह जाते हैं। राजा वही बनता है, जो रिस्क लेता है...
गुकेश दूबे को बहुत बहुत बधाई...
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।