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ध्यान, योग, साधना, अध्ययन में ही इतना मग्न रहते थे ऊपर से तीस सदस्यों के सयुक्त परिवार के मुखिया थे। तो कभी मंदिर नहीं जाते थे।
लेकिन एक बार मुझसे कहे कि हनुमानजी के दर्शन कि इच्छा है। यह मैंने नहीं पूछा कि हनुमानजी ही क्यों। हम कहे ठीक है कल मंगलवार है बिजेथुआ चलते हैं। वह कहे मंगलवार या कोई विशेष दिन नहीं, इच्छा तो आज ही है और भीड़ न हो तो और भी ठीक रहेगा।
हम कहे फिर ठीक है,
तुरंत तैयार हुये, उनको लेकर बिजेथुआ गये।
मैं बहुत बार बिजेथुआ गया हूँ। पहली बार लगा सच में मैं हनुमानजी के मंदिर में आया हूँ। वह गाड़ी से उतरे तो भावविभोर थे।
हाथ जोड़कर सिर झुकाकर आधे घँटे तक वह हनुमानजी कि मूर्ति के सामने खड़े रहे। पुजारी इस प्रतीक्षा में थे उनको कुछ चंदन, पुष्प दे चढ़ा दे लेकिन वह ऐसे ही खड़े रहे।
इतने समय तक उनको देखकर फिर मैं अंदर जाकर उनके पीछे खड़े हुये। लेकिन यह साहस नहीं हुआ कुछ बोले।
फिर वह स्वयं अपना सिर नीचे करते हुये बोले-
आज नाथ मैं काह न पावा!
अब राम कि अटूट भक्ति के आशीर्वाद साथ आज्ञा दीजिये देव।
फिर एक दम शांत होकर गाड़ी पर बैठे और चले आये।।