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रमेश घोलप, जिन्होंने बिना किसी कोचिंग के यूपीएससी पास कर दिखाया, आज IAS अधिकारी हैं। आर्थिक तंगी और शारीरिक विकलांगता के बावजूद, रमेश ने अपनी मां के साथ चूड़ियां बेचते हुए पढ़ाई जारी रखी। पिता की मृत्यु और कठिनाइयों से जूझते हुए, उन्होंने 2012 में ऑल इंडिया रैंक 287 के साथ यूपीएससी पास किया। उनका सफर संघर्ष और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है, जो बिना किसी संसाधन के भी बड़ी सफलता हासिल कर सकते हैं।
बक्शो देवी की कहानी न सिर्फ हिमाचल प्रदेश, बल्कि पूरे देश के लिए एक अद्वितीय प्रेरणा है। जब भी साहस और संघर्ष की मिसाल दी जाती है, बक्शो का नाम सबसे पहले लिया जाता है। उन्होंने न केवल अपने देश का नाम रोशन किया, बल्कि यह भी साबित किया कि कठिनाइयों के बावजूद, यदि आपका इरादा दृढ़ हो, तो सपनों को हकीकत में बदला जा सकता है।
उनकी सफलता की यात्रा तब शुरू हुई जब उन्होंने ऊना जिले के इंदिरा स्टेडियम में 5000 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। यह एक साधारण लड़की की असाधारण उपलब्धि थी। पेट में पथरी के दर्द और परिवार की आर्थिक समस्याओं के बावजूद, बक्शो ने कभी हार नहीं मानी। उनकी मां ने तमाम कठिनाइयों के बीच उनका साथ दिया और उन्हें उनके सपनों की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। बक्शो की मेहनत और संघर्ष ने न केवल उन्हें एक पदक दिलाया, बल्कि वह अन्य लड़कियों के लिए भी एक प्रेरणा बन गईं।
हालांकि, हाल ही में बक्शो ने एक दुखद घटना का सामना किया, जब उन्होंने किसी अज्ञात कारण से जहरीला पदार्थ निगल लिया। इस घटना ने उनके परिवार और उनके चाहने वालों को झकझोर दिया। उन्हें तुरंत ईसपुर अस्पताल में भर्ती कराया गया और गंभीर हालत में ऊना के क्षेत्रीय अस्पताल में रैफर कर दिया गया। उनके परिवार और शुभचिंतक उनके जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे हैं।
बक्शो देवी की कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी चुनौतियाँ क्यों न आएं, हमें कभी हार नहीं माननी चाहिए। उनके साहस, संघर्ष, और आत्मविश्वास से हम सभी को यह प्रेरणा मिलती है कि अगर हम अपने सपनों के प्रति समर्पित रहते हैं, तो कोई भी बाधा हमें रोक नहीं सकती।