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नम्रता शिरोडकर, बॉलीवुड और टॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री, अपनी खूबसूरती, सरलता और अदाकारी के लिए जानी जाती हैं। उनका करियर हिंदी सिनेमा में अपनी खास पहचान बनाने और फिर तेलुगू फिल्म इंडस्ट्री में कदम जमाने का एक बेहतरीन उदाहरण है। 1972 में जन्मी नम्रता ने मॉडलिंग की दुनिया में अपने करियर की शुरुआत की थी और मिस इंडिया 1993 का खिताब भी जीता। उनकी सादगी और सौंदर्य ने उन्हें सिनेमा की दुनिया में बड़ी पहचान दिलाई, और उन्होंने अपनी पहली फिल्म से ही दर्शकों के दिलों में जगह बना ली।

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मांसी जोशी एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व हैं, जिनकी कहानी संघर्ष, आत्मविश्वास और अटूट दृढ़ता का प्रतीक है। भारतीय पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ी मांसी जोशी ने अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति के दम पर ना सिर्फ अपने जीवन की चुनौतियों का सामना किया, बल्कि खेल जगत में भी एक नया मुकाम हासिल किया। 2011 में एक सड़क दुर्घटना में अपना पैर खोने के बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और अपने खेल के प्रति जुनून को आगे बढ़ाया।
मांसी जोशी का जन्म अहमदाबाद, गुजरात में हुआ और उन्होंने शुरुआती शिक्षा यहीं पूरी की। वह शुरू से ही खेलों में रुचि रखती थीं और अपनी पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में भी सक्रिय थीं। हालांकि, दुर्घटना के बाद उनकी जिंदगी ने एक नया मोड़ लिया। अपने सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने प्रोस्थेटिक लेग के साथ खुद को फिर से खेलों के लिए तैयार किया। उनकी मेहनत का नतीजा यह रहा कि उन्होंने 2019 में BWF पैरा-बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। उनकी यह उपलब्धि उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है जो जीवन में कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।
मांसी जोशी ने अपने खेल करियर में कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए हैं। उन्हें 2020 में टाइम्स मैगज़ीन ने 'नेक्स्ट जनरेशन लीडर' के तौर पर चुना था, जो उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन और प्रेरणादायक व्यक्तित्व का प्रमाण है। इसके अलावा, उन्हें 2022 में अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, जो किसी भी खिलाड़ी के लिए एक गर्व की बात होती है। यह सब उनकी मेहनत, समर्पण और संघर्ष की कहानी को दर्शाता है।
मांसी जोशी की कहानी केवल एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि एक योद्धा की है, जिसने हर मुश्किल को पार कर अपने सपनों को साकार किया। उनके देशभक्ति से जुड़े कई संदेश उनके खेल और जीवन से झलकते हैं। उन्होंने यह साबित किया है कि एक सच्चा खिलाड़ी वही होता है जो मैदान के बाहर भी संघर्ष करके जीत हासिल कर सके। उनका व्यक्तित्व आत्मविश्वास, साहस और धैर्य से भरा हुआ है।
उनका खेल जीवन यह बताता है कि किस प्रकार व्यक्ति अपने शारीरिक कमियों को अपनी ताकत में बदल सकता है। मांसी ने अपनी सकारात्मक सोच और मेहनत से यह साबित किया कि असली जीत शरीर की नहीं, बल्कि मन की होती है।
उनकी जिंदगी में खेल के अलावा उनके परिवार का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके परिवार ने हमेशा उनका साथ दिया और उन्हें हर कदम पर प्रोत्साहित किया। मांसी जोशी का यह सफर बताता है कि चाहे कितनी भी चुनौतियां क्यों न हों, अगर मन में दृढ़ संकल्प हो, तो किसी भी सपने को साकार किया जा सकता है।
आज मांसी लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और उनके जीवन की यह कहानी आने वाली पीढ़ियों को भी यही सिखाएगी कि हार मानना कभी विकल्प नहीं होना चाहिए।

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बनाकर "दीये मिट्टी" के ज़रा सी "आस" पाली है !
मेरी "मेहनत" ख़रीदो लोगों"मेरे घर भी "दीवाली" है.❣
आप सभी से आग्रह करता हूं इस दिवाली पर अपने भारत देश की मिट्टी से बने दीपक ही खरीदे🙏
#diwali india🙏🏻

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आप सभी से आग्रह करता हूं इस दिवाली पर अपने भारत देश की मिट्टी से बने दीपक ही खरीदे🙏
#diwali india🙏🏻

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बनाकर "दीये मिट्टी" के ज़रा सी "आस" पाली है !
मेरी "मेहनत" ख़रीदो लोगों"मेरे घर भी "दीवाली" है.❣
आप सभी से आग्रह करता हूं इस दिवाली पर अपने भारत देश की मिट्टी से बने दीपक ही खरीदे🙏
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उत्तराखंड की पहली महिला रेलवे असिस्टेंट लोको पायलेट अंजलि शाह। अंजलि पौड़ी गढ़वाल के रिखणीखाल निवासी हैं।
#अंजलि ने बचपन में ही ट्रेन को देखकर ये ठान लिया था कि वो एक दिन ट्रेन चालक बनेंगी। सबसे पहले वर्ष 2019 में अंजलि को 6 महीने की बेसिक ट्रेनिंग के बाद हरिद्वार-ऋषिकेश में बतौर असिस्टेंट लोको पायलट नियुक्त किया गया। अब बताओ कौन कहता है पहाड़ की शिक्षा व्यवस्था खराब है पहाड़ में ही पढ़कर एक बेटी लोको पायलट बन गई। फिर भी लोग शिक्षा के नाम पर पलायन करते हैं। पहाड़ के ही पड़े हुए कई युवा आज सेना में उच्च पदों पर भी कार्यरत हैं जो देश के कोने कोने में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
#uttarakhand

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उत्तराखंड की पहली महिला रेलवे असिस्टेंट लोको पायलेट अंजलि शाह। अंजलि पौड़ी गढ़वाल के रिखणीखाल निवासी हैं।
#अंजलि ने बचपन में ही ट्रेन को देखकर ये ठान लिया था कि वो एक दिन ट्रेन चालक बनेंगी। सबसे पहले वर्ष 2019 में अंजलि को 6 महीने की बेसिक ट्रेनिंग के बाद हरिद्वार-ऋषिकेश में बतौर असिस्टेंट लोको पायलट नियुक्त किया गया। अब बताओ कौन कहता है पहाड़ की शिक्षा व्यवस्था खराब है पहाड़ में ही पढ़कर एक बेटी लोको पायलट बन गई। फिर भी लोग शिक्षा के नाम पर पलायन करते हैं। पहाड़ के ही पड़े हुए कई युवा आज सेना में उच्च पदों पर भी कार्यरत हैं जो देश के कोने कोने में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
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उत्तराखंड की पहली महिला रेलवे असिस्टेंट लोको पायलेट अंजलि शाह। अंजलि पौड़ी गढ़वाल के रिखणीखाल निवासी हैं।
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उत्तराखंड की पहली महिला रेलवे असिस्टेंट लोको पायलेट अंजलि शाह। अंजलि पौड़ी गढ़वाल के रिखणीखाल निवासी हैं।
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