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सीएम भगवंत मान द्वारा पेश किया गया अनादर का बिल
प्रताप सिंह बाजवा ने बिल पर चर्चा करने की अपील की
#partapsinghbajwa #cmbhagwantmann #punjabnews
एक मेरी बेटी की करुण पुकार, उसने वीडियो के जरिए डाली है। चमोली जिले की छात्रा हैं तनीषा, उसने एक बरसाती नाला कहूं या गधेरा कहूं, उसके तेज बहाव और उस पर लकड़ी के बने हुये आस्थाई पुल का जिक्र कर कहा है "कैसे जाएं स्कूल? प्लीज पुल बनवा दीजिए"!
मुझे विश्वास है कि तंत्र की तंद्रा टूटेगी और वह तनीषा की करुण पुकार को सुनेंगे।
#chamoli #uttarakhand
सातवीं कक्षा में पढ़ने वाला 12 वर्षीय अखिल प्रताप सिंह उस दिन बेहद खुश था। पूरे एक महीने बाद वह स्कूल जा रहा था। दोस्तों से मिलने की खुशी उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी। सुबह मां से बोला कि मम्मी 10 की जगह 20 का नोट दो।
स्कूल से लौटकर 10 वापस कर दूंगा। मां ने हंसते हुए उसे 20 रुपए का नोट थमा दिया। किसे पता था कि ये उसकी मां से आखिरी जिद थी- आखिरी बार मां के हाथ से कुछ लेने की।
बाराबंकी जिले में देवा कोतवाली क्षेत्र के बिशुनपुर गहरी लोहनिया गांव के रहने वाले जितेंद्र प्रताप सिंह का अखिल इकलौता बेटा था। एक प्राइवेट स्कूल सेंट एंथोनी इंटर कॉलेज बाराबंकी में पढ़ता था। पहली जुलाई को स्कूल खुला। पिता ने खुद कार से उसे स्कूल छोड़ा। अखिल स्कूल गेट पर पहुंचा, लेकिन अचानक धराशायी हो गया। पिता ने तुरंत उसे गोद में उठाया, मदद के लिए चीखते रहे, लेकिन तब तक सब कुछ खत्म हो चुका था।
मां ममता सिंह जो एक निजी विद्यालय में शिक्षिका हैं, आज भी उस 20 के नोट को देखकर रो पड़ती हैं। जब बेटे की मौत के बाद स्कूल बैग घर लाया गया तो उसी तरह तह किया हुआ 20 का नोट उसमें रखा मिला। मां की चीख गूंज उठी कि मेरा बेटा तो एक रुपए भी खर्च नहीं कर पाया। ममता सिंह की आंखें अब सूखती नहीं। हर बार जब स्कूल ड्रेस, बैग या किताबें देखती हैं तो उनके भीतर का सूनापन और गहराता जाता है। पिता जितेंद्र प्रताप सिंह आज भी समझ नहीं पा रहे कि उनका स्वस्थ और हंसमुख बेटा अचानक कैसे चल बसा...
मन भावन, अतिपावन,ये सावन आया है
धरा , व्योम में फिर से घनघोर महोत्सव छाया है।
हर हर, बम बम, बम बम,हर हर तिनका तिनका बोले है
कंकर कंकर रम गए शंकर,दिल में बस गए भोले है
सावन आने की आस बढ़े,तेरे भक्तो का विश्वास बढ़े
भांग,धतूरा और बेलपत्र मंदिर में तेरे खूब चढ़े
मैं अज्ञानी,अबोध शिव मुझ पर भी उपकार करो
दर्शन देकर हे आशुतोष मुझे भवसागर के पार करो
जय नीलकंठ,जय महादेव,जयमहाकाल, जय शिव शंकर
तुम कृपा जरा मुझ पर कर दो,मैं भी आऊं कावड़ लेकर
तेरा नाम जपें,तेरा ध्यान धरें,तेरी महिमा का गुणगान करे
तेरी दयादृष्टि जब हो जाए, तू हर मुश्किल आसान करे
तेरे चरण शरण में पड़ा रहूं , मैं नमन करूं बस नाथ तुझे
तेरे दर के सिवा न शीश झुके, बस इतना दो आशीष मुझे
-दीपक शुक्ला 🌟💫🌈🎉🙏
बाप बाप होता है पिता दीपक को सैल्यूट
“पिता को मत दोष दो, वो अंत तक पिता ही रहा”
जिसे आज लोग एक हत्याकांड कह रहे हैं,
उसकी जड़ों में एक पिता का टूटा हुआ दिल है…
एक ऐसा पिता, जिसने अपनी बेटी को आसमान की ऊँचाइयाँ छूने के लिए सब कुछ समर्पित कर दिया।
वो कोई सामान्य पिता नहीं था –
करोड़ों की संपत्ति का मालिक है।।
अपनी इकलौती बेटी को टेनिस चैंपियन बनाने के लिए उसने करोड़ों रुपए झोंक दिए।
विदेशों में ट्रेनिंग दिलवाई, कोच बदले, अकादमी खड़ी की। 2 लाख का तो सिर्फ़ टेनिस का रैकेट दिलाया।
जिस बेटी के लिए उसने सपने देखे, वही बेटी जब भटक गई – तो पिता के मन में दर्द, असहायता और शर्म की आग जल उठी।
लोग अफवाह फैला रहे हैं कि तीन महीने पहले शुरू हुई एकेडमी से बेटी को इतनी कमाई हो रही थी कि पिता हीनभावना में आ गया।
सच तो यह है – उस पिता को कभी पैसों की चिंता ही नहीं थी, उसे चिंता थी बेटी के चरित्र की।
वो बेटी अब्दुल जैसे चरित्रहीन मुस्लिम लड़के के साथ “संबंध” में थी।
उस लड़के के चक्कर में टेनिस खेलना तक छोड़ दिया था।
पिता महीनों से मना कर रहा था, समझा रहा था, रोक रहा था।
पर बेटी अंधी थी… संस्कारों से कट चुकी थी…
मजहबी वातावरण में डूब चुकी थी जहाँ उसकी पहचान मिट रही थी।
पिता ने जो किया, वो कानून के दायरे में भले अपराध हो — पर एक टूटे हुए दिल की पुकार, एक असहाय योद्धा की आखिरी कोशिश थी।
वो पिता हत्यारा नहीं है — वो बस अपनी बेटी को तबाही के रास्ते से खींच लाना चाहता था। पर जब हर कोशिश नाकाम हो गई, तो वो फट पड़ा – जैसे कोई ज्वालामुखी वर्षों की पीड़ा के बाद फटता है।
आज मीडिया कह रहा है – “बेटी की हत्या”
पर सच ये है – वो सिर्फ एक चरित्रवान पिता था, जो अपनी चरित्रहीन बेटी को जिहादियों का खिलौना बनते और मुल्लों के हाथों मिटते हुए देख नहीं सका
ऐसे पिता को ⚔️⛳✅ 21 तोपों को सलामी
सैल्यूट 🫡 साधुवाद ♥️ 🥰
जय हिन्द जय भारत 🇮🇳❤️