#arshadnadeem 🙏💐
खेल की ताकत 👏👏
80 करोड़ गलत लिखा गया है। भाई के पास 8000 नैजा खरीदने के पैसे नहीं थे। बहुत ही गरीब घर के खिलाड़ी है जिसने गोल्ड मेडल जीतकर अपने माता-पिता को नया जीवन दिया।

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खेल की ताकत 👏👏
80 करोड़ गलत लिखा गया है। भाई के पास 8000 नैजा खरीदने के पैसे नहीं थे। बहुत ही गरीब घर के खिलाड़ी है जिसने गोल्ड मेडल जीतकर अपने माता-पिता को नया जीवन दिया।
विश्व के सबसे बड़े राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रव्यापी सदस्यता अभियान के अंतर्गत अपनी सदस्यता का नवीनीकरण कर गौरवान्वित हूँ।
आदरणीय प्रधानमंत्री श्री Narendra Modi जी के कर-कमलों से आरंभ यह अभियान देश के 'हर गाँव- हर घर- हर व्यक्ति' तक पहुंचेगा और सभी को 'विकसित भारत' के हमारे संकल्प से जोड़ेगा।
आप सभी से आग्रह है कि टोल-फ्री नंबर - 8800002024 पर मिस्ड-कॉल अथवा #namoapp के माध्यम से भाजपा की सदस्यता ग्रहण करें और 'अंत्योदय' के संकल्प और विकसित भारत के हमारे ध्येय को साकार करने में अपनी भूमिका निभाएं।
बोलीवुड अभिनेता एक ओर जहां शराब, बीयर, बीड़ी, गुटका, कोडोम बेच रहे हैं वही साउथ अभिनेता समाज सेवा में बढ़ चढ़कर आगे आ रहे हैं! फिल्मों में इतना पैसा मिलने के बावजूद भी बॉलीवुड के अभिनेता ऐड कर पैसा कमाने में लगे हैं ओर हमारे युवा पीढ़ी को अंधकार की ओर धकेल रहे हैं आपकी इस बारे में क्या राय है?
आँखों की रौशनी जाने के बाद भी ओझल न हुआ लक्ष्य
अक्सर जब जिंदगी में चुनौतियां आती हैं, तो लोग हार मान लेते हैं, लेकिन कुछ लोग होते हैं जो इन चुनौतियों को अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने का माध्यम बना लेते हैं। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है भारत के पहले नेत्रहीन पैरालिंपियन अंकुर धामा की, जिन्होंने अपने अडिग हौसले से न केवल खुद को, बल्कि पूरे देश को गर्व महसूस कराया। 🎖️
अंकुर धामा, जो केवल छह साल की उम्र में होली के रंगों के संक्रमण के कारण अपनी आंखों की रोशनी खो बैठे थे, ने कभी भी अपने लक्ष्य से नज़र नहीं हटाई। यह हादसा उनके लिए जीवन का एक बड़ा मोड़ था, लेकिन उन्होंने इसे अपने सपनों को साकार करने की प्रेरणा बना लिया। अपनी दृष्टि खोने के बाद, अंकुर दिल्ली चले आए और जेपीएम सीनियर सेकेंडरी स्कूल फॉर द ब्लाइंड में अपनी शिक्षा प्राप्त की। वहां से, उनका सफर सेंट स्टीफंस कॉलेज में इतिहास की पढ़ाई तक पहुंचा, लेकिन उनकी दिलचस्पी हमेशा खेलों में रही। 🏃♂️
अंकुर ने अपने खेल करियर की शुरुआत 2014 के एशियाई पैरा खेलों से की, जहां उन्होंने एक रजत और दो कांस्य पदक जीते। उनकी प्रतिभा और दृढ़ संकल्प ने उन्हें भारतीय पैरा-एथलीट्स की श्रेणी में शीर्ष पर पहुंचा दिया। हालांकि, 2016 के पैरालिंपिक में उन्हें चोट लग गई थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने सपनों की ओर बढ़ते रहे। 💪