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उत्तराखंड की पावन भूमि पर गोलू देवता के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गोलू देवता का घोड़ाखाल मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, न्याय और भक्ति का जीवंत प्रमाण है। जब हमने दिल्ली से इस पवित्र स्थल की यात्रा प्रारंभ की, तो मन में श्रद्धा और उत्साह का अनोखा संगम था। रास्ते भर पहाड़ों की सुंदरता, ठंडी हवा और घुमावदार सड़कों ने यात्रा को और भी दिव्य बना दिया। भवाली पहुँचकर जब हमने घोड़ाखाल मंदिर की ओर कदम बढ़ाए, तो मन में एक अलग ही ऊर्जा का संचार होने लगा।
मंदिर के समीप पहुँचते ही दूर से हजारों घंटियों की गूंज सुनाई देने लगी, जो श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का प्रतीक थी। जैसे ही हमने मंदिर में प्रवेश किया, वहाँ लगे करोड़ों घंटे देखकर यह स्पष्ट हो गया कि गोलू देवता की महिमा केवल कहानियों तक सीमित नहीं, बल्कि यहाँ आने वाले हर भक्त ने उनके न्याय और कृपा का साक्षात अनुभव किया है। हर घंटी के पीछे एक कहानी थी, एक मन्नत थी, एक विश्वास था। भक्तगण अपनी मनोकामनाएँ पत्रों में लिखकर यहाँ टाँगते हैं और जब वह पूरी हो जाती है, तो घंटी बाँधकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह दृश्य इतना भावुक कर देने वाला था कि एक क्षण को मन मौन हो गया और आँखों में भक्ति के अश्रु छलक आए। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो स्वयं गोलू देवता अपनी उपस्थिति से हमें आशीर्वाद दे रहे हों।
गोलू देवता को उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में विशेष रूप से न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। वे भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करने और न्याय प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध हैं। गोलू देवता को भगवान शिव का अवतार माना जाता है और कुछ मान्यताओं के अनुसार वे भगवान भैरव या गोरखनाथ के शिष्य भी माने जाते हैं।
गोलू देवता से जुड़ी कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। प्रमुख कथा के अनुसार, वे चंद वंश के एक राजकुमार थे, जो अपनी न्यायप्रियता और परोपकार के लिए प्रसिद्ध थे। एक अन्य कथा के अनुसार, वे कटारमल सूर्य मंदिर के निर्माता राजा झालराई के पुत्र थे।
कहा जाता है कि एक बार एक अन्य राजा ने गोलू देवता के पिता की हत्या कर दी और उनके राज्य पर कब्जा कर लिया। तब गोलू देवता ने न्याय के लिए संघर्ष किया और अपने पराक्रम से अन्याय को समाप्त कर दिया। उनकी न्यायप्रियता और ईश्वर में गहरी आस्था के कारण लोग उन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजने लगे।
गोलू देवता का सबसे प्रसिद्ध मंदिर घोड़ाखाल (भवाली, नैनीताल) में स्थित है। यहाँ आने वाले भक्त अपनी समस्याओं और मनोकामनाओं को पत्र में लिखकर मंदिर में टांगते हैं। जब उनकी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं, तो वे धन्यवाद स्वरूप मंदिर में घंटे चढ़ाते हैं। इसीलिए यहाँ हजारों-लाखों घंटे बंधे हुए दिखाई देते हैं, जो भक्तों की श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक हैं।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में भी गोलू देवता के कई मंदिर हैं। माना जाता है कि यदि किसी को न्याय नहीं मिल रहा हो, तो वह गोलू देवता के दरबार में अपनी फरियाद लगाकर न्याय प्राप्त कर सकता है।
भक्त अपनी समस्या या मनोकामना को पत्र में लिखकर मंदिर में चढ़ाते हैं। जब मनोकामना पूर्ण होती है, तो श्रद्धालु यहाँ घंटी बांधकर आभार व्यक्त करते हैं। भक्त चावल, गुड़, और मिठाई चढ़ाकर पूजा करते हैं। माना जाता है कि गोलू देवता सिर्फ उन्हीं की मनोकामना पूरी करते हैं, जो सत्यवादी और न्यायप्रिय होते हैं।
गोलू देवता के विषय में कहा जाता है कि वे अपने भक्तों को तुरंत न्याय प्रदान करते हैं। कई भक्तों का मानना है कि यदि कोई इंसान किसी अन्याय का शिकार हुआ हो और वह यहाँ आकर प्रार्थना करे, तो उसे अवश्य न्याय मिलेगा। कई लोग यहाँ आकर अपनी कानूनी समस्याओं के समाधान के लिए भी प्रार्थना करते हैं।
गोलू देवता केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध हैं। उनकी न्यायप्रियता और श्रद्धालुओं की अटूट भक्ति के कारण उनके मंदिर में हमेशा भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
मंदिर में दर्शन कर, प्रार्थना कर और गोलू देवता के न्यायकारी रूप की अनुभूति कर, हमारा अगला पड़ाव था बाबा नीम करोली महाराज का कैंची धाम।
यदि आपको यह जानकारी ज्ञानवर्धक लगी, तो इसे अपने मित्रों और अन्य समूहों में अवश्य साझा करें।
श्रीहरि चरणों का दास - सुनील मिश्रा
🌞🚩🚩 " ll जय श्री राम ll " 🚩🚩🌞
🌞🚩🚩 " ll जय बजरंग बली ll " 🚩🚩🌞
उत्तराखंड की पावन भूमि पर गोलू देवता के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गोलू देवता का घोड़ाखाल मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, न्याय और भक्ति का जीवंत प्रमाण है। जब हमने दिल्ली से इस पवित्र स्थल की यात्रा प्रारंभ की, तो मन में श्रद्धा और उत्साह का अनोखा संगम था। रास्ते भर पहाड़ों की सुंदरता, ठंडी हवा और घुमावदार सड़कों ने यात्रा को और भी दिव्य बना दिया। भवाली पहुँचकर जब हमने घोड़ाखाल मंदिर की ओर कदम बढ़ाए, तो मन में एक अलग ही ऊर्जा का संचार होने लगा।
मंदिर के समीप पहुँचते ही दूर से हजारों घंटियों की गूंज सुनाई देने लगी, जो श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का प्रतीक थी। जैसे ही हमने मंदिर में प्रवेश किया, वहाँ लगे करोड़ों घंटे देखकर यह स्पष्ट हो गया कि गोलू देवता की महिमा केवल कहानियों तक सीमित नहीं, बल्कि यहाँ आने वाले हर भक्त ने उनके न्याय और कृपा का साक्षात अनुभव किया है। हर घंटी के पीछे एक कहानी थी, एक मन्नत थी, एक विश्वास था। भक्तगण अपनी मनोकामनाएँ पत्रों में लिखकर यहाँ टाँगते हैं और जब वह पूरी हो जाती है, तो घंटी बाँधकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह दृश्य इतना भावुक कर देने वाला था कि एक क्षण को मन मौन हो गया और आँखों में भक्ति के अश्रु छलक आए। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो स्वयं गोलू देवता अपनी उपस्थिति से हमें आशीर्वाद दे रहे हों।
गोलू देवता को उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में विशेष रूप से न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। वे भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करने और न्याय प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध हैं। गोलू देवता को भगवान शिव का अवतार माना जाता है और कुछ मान्यताओं के अनुसार वे भगवान भैरव या गोरखनाथ के शिष्य भी माने जाते हैं।
गोलू देवता से जुड़ी कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। प्रमुख कथा के अनुसार, वे चंद वंश के एक राजकुमार थे, जो अपनी न्यायप्रियता और परोपकार के लिए प्रसिद्ध थे। एक अन्य कथा के अनुसार, वे कटारमल सूर्य मंदिर के निर्माता राजा झालराई के पुत्र थे।
कहा जाता है कि एक बार एक अन्य राजा ने गोलू देवता के पिता की हत्या कर दी और उनके राज्य पर कब्जा कर लिया। तब गोलू देवता ने न्याय के लिए संघर्ष किया और अपने पराक्रम से अन्याय को समाप्त कर दिया। उनकी न्यायप्रियता और ईश्वर में गहरी आस्था के कारण लोग उन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजने लगे।
गोलू देवता का सबसे प्रसिद्ध मंदिर घोड़ाखाल (भवाली, नैनीताल) में स्थित है। यहाँ आने वाले भक्त अपनी समस्याओं और मनोकामनाओं को पत्र में लिखकर मंदिर में टांगते हैं। जब उनकी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं, तो वे धन्यवाद स्वरूप मंदिर में घंटे चढ़ाते हैं। इसीलिए यहाँ हजारों-लाखों घंटे बंधे हुए दिखाई देते हैं, जो भक्तों की श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक हैं।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में भी गोलू देवता के कई मंदिर हैं। माना जाता है कि यदि किसी को न्याय नहीं मिल रहा हो, तो वह गोलू देवता के दरबार में अपनी फरियाद लगाकर न्याय प्राप्त कर सकता है।
भक्त अपनी समस्या या मनोकामना को पत्र में लिखकर मंदिर में चढ़ाते हैं। जब मनोकामना पूर्ण होती है, तो श्रद्धालु यहाँ घंटी बांधकर आभार व्यक्त करते हैं। भक्त चावल, गुड़, और मिठाई चढ़ाकर पूजा करते हैं। माना जाता है कि गोलू देवता सिर्फ उन्हीं की मनोकामना पूरी करते हैं, जो सत्यवादी और न्यायप्रिय होते हैं।
गोलू देवता के विषय में कहा जाता है कि वे अपने भक्तों को तुरंत न्याय प्रदान करते हैं। कई भक्तों का मानना है कि यदि कोई इंसान किसी अन्याय का शिकार हुआ हो और वह यहाँ आकर प्रार्थना करे, तो उसे अवश्य न्याय मिलेगा। कई लोग यहाँ आकर अपनी कानूनी समस्याओं के समाधान के लिए भी प्रार्थना करते हैं।
गोलू देवता केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध हैं। उनकी न्यायप्रियता और श्रद्धालुओं की अटूट भक्ति के कारण उनके मंदिर में हमेशा भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
मंदिर में दर्शन कर, प्रार्थना कर और गोलू देवता के न्यायकारी रूप की अनुभूति कर, हमारा अगला पड़ाव था बाबा नीम करोली महाराज का कैंची धाम।
यदि आपको यह जानकारी ज्ञानवर्धक लगी, तो इसे अपने मित्रों और अन्य समूहों में अवश्य साझा करें।
श्रीहरि चरणों का दास - सुनील मिश्रा
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उत्तराखंड की पावन भूमि पर गोलू देवता के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ। गोलू देवता का घोड़ाखाल मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, न्याय और भक्ति का जीवंत प्रमाण है। जब हमने दिल्ली से इस पवित्र स्थल की यात्रा प्रारंभ की, तो मन में श्रद्धा और उत्साह का अनोखा संगम था। रास्ते भर पहाड़ों की सुंदरता, ठंडी हवा और घुमावदार सड़कों ने यात्रा को और भी दिव्य बना दिया। भवाली पहुँचकर जब हमने घोड़ाखाल मंदिर की ओर कदम बढ़ाए, तो मन में एक अलग ही ऊर्जा का संचार होने लगा।
मंदिर के समीप पहुँचते ही दूर से हजारों घंटियों की गूंज सुनाई देने लगी, जो श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का प्रतीक थी। जैसे ही हमने मंदिर में प्रवेश किया, वहाँ लगे करोड़ों घंटे देखकर यह स्पष्ट हो गया कि गोलू देवता की महिमा केवल कहानियों तक सीमित नहीं, बल्कि यहाँ आने वाले हर भक्त ने उनके न्याय और कृपा का साक्षात अनुभव किया है। हर घंटी के पीछे एक कहानी थी, एक मन्नत थी, एक विश्वास था। भक्तगण अपनी मनोकामनाएँ पत्रों में लिखकर यहाँ टाँगते हैं और जब वह पूरी हो जाती है, तो घंटी बाँधकर अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। यह दृश्य इतना भावुक कर देने वाला था कि एक क्षण को मन मौन हो गया और आँखों में भक्ति के अश्रु छलक आए। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो स्वयं गोलू देवता अपनी उपस्थिति से हमें आशीर्वाद दे रहे हों।
गोलू देवता को उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में विशेष रूप से न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। वे भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करने और न्याय प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध हैं। गोलू देवता को भगवान शिव का अवतार माना जाता है और कुछ मान्यताओं के अनुसार वे भगवान भैरव या गोरखनाथ के शिष्य भी माने जाते हैं।
गोलू देवता से जुड़ी कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं। प्रमुख कथा के अनुसार, वे चंद वंश के एक राजकुमार थे, जो अपनी न्यायप्रियता और परोपकार के लिए प्रसिद्ध थे। एक अन्य कथा के अनुसार, वे कटारमल सूर्य मंदिर के निर्माता राजा झालराई के पुत्र थे।
कहा जाता है कि एक बार एक अन्य राजा ने गोलू देवता के पिता की हत्या कर दी और उनके राज्य पर कब्जा कर लिया। तब गोलू देवता ने न्याय के लिए संघर्ष किया और अपने पराक्रम से अन्याय को समाप्त कर दिया। उनकी न्यायप्रियता और ईश्वर में गहरी आस्था के कारण लोग उन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजने लगे।
गोलू देवता का सबसे प्रसिद्ध मंदिर घोड़ाखाल (भवाली, नैनीताल) में स्थित है। यहाँ आने वाले भक्त अपनी समस्याओं और मनोकामनाओं को पत्र में लिखकर मंदिर में टांगते हैं। जब उनकी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं, तो वे धन्यवाद स्वरूप मंदिर में घंटे चढ़ाते हैं। इसीलिए यहाँ हजारों-लाखों घंटे बंधे हुए दिखाई देते हैं, जो भक्तों की श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक हैं।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों में भी गोलू देवता के कई मंदिर हैं। माना जाता है कि यदि किसी को न्याय नहीं मिल रहा हो, तो वह गोलू देवता के दरबार में अपनी फरियाद लगाकर न्याय प्राप्त कर सकता है।
भक्त अपनी समस्या या मनोकामना को पत्र में लिखकर मंदिर में चढ़ाते हैं। जब मनोकामना पूर्ण होती है, तो श्रद्धालु यहाँ घंटी बांधकर आभार व्यक्त करते हैं। भक्त चावल, गुड़, और मिठाई चढ़ाकर पूजा करते हैं। माना जाता है कि गोलू देवता सिर्फ उन्हीं की मनोकामना पूरी करते हैं, जो सत्यवादी और न्यायप्रिय होते हैं।
गोलू देवता के विषय में कहा जाता है कि वे अपने भक्तों को तुरंत न्याय प्रदान करते हैं। कई भक्तों का मानना है कि यदि कोई इंसान किसी अन्याय का शिकार हुआ हो और वह यहाँ आकर प्रार्थना करे, तो उसे अवश्य न्याय मिलेगा। कई लोग यहाँ आकर अपनी कानूनी समस्याओं के समाधान के लिए भी प्रार्थना करते हैं।
गोलू देवता केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध हैं। उनकी न्यायप्रियता और श्रद्धालुओं की अटूट भक्ति के कारण उनके मंदिर में हमेशा भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
मंदिर में दर्शन कर, प्रार्थना कर और गोलू देवता के न्यायकारी रूप की अनुभूति कर, हमारा अगला पड़ाव था बाबा नीम करोली महाराज का कैंची धाम।
यदि आपको यह जानकारी ज्ञानवर्धक लगी, तो इसे अपने मित्रों और अन्य समूहों में अवश्य साझा करें।
श्रीहरि चरणों का दास - सुनील मिश्रा
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आज चैत्र नवरात्रि के पावन अवसर पर स्वरूप नगर स्थित
प्रदीप कुमार सविता, रवि प्रकाश,राज उप्पल के नवीन प्रतिष्ठान होम इंटीरियर शोरूम "liv space" का मुख्य अतिथि के रूप में फीता काट कर उद्घाटन किया...
नवरात्रि शक्ति, नए आरंभ का प्रतीक है, और इस पवित्र घड़ी मे नए व्यापार की शुरुआत करना अत्यंत हर्ष और सौभाग्य की बात है।
यहां मुख्य रूप से संगीत तिवारी,अंकित पाल, उज्ज्वल गुप्ता, सिमरन बदलानी, शैलेंद्र कुमार, अंकित श्रीवास्तव, अजीत आदि मौजूद रहे…
𝐏𝐫𝐨𝐩𝐚𝐠𝐚𝐧𝐝𝐚: The Waqf Amendment Bill is discriminatory, targeting the Muslim community. ❌
𝐑𝐄𝐀𝐋𝐈𝐓𝐘: The #waqfamendmentbill aims to improve the administration and management of Waqf properties across India, ensuring transparency and efficiency.