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बांस की कोठी!
मोरे पिछवरवा घन बांसवरिया ,
कोयलर लिही है बसेर।
सोवत राजा उठी कय बैठि जायँ,
अनकंय चिरैया कय बोलि।।
हमारे यहां विवाह के एक दिन पहले यानी भत्तवान के दिन एकदम सुबह सुबह सभी स्त्रियां मिलकर भोरहरी न्योतती (गीत गाती) हैं।
ये उसी गीत का अंश है। इस गीत के बाद कुल के जितने लोग गोलोक वासी हो गए हैं उन सभी पितरों को निमंत्रण दिया जाता है।
बांस बहुत एक बहुउपयोगी चीज है। ये घास प्रजाति का माना जाता है। हर गांव में आपको एक दो बांस की कोठी जरूर मिलेगी।
बंसवारी के नीचे से अगर राह गई है तो उधर से गुजर कर देखिए।
ठंडक भरी एकदम घनी छाया और उस के साथ अनगिनत चिड़ियों का कलरव ऐसा परिवेश बना देता है कि जी करता है कि बस अब यहीं ठहर जाएं।
शुभ अशुभ सारे कार्यों में बांस काम आता है।
कांटहवा बांस, बंबू बांस, लाठीहवा बांस जैसी इसकी कई प्रजाति होती हैं और अब तो लोग इतने बड़े बड़े बांस को भी ठिगना करके बोनसाई रूप में घरों में, ऑफिस में रखकर शोभा बढ़ाते हैं।
इस बांस की बनी लग्गी से आने वाले कुछ दिनों में आम तोड़े जाएंगे।
जब गांव में सबके यहां नया नया पक्का मकान बनना शुरू हुआ था तब बांस की बनी सीढ़ियों पर चढ़कर छत पर जाया जाता था।
बांस की बनी बंसखटी चारपाई अब बगीचे में बिछाई जाएगी।
हमारे त्यौहार और भ्रामक खबरें!
कई सालों से देख रही हूं कि होली, दीपावली, नागपंचमी जैसे त्यौहार आते ही नकली मावे का खौफ हमारे दिल में बैठाने का प्रयास किया जाता है और हम इस खौफ से प्रभावित भी हो रहे हैं।
नकली खोए के भय से हमारे त्यौहार, हमारी परंपरा कहीं न कहीं प्रभावित हो रही है फीकी पड़ जाती है।
लोगो ने होली खेलना छोड़ दिया कहते हैं कि एलर्जी होती है।
गुझिया बनाना छोड़ दिया कहते हैं कि मावा नकली है।
मेरा सिर्फ इतना कहना है कि जिन शहरों में रात दिन इतनी धूल, मिट्टी, धुएं इत्यादि प्रदूषण से आप जूझते हो तब एलर्जी नही होती है तो होली के रंग, अबीर से क्यों डरना भला!
वर्ष भर सड़े मैदे से बनी सड़क किनारे वाले ठेले से फास्ट फूड खाते हैं, टॉयलेट क्लीनर जितना खतरनाक कोल्डड्रिंक पीते हैं तब क्या आपका पेट सुरक्षित रहता है?
फिर एक दिन अगर नकली मावा ही सही दो चार गुझिया खा लेंगे तो कुछ नहीं होगा।
इसलिए मन में भय बैठाकर त्यौहारों के रंग फीका न करें।
जी भरकर सारे पकवान बनाए, खाए और खिलाए हंसी खुशी खूब जोश से सारे त्यौहार मनाए।
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