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बहुत सुंदर सोच है! 🌿
#हेमंत_पांडे जी जैसे बड़े कलाकार का गाँव जाकर खेतों में काम करना वास्तव में प्रेरणादायक है। इससे गाँव छोड़कर शहरों में पलायन करने वाले लोगों को यह संदेश मिलता है कि हमारी असली जड़ें गाँव और मिट्टी से ही जुड़ी हैं।
हमारे #उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध कलाकार #हेमंत_पांडे जी ने यह दिखा दिया है कि चाहे इंसान कितनी भी ऊँचाइयाँ क्यों न छू ले, अपनी मिट्टी और गाँव के प्रति कर्तव्य निभाना सबसे बड़ा सम्मान है। उन्होंने गाँव लौटकर खेतों में काम करके यह संदेश दिया है कि खेती सिर्फ रोज़गार नहीं बल्कि हमारी पहचान और संस्कार है।
जो लोग गाँव छोड़कर शहरों में चले गए हैं, उनके लिए यह एक प्रेरणा है कि जहाँ भी हों, अपनी जड़ों को न भूलें। अगर हम सब मिलकर अपने गाँव को संभालेंगे, खेती-बाड़ी और स्थानीय संसाधनों को बढ़ावा देंगे, तो पलायन की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।
आइए, हम सब मिलकर अपने गाँव को आत्मनिर्भर और खुशहाल बनाएं।
मिट्टी से जुड़ना ही असली उन्नति है। 🌱
मां दुर्गा का चतुर्थ स्वरूप ‘ब्रह्मचारिणी’
आज 26 सितम्बर को शारदीय नवरात्रि का चतुर्थ दिन
नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है। अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा अण्ड यानी ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि नहीं थी, चारों तरफ अंधकार ही अंधकार था, तब इसी देवी ने अपने ईषत् हास्य से ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां कुष्मांडा की पूजा करने से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।
घर-घर जाकर खाना बनाने वाली हीना दीदी, स्वादिष्ट और Unique Dishes बनाकर Internet पर सबका दिल जीत रही हैं; और हमें सिखा रही हैं कि कोई काम छोटा नहीं होता।
और किसी भी काम को पूरी ईमानदारी और शिद्दत से किया जाए तो वो आपको इज्ज़त और सुकून दोनों देता है, चाहे वो काम आपको मजबूरी में ही क्यों न करना पड़ा हो!
मुंबई की रहने वाली हीना अली ने भी मजबूरी में ही Cook का काम करना शुरू किया था। बचपन से घर में बेहद गरीबी देखी, और माता-पिता का हाथ बंटाने के लिए नन्ही हीना ने स्कूल से आने के बाद लोगों के घरों में जाकर काम करना शुरू कर दिया।
7वीं के बाद पढ़ाई भी छूट गई। दिन-रात मेहनत करके वह बड़ी हुईं।
शादी के बाद चाहती तो घर बैठ सकती थीं, पर हीना के पति ऑटो चलाते हैं, और बेटियों की अच्छी शिक्षा के लिए दोनों का काम करना ज़रूरी था। इसलिए हीना ने अपना काम नहीं छोड़ा।
हाँ, लोगों ने कहा- “ये कोई इज़्ज़त का काम नहीं!”
लेकिन यही हीना की रोज़ी-रोटी थी। इसलिए उन्होंने अपने काम को कभी छोटा नहीं समझा
और घर-घर जाकर बहुत प्यार से खाना बनाती रहीं।
एक दिन उनकी एक मैडम ने उनके हुनर को देखते हुए उन्हें Social Media पर Videos बनाने के लिए कहा। काफ़ी हिचक के बाद हीना ने अपनी बेटियों से Instagram चलाना सीखा और अपनी Recipes Videos के ज़रिए लोगों को दिखानी लगीं।
उनका काम और उनका खाना, लोगों को इतना पसंद आया कि आज उन्हें लाखों लोग Follow करते हैं, जिनमें कुछ Celebrities भी हैं।
"बहुत ख़ुशी होती है कि मेरा काम ही मेरी पहचान है।"
जिस काम को लोग छोटा कहते थे आज वही हीना की कमाई का ज़रिया ही नहीं; उनकी पहचान और सम्मान भी बन गया है!
वह कहती हैं- "हमारे काम से हमे कभी शर्माना नहीं चाहिए, जिससे आपका घर चलता है.. वही आपकी पहचान है!"
भारत की पैराएकल्टिक्स स्टार दीप्ति जीवनजी ने 27 सितंबर 2025 को वर्ल्ड चैंपियनशिप में 400 मीटर T20 में रजत जीतकर पूरे देश का नाम रोशन कर दिया।
यह उनकी व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है और भारत के लिए गर्व का पल है।
एक दिहाड़ी मजदुर पिता की बेटी और भारतीय Para Athlete, दीप्ति जीवनजी को अक्सर लोग 'पिची' (पागल) और 'कोठी' (बंदर) कहकर ताने मारते थे। लेकिन आज दीप्ति, Paralympic में भारत का नाम रोशन कर रहीं है और पूरे भारत को आज दीप्ती पर गर्व है!
बचपन से ही जीवनजी ने कभी हार मानने का नाम नहीं लिया। उनकी मेहनत, लगन और आत्मविश्वास ने उन्हें वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल तक पहुँचाया और पूरे भारत का नाम रोशन किया।
उनकी जीत सिर्फ़ एक मेडल नहीं, बल्कि हर उस बच्चे और युवा के लिए प्रेरणा है जो अपने हालातों को अपने सपनों का रास्ता बनने से रोकता है। दीप्ति ने दिखा दिया कि सच्ची मेहनत और हौसला किसी भी चुनौती को मात दे सकता है।
जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ की शीतल देवी ने दुनिया को दिखा दिया कि हौसले से बड़ी कोई ताकत नहीं होती। उन्होंने अपनी मेहनत और जज़्बे से पैरावर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप में महिलाओं की कंपाउंड व्यक्तिगत स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीत लिया। उन्होंने तुर्किये की विश्व नंबर 1 ओजनुर क्योर गिरदी को 146-143 से हराकर यह उपलब्धि हासिल की।
उनके पिता किसान हैं और मां बकरियां चराती हैं, लेकिन शीतल ने अपने हालातों को कभी बाधा नहीं बनने दिया।
जन्म से ही दोनों हाथ नहीं होने के बावजूद, उन्होंने पैरों से तीरंदाजी की। कुर्सी पर बैठकर अपने दाहिने पैर से धनुष उठाती हैं, कंधे और जबड़े की ताकत से तीर छोड़ती हैं। उनके इस अनोखे कौशल को देखकर हर कोई हैरान रह जाता है।
कटरा में कोच अभिलाषा चौधरी और कुलदीप वेदवान के मार्गदर्शन में उन्होंने तीरंदाजी की दुनिया में अपने कदम जमाए।
शीतल देवी का जन्म फोकोमेलिया नामक बीमारी के साथ हुआ था, जो एक दुर्लभ चिकित्सा स्थिति है, जिसके कारण हाथ नहीं होते। वह ऊपरी अंगों के बिना पहली और एकमात्र महिला पैरा-तीरंदाजी चैंपियन हैं।
शीतल देवी ने दिखा दिया कि असंभव कुछ भी नहीं है बल्कि कुछ करने के लिए सिर्फ़ हौसला चाहिए होता है!