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मैं शिलादिपुत्र नंदी हूँ, सैकड़ों वर्ष से शीत, आतप, बरखा सहने के बाद एक बार मैंने महादेव से पूछा कि आप अपना त्रिशूल क्यों नही चलाते, उन्होंने मुझे श्री राम कथा सुनाई और कहा, 'यदि प्रभु राम चाहते तो बिना फण के एक बाण से दशानन के दसों शीश समेत सम्पूर्ण लंका का विनाश कर देते पर इससे सामान्य जन पर कोई प्रभाव नही पड़ता। राम और रावण की लड़ाई मात्र दो लोगों की लड़ाई नही थी बल्कि सामान्य जन मे मर्यादा की पुन:स्थापना और अन्याय के विरुद्ध उन्हें उठ खड़े होने का साहस देने को थी।' राम कथा प्रत्येक संदेह को दूर कर देती है, मैं जान गया कि मेरे यहाँ होने का उद्देश्य क्या है। मैं यहाँ पर हुए अत्याचार की गवाही देने के लिए हूँ। भारत भूमि मे निवास करने वाले लोगों में धर्म और सामर्थ्य के जागरण के लिए तप कर रहा हूँ।
मैं यहाँ सदियों से पड़ा हूँ, काशी धाम आने वाले सभी जन मुझे देखते हैं, मैं गवाह हूँ कि मेरे भोलेनाथ ज्ञानव्यापी तीर्थ के अधिष्ठाता हैं। मैं हर घड़ी, हर पल महादेव की ओर मुँह करके बता रहा हूँ कि मेरे भोलेबाबा यहीं हैं यहीं हैं। जम्बू द्वीप के प्रत्येक कोने से आने वाले सभी सनातनियों को बता रहा हूँ कि विश्वेश्वर यहीं हैं। सम्पूर्ण भरतखंड के एक एक व्यक्ति को मैं सदियों से इसी बात की गवाही दे रहा हूँ।
मैंने सुना है कि नए भारत के राजा ने यह पता लगाने का आदेश दिया है कि ज्ञानव्यापी तीर्थ का अध्यक्ष कौन है। धरती के विधि विशेषज्ञ विधाता का पता लगाने निकले हैं, यह सोच कर मैं मन ही मन महादेव की माया पर मुस्कुराता हूँ। भोलेनाथ जानते थे कि मेरी गवाही ही विधि व्यवस्था की आखिरी बात होगी, इसलिए मैं सैकड़ों साल से यहीं हूँ। जिस दिन मेरी प्रतीक्षा और मेरी गवाही प्रत्येक सनातनी की प्रतीक्षा और गवाही हो जायेगी उस दिन हर ज्ञानव्यापी को उसका देव मिल जाएगा।
मेरी तरफ देखो, मैं साक्ष्य हूँ, प्रमाण हूँ, साक्षी हूँ कि ज्ञानव्यापी तीर्थ समेत समस्त लोक के एकमेव स्वामी महादेव हैं।
उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत
कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली
यह कहावत क्यों बनी ?
बचपन से लेकर आज तक हजारों बार इस कहावत को सुना था कि "कहां राजा भोज- कहां गंगू तेली" आमतौर पर यह ही पढ़ाया और बताया जाता था कि इस कहावत का अर्थ अमीर और गरीब के बीच तुलना करने के लिए है,
पर भोपाल जाकर पता चला कि कहावत का दूर-दूर तक अमीरी- गरीबी से कोई संबंध नहीं है। और ना ही कोई गंगू तेली से से संबंध है, आज तक तो सोचते थे कि किसी गंगू नाम के तेली की तुलना राजा भोज से की जा रही है यह तो सिरे ही गलत है, बल्कि गंगू तेली नामक शख्स तो खुद राजा थे।
जब इस बात का पता चला तो आश्चर्य की सीमा न रही साथ ही यह भी समझ आया यदि घुमक्कड़ी ध्यान से करो तो आपके ज्ञान में सिर्फ वृद्धि ही नहीं होती बल्कि आपको ऐसी बातें पता चलती है जिस तरफ किसी ने ध्यान ही नहीं दिया होता और यह सोचकर हंसी भी आती है यह कहावत हम सब उनके लिए सबक है जो आज तक इसका इस्तेमाल अमीरी गरीबी की तुलना के लिए करते आए हैं
इस कहावत का संबंध मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और उसके जिला धार से है, भोपाल का पुराना नाम भोजपाल हुआ करता था।
भोजपाल
नाम धार के राजा भोजपाल से मिला।
समय के साथ इस नाम में से "ज" शब्द गायब हो गया और नाम भोपाल बन गया।
अब बात करते हैं कहावत की कहते हैं, कलचुरी के राजा गांगेय ( अर्थात गंगू ) और चालूका के राजा तेलंग ( अर्थात तेली) ने एक बार राजा भोज के राज्य पर हमला कर दिया इस लड़ाई में राजा भोज ने इन दोनों राजाओं को हरा दिया
उसी के बाद व्यंग्य के तौर पर यह कहावत प्रसिद्ध हुई "कहां राजा भोज-कहां गंगू तेली" राजा भोज की विशाल प्रतिमा भोपाल के वीआईपी रोड के पास झील में लगी हुई है।
चित्र - झील में लगी राजा भोज की प्रतिमा का है
वीर योद्धा महाराणा प्रताप सिंह